Wednesday, February 11, 2009

व्यंग्य-चड्डी दो, साड़ी लो !

एक ज़माना था जब हम चड्डी और कच्छा जैसे शब्द किसी सार्वजनिक जगह पर प्रयुक्त करने में भी हिजकते थे, लेकिन अब कोई हिजक नही क्योंकि हमारा देश अब तरक्की कर गया है, सब लोग पढ़े लिखे हो गए है ! कल जब यह ख़बर पढ़ी कि हमारी मातावो और बहनों ने श्रीराम सेना के कमांडो, श्री प्रमोद मुतालिक को सबक सिखाने के लिए उन्हें वेलेंटाईन डे के उपलक्ष में पीली चड्डीयो का एक पार्सल भेट करने की ठान ली है ! तो एक पल को लगा कि सचमुच हमारा देश काफ़ी तरक्की कर गया है, जो हमारी माँ-बहने, इतने उम्दा आइटम किसी को खास तौर पर भेंट करने लगे है! मैं तब से मन ही मन इनकी हिम्मत की दाद दिए जा रहा था कि रात को जब ऑफिस से घर पहुँचा तो देखा कि मेरी श्रीमती जी ने सारे बक्से और दीवान के अन्दर के कपड़े फर्श पर फैला रखे है, कारण पुछा तो बोली, अपनी पुरानी चद्दीयाँ ढूंड रही थी ! मैं समझ गया कि ये मोहतरमा भी महिलावो के इस नेक कैम्पेन में अपनी हिस्सेदारी दर्ज करवाना चाह रही है !

फर्श पर एक तरफ़ ८-१० चद्दियो का एक ढेर लगा था ! मैंने उसकी तरफ़ ऊँगली कर पुछा, अब क्या ढूंढ़ रही हो, ये पड़ी तो है इनमे से कोई एक भेज दो ! वह बोली, अरे नही तुम नही समझोगे ! मैंने कहा इसमे समझने वाली क्या बात है , मैंने ऑफिस में इन्टरनेट पर पढ़ ली थे वह ख़बर, कि महिलावो ने श्रीराम सेना........ ! वह बोली, अरे नही बुद्धू , बात कुछ और है ! फिर उसने मुझे टीवी चलाने को कहा, मैंने टीवी का स्विच आन किया तो एक ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही थी कि श्रीराम सेना के इस जाबांज सैनिक ने भी बैक फुट पर जाकर स्टेडियम की तरफ़ एक लंबा शॉट खेला है और इस मंदी के दौर में भी दुनिया के तमाम पूंजीवादी देशो में अपने देश की आर्थिक प्रगति की धाक ज़माने के लिए एक ऐसा आफर लॉन्च किया है , जो कि आजतक इस देश का नामी-गिनामी, कोई भी अच्छे से अच्छा व्यावसायिक घराना नही कर पाया था और जिसे सुनकर अच्छे- अच्छो के इस सर्दी के मौसम में भी पसीने छूट जाए! आफ़र है चड्डी लावो और साड़ी ले जावो !

मैं ख़बर सुनकर वही सोफे पर बैठ गया और महिलावो के प्रति इर्ष्या के वजह से मेरे छाती पर एक अजीब किस्म की जलन होने लगी, मैं सोच रहा था कि ये लोग सिर्फ़ महिलावो के सामान पर ही क्यो लुभावने आफर पेश करते है ! पुरुषों के साथ क्यो इतना भेदभाव होता है इस आधुनिक समाज में ? आज तक किसी बिजिनिस घराने ने यह आफर नही दिया कि कच्छा लावो और पैंट ले जावो ! पास में डायिजीन की गोली रखी थी, मैंने उसे मुह में डाला और तब जाकर मेरी जलन शांत हुई !

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