Thursday, February 26, 2009

फिल्म निर्माता कृपया ध्यान दे ! लोवेस्ट डील Re.1

आदरणीय निर्माता, निर्देशक;

हर उस हिन्दुस्तानी के दिल में, जो अपने बॉलीवुड से जरा भी इत्तेफाक रखता होगा, यह कसक जरूर है कि आखिर हमारी फिल्मो में ऐसी क्या कमी है कि उन्हें आजतक ऑस्कर नहीं मिला ! इस बात पर गौर फरमाने के बाद मेरे भी कबाडी दिमाग में कुछ घटिया किस्म के विचार आये और अपनी विमानन उद्योग से जुडी कंपनियों से प्रेरणा लेते हुए मैंने भी सोचा कि क्यों न मैं भी अपने देश के निर्मातावों को कुछ अच्छी डील ऑफर करू ! यकीन मानिए वैसे तो मैं उम्दा किस्म के गीत भी लिख सकता हूँ मगर आज के इस पाश्चात्य संस्कृति से सरागोश युग में उम्दा गाने सुनता कौन है ? उन्हें तो बस, जाम के साथ थिरकने के लिए, कोई डिक्चिक-डिक्चिक संगीत चाहिए बस! क्या करे , एक शेर याद आ रहा है ;

जूनून का दौर है, किस-किस को जाए समझाने,
इधर अक्ल के दुश्मन, और उधर हुश्न के दीवाने


खैर, लीजिये एक पटकथा और चन्द गाने प्रस्तुत है ; वैसे तो हमारे आज के महान-महान संगीतकार गीत की दो लाईनों पर ही पाच मिनट का समय पूरा कर लेते है मगर आपको डील पसंद आई, और आप चाहें तो बाद में गानों को कुछ और बड़ा भी किया जा सकता है ;

पटकथा; फिल्म का नाम रख सकते है 'शाला बनगया नेता' ! होता यह है कि गाँव के हेडमास्टर जी की पत्नी का आवारा, अनपढ़, चोर उचक्का भाई, यानी हेडमास्टर जी का शाला, अचानक एक दिन चुनाव जीत एमएलए बन जाता है! हेड मास्टर जी खुसी से गाँव वालो के साथ मिलकर यह कोसरा गाते है;

अरे लोकतंत्र की राजनीति का, यह कैसा गड़बड़ झाला ( बैक ग्राउंड में ढोल नगाडे का संगीत)
ए बी सी डी पता नहीं, और नेता बन गया शाला......
अरे नेता बन गया शाला....अरे नेता बन ..... तुनुक-तुनुक, तुनुक,तुनुक.........!
जाने कितने कत्ल किये और खूब किया घोटाला,
ए बी सी डी पता नहीं, और नेता बन गया शाला......
अरे नेता बन गया शाला....अरे नेता बन ..... तुनुक-तुनुक, तुनुक,तुनुक.........!
जेब काटना था पेशा जिसका और धंधा था ताला
ए बी सी डी पता नहीं, और नेता बन गया शाला......
अरे नेता बन गया शाला....अरे नेता बन ..... तुनुक-तुनुक, तुनुक,तुनुक.........!
जेल था जिसका ठौर-ठिकाना आज बन गया आला
ए बी सी डी पता नहीं, और नेता बन गया शाला......
अरे नेता बन गया शाला....अरे नेता बन ..... तुनुक-तुनुक, तुनुक,तुनुक.........!
मालदार वो आज बड़ा जो न था कभी दो पैसे का लाला
ए बी सी डी पता नहीं, और नेता बन गया शाला......
अरे नेता बन गया शाला....अरे नेता बन ..... तुनुक-तुनुक, तुनुक,तुनुक.........!
झूटे का मुह उजाला है इस कलयुग में, सच्चे का है काला
ए बी सी डी पता नहीं, और नेता बन गया शाला......
अरे नेता बन गया शाला....अरे नेता बन ..... तुनुक-तुनुक, तुनुक,तुनुक.........!
अरे लोकतंत्र की राजनीति का, यह कैसा गड़बड़ झाला
ए बी सी डी पता नहीं, और नेता बन गया शाला......
अरे नेता बन गया शाला....अरे नेता बन ..... तुनुक-तुनुक, तुनुक,तुनुक.........!


अब जी , वो क्या कहते है कि आगाज ऐसा तो अंजाम कैसा, अब जब शाले साहब एमएलए बन ही गयी थे तो किसी दस्यु सुंदरी से प्यार मुहबत भी लाजमी था ! अब यह भी निश्चित था कि जब वे एमएलए है तो प्यार भी अब्बल दर्जे का ही करेंगे ! तो जनाब जब उन्होंने प्यार किया तो दस्यु सुंदरी के मुख से यह बोल फूट पड़े ;

हाय रे , दो दिन हुए न मिले हुए, हमको जुम्मा जुम्मा...
इस गाल पे मारा चुम्बा उसने, उस गाल पे मारा चुम्मा...टिन-ट्रिन, धिन टिन-ट्रिन .....!
हाय रे , दो दिन हुए न मिले हुए, हमको जुम्मा जुम्मा...टिन-ट्रिन, धिन टिन-ट्रिन .....!
दो दिन मे ही घूम के आ गए, कुल्लू और मनाली
होटल में बने मिंया- बीबी, सड़क पे जीजा शाली
गिरा दी गर्मी के मौसम में बर्फ यूँ झुमा-झुम्मा
इस गाल पे मारा चुम्बा उसने, उस गाल पे मारा चुम्मा...टिन-ट्रिन, धिन टिन-ट्रिन .....!
पहले हमको खूब पटाया, ऊपर से फिर प्यार जताया
बिठा के पहलु में अपने, हरदम हमको खूब सताया
ख़ुशी के मारे झूम उठा, तन सब मेरा रुम्मा-रुम्मा
इस गाल पे मारा चुम्बा उसने, उस गाल पे मारा चुम्मा...टिन-ट्रिन, धिन टिन-ट्रिन .....!
अब जनाब, आप भी जानते है कि समय सदा एक जैसा तो नहीं रहता, अतः पांच साल का कार्यकाल ख़त्म होने को आया तो जनाब के सारे घपलों और कारगुजारी का काला चिटठा जनता के पास था, और जब ये एक बार फिर से हाथ जोड़कर लोगो के समक्ष गाँव में पहुंचे तो लोगो ने 'गारलैंड' की जगह 'शुलैंड' से इनके परेड करवा डाली , वैसे भी पिछले कुछ समय से शु के शेयर फूलो के मुकाबले काफी बढोतरी दर्ज करवा रहे है ! अब जब जनाब की शु परेड हो ही रही है तो इस सुअवसर पर गाँव वालो का गीत गाना भी लाजमी था,गीत के बोल कुछ इस तरह थे ;

अरे बाबडे छोरे, सड़े आलू के बोरे, तू सुण हमरी बात
खोता बण जा,पर नेता मत बणियो, भूल के अपनी जात........!

यकीन मानिए, चुनाव का मौसम भी करीब है , आपकी फिल्म खूब छोले बटोरेगी ! इसलिए फटाफट मेरे ब्लॉग पर दिए इ-मेल पर डील कन्फर्म कर दो, एक रूपये में (सरचार्ज एक्स्ट्रा), हां फिल्म के परदे पर गीतकार का नाम पी.सी.गोदियाल दिखाना मत भूलना, बस, और लग जावो फटाफट फिल्म बनाने में, बजट रखना कुल ११०० रूपये मात्र, (सरचार्ज एक्स्ट्रा) फिर देखना, गिनीज बुक में भी आ जायेगी और जब ऑस्कर लेने जावो तो इस गरीब नवाज को भी जरूर याद रखना !
गुड लक्

Wednesday, February 25, 2009

कितने संवेदनशील है हम अपनी रक्षा तैयारियों के प्रति ?

सेना के तीनो अंगो में अधिकारियो की अभूतपूर्व कमी: वो एक कहावत है कि 'जब जागे तभी सबेरा' ! रक्षा सम्बंधित सभी हल्कों में वर्षो से यह चर्चा और चिंता का विषय बना हुआ था कि देश में सेना के प्रति युवाओ में उत्साह निरंतर कम होता जा रहा है और जो अधिकारी सेना में हैं भी, वे समय से बहुत पहले ही स्वेच्छा से सेवानिवृत हो जा रहे है! और जिसका परिणाम है सेना में अधिकारियो की अभूतपूर्व कमी! और यह बात फिर से उजागर हुई, नई दिल्ली में जारी रक्षा सम्बन्धी संसदीय समिति की रिपोर्ट में : सेना में अधिकारियो की अभूतपूर्व कमी से परेशान एक संसदीय समिति ने रक्षा मंत्रालय से कहा है कि वह एक योजनाबद्ध ढंग से तुंरत कारवाही कर इस ओर ध्यान दे, और इससे सम्बंधित विसंगतियों और कमियों को तत्काल दूर करे ! इनके मुताविक जो प्रतिशत सेना में, नौसेना और वायुसेना में अधिकारियो की कमी का है वह है क्रमशः 23.8, 16.7 और 12.1 , सेना के तीनो अंगो के अधिकारियो की कुल पदों का २६% रिक्त पड़ा हुआ है! समिति का मानना है कि बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के साथ, हर मंत्रालय को रक्षा सेवाओं के समर्थन में अपना योगदान देना चाहिए!



इस अभूतपूर्व कमी के कई कारण और खामिया समिति ने गिनाई है जिनमे से कुछ है ; युवाओ द्वारा सैन्य कैरियर को कम प्राथमिकता, चयन सम्बन्धी प्रक्रिया का कठोर होना और चयन तथा पदोन्नति का निष्पक्ष और पारदर्शी न होना ! लेकिन इसके साथ ही मेरा मानना यह भी है कि देश और समाज में पनपती बहुत सी ऐंसी विसंगतिया भी इसका प्रमुख कारण है जो एक होनहार युवा शक्ति को सेना की ओर आकर्षित करने में अक्षम है! इन विसंगतियों के बारे में तीसरे अध्याय में चर्चा करूँगा, पहले आइये देखते है इसके दूसरे पहलु को ! मैंने कुछ समय पहले अपने ब्लॉग पर एक छोटे से लेख में "युद्ध, गलत फहमी में न रहे" शीर्षक के अंतर्गत सेना में आधुनिक हथियारों और उपकरणों की कमी के बारे में लिखा था, उसे पुनः मैं यहाँ जोड़ रहा हूँ ; २६/११ के बाद देश की जनता का पाकिस्तान को सबक सिखाने का उन्माद देखकर कई बार सोचने पर मजबूर हो जाना पड़ा कि हमारे लोग कितनी ग़लत फहमी में जी रहे है ! हालांकि मैं अपने देश को किसी भी मायने में पाकिस्तान से कम नही आंकना चाहता मगर यह भी एक कटु सत्य है, जैसा कि अभी कुछ दिन पहले रक्षा मंत्री ने ख़ुद ही स्वीकार किया कि हमारे सैन्य बल भारी मात्रा में सैन्य सामान की कमी से जूझ रहे है ! जो है भी वह भी भ्रष्ट राजनीती और नौकर शाही के चलते घटिया दर्जे का है ! अब सवाल उठता है कि ५ साल तक सत्ता में रहने के बाद हमारे ये लोकतंत्र के ठेकेदार इसकेलिए एक दूसरे पर दोष मढ़ रहे है, तो यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी थी ?



हम अपने रक्षा बजट में तो हरसाल बड़ी-बड़ी रकम सेना और सैनिक साजो सामान के लिए प्रावधान करते है लेकिन हकीकत में उसका कितना प्रतिशत उस कार्य में खर्ज कर पाते है, वह ज्यादा शोचनीय विषय है! यह कह देना कि युद्ध छेड़ दो, बहुत आसान है! लेकिन कभी यह सोचा कि इस युद्ध को लड़ने के लिए हमारे सैनिको के पास प्रयाप्त मात्र में उन्नत हथियार और साजो सामान मौजूद है भी या नहीं ! चंद मिशायिले बना लेने से हर युद्ध जीता नहीं जा सकता, अगर ऐसा होता तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली कहलाने वाला देश इतने सालो से अफगानिस्तान में आज भी इस तरह झक क्यों मार रहा होता ? हम हिन्दुस्तानियों की यह मानसिकता सदियों से चली आ रही है, जिसमे हम मंच पर दूसरों को तो बड़े-बड़े उपदेश दे डालते है कि हर नौजवान को सेना में सेवा करनी चाहिए, मगर अपनी औलाद से यही उम्मीद करते है कि वह भी हमारी ही तरह बड़ी बड़ी बातें बोलकर लोगो को मुर्ख बनाने के लिए मंच पर भाषण दे अथवा आई.ए.एस में जाये, सेना में तो पडोसी के ही लड़के को भर्ती होना चाहिए !



अब जो तीसरा और एक प्रमुख विषय है, वह है सेना में कैरिएर के प्रति लोगो में बढती उदासीनता; अगर गंभीरता से हम इस पहलु का अध्ययन करे तो पाएंगे कि एक जागरूक माता-पिता और योग्य युवा के वे कुछ तर्क बहुत ही उचित तथा तर्कसंगत है जो यह सवाल खडा करते है कि हम अपने बेटे को फौज में क्यों भेजे? किसलिए जाए ? सबसे पहला कारण है, परिवारों का सिकुड़ना! सीमित परिवार निति और मंहगे होते बुनियादी साधनों की वजह से एक शिक्षित घर में ज्यादातर अब एक बेटा और एक बेटी ही होते है ! और इस एक बेटे और बेटी की परवरिश और शिक्षा में ही मातापिता अपने जीवन की पूरी कमाई लगा देते है और जब उन शिक्षित माँ-बाप को मालूम है कि जिस सेना में हम अपना बेटा भेजना चाहते है उसके पास दुश्मन से लड़ने के लिए कुशल और आधुनिक हथियारों की बहुत कमी है तो क्या वे ऐंसे हालात में अपने बेटे को वहाँ जाने देंगे?



दूसरा बड़ा जो कारण है वह है तेजी से बदलता समाज और सुख-भोग और मनोरंजन की महँगी वस्तुवो के प्रति बढ़ता लगाव और इन सभी के आधार पर समाज में व्यक्ति की पहचान का बदलता ढंग ! मैं किसी को कम नहीं आंकना चाहता मगर जिस व्यवसाय से आज मैं जुड़ा हूँ उसके तजुर्बे के आधार पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आप अगर कहो तो मैं सेक्डो की लाईन में ऐसे इंजीनियरों को पेश कर सकता हूँ जिन्हें ठीक से अंग्रेजी में एक अप्लिकेशन लिखनी नहीं आती और अगर इनकी सैलरी या उपरी कमाई का आंकलन करे तो पायेंगे कि उम्र के हिसाब से (२४ - ४० साल ) इनकी महीने की कमाई ४०००० रूपये से २ लाख रूपये औसतन है, जबकि आप किसी सैनिक अधिकारी को इनके समकक्ष खडा करे तो पावोगे कि योग्यता के आधार पर वह इनसे कहीं भी कम नहीं, इनसे बढ़ कर ही है मगर उसे वेतन क्या मिलता है ? साल के आखिर में जब छुट्टी आता है तो बस स्टेशन से कंधे में बक्सा लाद घर पहुँचता है क्योंकि जेब में टैक्सी के लिए पूरे रूपये नहीं होते!



१९११ से आज तक मेरी तीन पुश्ते भारतीय सेना को समर्पित है और मैंने बहुत करीब से एक सैनिक और उसके परिवार का दर्द देखा है, महसूस किया है! हम आराम परस्त लोग आज घर से ऑफिस और ऑफिस से घर के ५ किलोमीटर के रस्ते में ही थक जाते है! अगर कभी आपलोग माता के दर्शनार्थ जम्मू गए हो और वहाँ से वापस अपने गंतव्य तो रेल से लौट रहे हो तो शायद आपने देखा होगा कि जब जम्मू से ट्रेन चलती है और आप अपने आरक्षित डब्बे में बैठकर शान के साथ टॉयलेट जाते है तो टॉयलेट के बाहर गेट और टॉयलेट के बीच की गैलरी में एक-आधा फौजी, विस्तर्वंद खोलकर वहां फैलाकर सोये रहते है, दो पैग रम के लेने के बाद गहरी नीद में! आपने अपने आरक्षित केविन में एक सीट पर अपना दो साल का बेटा सुलाया रहता है और दूसरे पर दो महीने की बेटी, नहीं तो ब्रीफकेस ही रखा होता है, लेकिन हम इतना कष्ट नहीं उठाना चाहते कि उस दो महीने की बेटी को अपने ही वर्थ पर अपने साथ सुलाकर एक वर्थ उस फौजी को दे दे जो लदाख से दो दिन के सड़क का सफ़र पूरा कर जम्मू पहुंचा और वहाँ से अब उसे केरल या देश के अन्य भाग में स्थित अपने घर तक की यात्रा इसी तरह करनी है क्योंकि उनके लिए आरक्षी डब्बे में या तो जगह नहीं थी या फिर रेलवे द्वारा सैनिको के लिए आरक्षित डब्बा इस बार लगाया ही नहीं गया था !



अंत में मुझे उत्तराखंड के अपने एक करीबी जानकार की कहानी यहाँ याद आ रही है, जिनका दो माह पूर्ब दिसम्बर में निधन हो गया! उनके पति भारतीय सेना में थे और १९८७ में श्रीलंका में एल टी टी इ के साथ संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हो गए थे! तब इनकी शादी हुए मुश्किल से दो साल ही हुए थे! बेटा जो कि अब खुद भी सेना में है, तब माँ के पेट में ही था! उस माँ ने दुनिया के सारे दुःख तकलीफे झेलते हुए इस बेटे को जन्म दिया, इसकी परवरिश की, पढाया लिखाया और जब बेटा अठारह-बीस साल का हुआ तो खुसी-खुसी सेना में भेज दिया! पहाडो में एक बिडम्बना यह भी है कि अगर सरकारी नौकरी नहीं है तो रोजगार का और खास साधन उपलब्ध नहीं होता, उसके बाद एक युवा के पास यही विकल्प बच जाते है कि या तो दिल्ली और चंडीगढ़ जाकर प्राइवेट में लालो की नौकरी करे या फिर सम्मान की नौकरी करनी है तो सेना में भर्ती हो जाये! अभी दिसम्बर में जब उन्होंने प्राण त्यागे तो अपने युवाकाल में पति की कुर्वानी दे चुकी वह अबला इसी चिंता के साथ मरी कि बेटा भी फौज में है, और देश में युद्ध के बादल घुमड़ रहे है! न जाने उसके पीछे क्या हो ? हम बड़ी आसानी से घर में बैठ कर कह देते है कि पाकिस्तान पर अटैक कर देना चाहिए, मगर क्या कभी आपने सोचा कि उन माँ के दिलो पर क्या बीतती होगी जिनका इकलौता बेटा फौज में है ? क्या देश का सारा का सारा दर्द झेलने का ठेका उसी माँ ने ले रखा था, जिसने पति को भी गवाया और फिर बेटे को आगे कर दिया? क्या चंद रूपये और तकमे ही इनकी कुर्बानियों की कीमत है ?

-गोदियाल

Friday, February 20, 2009

एक हकीकत- गाली जो पुरुष्कार के बोझ तले दब कर रह गई" !

शायद आप लोगो को याद हो जब कुछ वक्त पहले इसी मंच पर मैंने एक लेख लिखा था " गाली जो पुरुष्कार के बोझ तले दब कर रह गई" ! अब जरा इस ख़बर को पदिये और सोचिये, सोचिये ! सोचिये ! कितनी देर से अक्ल आती है हम हिन्दुस्तानियों को !
"संगीतकार आदेश श्रीवास्तव का कहना है कि फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' को ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित किए जाने के बाद से उन्हें अमेरिका की गलियों में घूमने में शर्म महसूस होती है क्योंकि वहां भारतीयों को लोग 'स्लमडॉग्स' कहकर पुकारने लगे हैं।
श्रीवास्तव ने कहा, "मैं काफी दुखी हूं। वे अब भारतीयों को स्लमडॉग्स कहने लगे हैं, जैसे 'कुली' शब्द को ब्रिटेन में गाली के रूप में प्रयोग किया जाता है। अमेरिका में स्लमडॉग मेरे लिए गाली की तरह है। "
उन्होंने कहा, "मुझे मुंबई ने सब कुछ दिया है। मुंबई को मैंने नजदीक से देखा है। मैं भी बाल वेश्यावृति पर फिल्म बना सकता हूं लेकिन मुझे ऑस्कर नहीं मिलेगा क्योंकि मैं गोरा नहीं हूं।"
श्रीवास्तव ने कहा कि फिल्म के निर्देशक को मुंबई को झुग्गी के रूप में दिखाने का क्या अधिकार है, अब पूरी दुनिया में मुंबई को झुग्गियों का शहर समझा जा रहा है। उन्होंने कहा, "हमलोग कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे।"

Wednesday, February 11, 2009

मर्यादा लांघता तथाकथित सेकुलर मीडिया और कांटे बोते राष्ट्रीय राजनैतिक दल !

यदा-कदा यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि एक स्वतंत्र देश में स्वतंत्र मीडिया का क्या रोल होना चाहिए ? विभिन्न मंचो पर, इस बात पर बहुत लम्बी- लम्बी बहस भी होती है लेकिन अपने को सर्वोपरि साबित करने की दौड़ में और तुच्छ व्यक्तिगत और राजनितिक स्वार्थो के चलते कोई सार्थक परिणाम नही निकल पाते, यानि नतीजा वही ढाक के तीन पात; विधायिका, न्यायपालिका और संचारपालिका (कार्यपालिका तो नाम की ही कार्यपालिका रह गई है) यही वजह है कि अक्सर मीडिया पर निष्पक्ष न होने का आरोप लगता आया है! एक वक्त था जब पत्रकारिता जगत में प्रवेश करने वाले को पहला पाठ यह पढाया जाता था कि देश के निर्माण में और उसके भविष्य को निर्धारित करने में एक पत्रकार कौन-कौन सी भूमिका अदा कर सकता है ! इसके ठीक विपरीत आज हर एक पत्रकार और मीडियाकर्मी इस इस जुगत में रहता है कि बस किसी तरह वह खबरों में छाया रहे, ख़बर या रिपोर्ट कितनी सही है और इसके देश समाज पर क्या-क्या कुप्रभाव पड़ सकते है उससे उसे कुछ नही लेना-देना ! और दूसरी तरफ़ उनके मातहत भी इसी ताक में रहते है कि कोई सनसनीखेज ख़बर मिल जाए, और उनकी टीआरपी टॉप में रहे, बस ! वह ख़बर कितनी सही है, कितनी समसामयिक है, उसके क्या विपरीत प्रभाव है, इससे इन्हे क्या?


अगर कोई रिपोर्टर किसी राजनैतिक दल की कारगुजारियों की इमानदारी से कोई ख़बर देना भी चाहे, तो उसे सबसे पहले यह देखना पड़ता है कि उसका खबरिया चेंनल, उसका अखबार, उसका मालिक कौन से राजनैतिक दल का समर्थक है, और इससे उसके हितों को क्या चोट पहुँच सकती है, इसलिए दिखावे भर के लिए कि यह एक निष्पक्ष संचार माद्यम है, लीपापोती करते हुए कहीं ऐंसी जगह पर वह ख़बर प्रसारित जरूर करेंगे जहा जनता का ज्यादा ध्यान न जाता हो, मगर वह रिपोर्टर चाह कर भी निष्पक्ष ख़बर, जनता के समक्ष नही रख पाते ! कहने का तात्पर्य यह है कि आज के इस दौर में, कुछ तुच्छ किस्म के प्राणियो ने अपने राजनैतिक हितों को बनाये और बचाए रखने के लिए, साम, दाम, दंड, भेद का सहारा लेकर हर उस जगह पर कब्जा जमा लिया है जिससे उसके कैरियर को कोई खतरा है !


इस सम्बन्ध में मैं अभी हाल के बहुत से उदाहरण, यहाँ पर गिना सकता हूँ; मसलन अभी कल परसों की एक ख़बर आपने अखबारों, मीडिया और इन्टरनेट पर खूब छाई हुए देखी होगी ! गुजरात के मुख्यमंत्री ने एक छींक क्या मारी कि वह ख़बर बन गई कि अगर मोदी छींक नही मारते तो शायद पाकिस्तान अब तक २६/११ की एक निष्पक्ष रिपोर्ट भारत को सौंप चुका होता ! और जो वाकई में ख़बर बनने लायक बातें थी और जिन पर देश में एक सार्थक बहस इन संचार माध्यमो के जरिये होनी चाहिए थी, वह नही हुई या फिर हुई भी तो सिर्फ़ दिखावे मात्र के लिए, जैसे चुनाव आयोग का मुद्दा, जैसे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का मुद्दा, समाजवादी पार्टी के श्री अमर सिंह ने सीधे आरोप लगाया कि जुलाई में कांग्रेस को समर्थन देने के लिए मिडीएटर का काम राज्यपाल महोदय ने किया ! आन्ध्र सरकार और सत्यम का मुद्दा ( इतना बड़ा गवन और देश की प्रतिष्ठा को धक्का पहुचने का काम उस सरकार के नाक तले हो गया और जिस ढंग से इसकी छानबीन को अब तक उचित महत्व नही दिया गया वह सोचनीय है कि कहीं न कहीं कुछ मिलीभगत है ) , आन्ध्र विधानसभा और उडीसा विधान सभावो में हंगामे का मुद्दा , इत्यादि, इत्यादि !


अब बढ़ते है दुसरे पहलु की ओर, आज की तारीख में देश के वर्तमान राजनैतिक परिद्रश्य में, जहाँ तक मैं देख सकता हूँ मेरे आंकलन से सिर्फ़ दो ही दलों में मुझे गुन्जायिस दिखती है जो कि भविष्य के मुताविक, आगे चलकर आज से १५-२० सालो के बाद भी देश का प्रतिनिधित्व कर सके, एक कांग्रेस और दूसरा भारतीय जनता पार्टी ! और जैसा कि आजकल आम हो चुका है कि राजनीती में बाप के बाद बेटा गद्दी संभाल रहा है तो न सिर्फ़ इन दो पार्टियों अपितु अन्य दलों को भी यह बात ध्यान में रखनी होगी कि जिस तरह की लूट खसौट और तात्कालिक स्वार्थ की राजनीति के चलते ये बुड्ढे लोग अपनी हरकतों से हर दिन एक नई ग़लत मिसाल कायम कर रहे है तो अगर इन्हे देश की न सही, मगर अपनी औलादों के भविष्य की तनिक भी फिक्र है तो इन्हे सोचना होगा कि ये अपनी पीढियों के लिए कांटे बोने में लगे है ! आज भले ही इनकी तात्कालिक मनोकामना पूर्ण हो रही हो लेकिन एक वक्त आएगा जब देश का अधिकाश युवा वर्ग शिक्षित होगा, और जो ग़लत परम्पराए इन्होने आज डाली है उसका हिसाब इनके सपूतो से जनता मांगेगी, और जो उन्हें देना भारी पड़ेगा!

इसे इस उदाहरण से हम ज्यादा समझ सकते है , मान लो कोंग्रेस आज अपने युवा नेता राहुल को भविष्य के लिए तैयार कर रही है और समय के हिसाब से कल राहुल को देश की कमान मिल जाती है, अभी तो चल जाएगा, लेकिन एक अन्तराल के बाद जब देश के बहुसंखय्क जनता ठीक से अपना भला बुरा समझने में सक्षम हो जायेगी तो वही जनता इनके समक्ष उन ग़लत मिसालों को पेश करेगी जो सत्ता में बने रहने के लिए अथवा और किसी और स्वार्थ पूर्ति के लिए वर्तमान में मौजूद कोंग्रेस और यूपिये ने पिछले कुछ सालो में कायम् की! राज्यपालों का दुरुपयोग, जांच एजेंसियों का दुरूपयोग, सुरक्षाबलों का दुरुपयोग,सत्ता का दुरुपयोग, धन का दुरुपयोग, समर्थन के लिए उन दलों और लोगो का समर्थन जो इनके दलीय सिद्दांतो के खिलाप था, द्रिड राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव, तात्कालिक लाभ के लिए भोत बैंक की राजनीती के आगे झुकना , इत्यादि, इत्यादि ! कमोवेश यही बातें अन्य दलों पर भी समान रूप से लागू होती है ! और जरूरी नही कि आप हमेशा सत्ता में ही रहे, मान्धाता च महीपति....... कभी इनकी पीदियों को भी आम नागरिक का जीवन जीना पड़ सकता है ! अगर इस बात को इन्होने अभी नही समझा तो फिर वह वक्त दूर नही जब हर कोई इनको यह कटाक्ष मारता फिरेगा कि " बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाए" !

व्यंग्य-चड्डी दो, साड़ी लो !

एक ज़माना था जब हम चड्डी और कच्छा जैसे शब्द किसी सार्वजनिक जगह पर प्रयुक्त करने में भी हिजकते थे, लेकिन अब कोई हिजक नही क्योंकि हमारा देश अब तरक्की कर गया है, सब लोग पढ़े लिखे हो गए है ! कल जब यह ख़बर पढ़ी कि हमारी मातावो और बहनों ने श्रीराम सेना के कमांडो, श्री प्रमोद मुतालिक को सबक सिखाने के लिए उन्हें वेलेंटाईन डे के उपलक्ष में पीली चड्डीयो का एक पार्सल भेट करने की ठान ली है ! तो एक पल को लगा कि सचमुच हमारा देश काफ़ी तरक्की कर गया है, जो हमारी माँ-बहने, इतने उम्दा आइटम किसी को खास तौर पर भेंट करने लगे है! मैं तब से मन ही मन इनकी हिम्मत की दाद दिए जा रहा था कि रात को जब ऑफिस से घर पहुँचा तो देखा कि मेरी श्रीमती जी ने सारे बक्से और दीवान के अन्दर के कपड़े फर्श पर फैला रखे है, कारण पुछा तो बोली, अपनी पुरानी चद्दीयाँ ढूंड रही थी ! मैं समझ गया कि ये मोहतरमा भी महिलावो के इस नेक कैम्पेन में अपनी हिस्सेदारी दर्ज करवाना चाह रही है !

फर्श पर एक तरफ़ ८-१० चद्दियो का एक ढेर लगा था ! मैंने उसकी तरफ़ ऊँगली कर पुछा, अब क्या ढूंढ़ रही हो, ये पड़ी तो है इनमे से कोई एक भेज दो ! वह बोली, अरे नही तुम नही समझोगे ! मैंने कहा इसमे समझने वाली क्या बात है , मैंने ऑफिस में इन्टरनेट पर पढ़ ली थे वह ख़बर, कि महिलावो ने श्रीराम सेना........ ! वह बोली, अरे नही बुद्धू , बात कुछ और है ! फिर उसने मुझे टीवी चलाने को कहा, मैंने टीवी का स्विच आन किया तो एक ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही थी कि श्रीराम सेना के इस जाबांज सैनिक ने भी बैक फुट पर जाकर स्टेडियम की तरफ़ एक लंबा शॉट खेला है और इस मंदी के दौर में भी दुनिया के तमाम पूंजीवादी देशो में अपने देश की आर्थिक प्रगति की धाक ज़माने के लिए एक ऐसा आफर लॉन्च किया है , जो कि आजतक इस देश का नामी-गिनामी, कोई भी अच्छे से अच्छा व्यावसायिक घराना नही कर पाया था और जिसे सुनकर अच्छे- अच्छो के इस सर्दी के मौसम में भी पसीने छूट जाए! आफ़र है चड्डी लावो और साड़ी ले जावो !

मैं ख़बर सुनकर वही सोफे पर बैठ गया और महिलावो के प्रति इर्ष्या के वजह से मेरे छाती पर एक अजीब किस्म की जलन होने लगी, मैं सोच रहा था कि ये लोग सिर्फ़ महिलावो के सामान पर ही क्यो लुभावने आफर पेश करते है ! पुरुषों के साथ क्यो इतना भेदभाव होता है इस आधुनिक समाज में ? आज तक किसी बिजिनिस घराने ने यह आफर नही दिया कि कच्छा लावो और पैंट ले जावो ! पास में डायिजीन की गोली रखी थी, मैंने उसे मुह में डाला और तब जाकर मेरी जलन शांत हुई !

Tuesday, February 10, 2009

ये अलकायदा वाले "भी" हमें बेवकूफ समझते है !

अभी-अभी इन्टरनेट पर यह समाचार पढ़ रहा था कि दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन अलकायदा ने भारत को पाक पर हमला न करने की धमकी दी है ! उसने कहा है कि अगर पाकिस्तान पर हमला किया तो भारत की खैर नहीं! अलकायदा की तरफ से ये धमकी अफगानिस्तान में अलकायदा के प्रमुख मुस्तफा अबु यजीद ने दी ! अलकायदा के कमांडर यजीद ने कहा है कि अगर भारत ने पाकिस्तान पर हमला करने की कोशिश की, तो उस पर मुंबई जैसे और भी हमले किए जाएंगे !

यह पढने के बाद मैंने थोडी देर के लिए आँखे मूंदकर इन जनाब की धमकी पर गौर करना शुरू किया तो मुझे इस बात पर हँसी आ गई कि पठान भी अपने को हिन्दुस्तानियों से ज्यादा अक्लमंद समझने लगे है ! क्या वाकई में हम लोग शक्ल से इतने बेवकूफ नजर आते है ? इन्होने या इनके भाइयो ने ( लश्करे तयिबा ) ने यह सोच कर मुंबई पर हमला किया था कि इसके बाद भारत पाकिस्तान पर हमला कर देगा और फिर इनके मजे , क्योंकि दुनिया का सारा ध्यान इस लड़ाई की ओर चला जाएगा, लेकिन इन गdho को मालूम ही नही था कि भारत में कितने शांत स्वभाव का व्यक्ति प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठा है, और पाकिस्तान को मारना तो दूर ये जनाब मैडम के कहे बगैर क्षींक भी नही मारते ! अब जब ये इसमे सफल होते नही दीखे तो इन्हे मालूम है कि भारत द्वारा दिए गए डोजियर के जबाब में पाकिस्तान ने जो उत्तर दिया है उससे भारत खुस नही, अतः इस अवसर को सही मौका समझ इन्होने झट से अपना वो कुख्यात वीडियो जारी कर दिया और धमकी डे डाली कि तू जरा हमला करके तो देख, फिर देख हम क्या करते है ! ताकि इंडिया तैश में आकर पकिस्तान पर हमला कर दे ! बेचारा पाकिस्तान! कितने सारे शुभचिंतक पाले बैठा है अपने लिए ! अगर कोई इस पर नही भी हमला करना चाह रहा हो तो इनके उकसावे और कोरी धमकियों में आकर, कर डाले,वाह !

क्या ही अच्छा होता कि तुंरत भारत की तरफ़ से भी एक संदेश भेजा जाता कि चूँकि अलकायदा और तालिबान नही चाहता कि भारत पाकिस्तान पर हमला करे इसलिए भारत पाकिस्तान पर हमला नही करेगा और उसे प्यार से समझायेगा कि २६/११ के दोषियों के खिलाप कारवाही करे ! और अगर नही करता तो जैसा चल रहा है चलता रहेगा ! फिर देखो ये बेकायदा लोग कैसे अपनी मुंडी नोचते है !

वैसे कभी आप लोगो ने भी सोचा है कि मान लो अचानक अगर पाकिस्तान और अफगानिस्तान दो शांत देश बन जाते है जहा कोई खून खराबा नही, कोई आतंकवाद नही, बिल्कुल शांत ! तो क्या अमेरिका और पश्चमी देश उसमे कोई दिलचस्पी रखेगे ? अगर नही, तो ये पाकिस्तानी खायेंगे क्या ?

Sunday, February 8, 2009

जरुरत है उनके खुफिया तंत्र को समझने और उसे नेस्तनाबूद करने की !

भारत द्वारा पाकिस्तान को मुंबई हमलो पर दिए गए डोजिएर का बहुप्रतीक्षित जबाब शायद आज कल में मिलने की उम्मीद है, इस जबाब से मेरी नजर में, शायद भारत को खास उम्मीद नही रखनी चाहिए, मगर भारत का अगला कदम बहुत कुछ इस जबाब पर निर्भर करेगा, यह उम्मीद की जा रही है ! २६/११ के बाद दक्षिण एशिया क्षेत्र में जो आतकवाद और उससे जुड़े संगठनो के नए समीकरण उभर का सामने आए है, उसमे न सिर्फ़ हमारे देश को अपितु दुनिया भर के उन तमाम देशो, जो आतंकवाद के मुख्य निशाने पर है, उन्हें यह समझने की जरुरत है कि आतंकवाद का यह खतरा उनको न सिर्फ़ किसी खूंखार आतंकवादी संघठन से है, बल्कि सबसे बड़ा खतरा उस इंजीनियरिंग डिजायिनर से है जो इसका खाका और ड्राइंग तैयार करता है ! और इसमे कोई संदेह नही होना चाहिए कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी, आईएसआई, एक कुशल डिजाईन इंजिनियर की भूमिका दशको से बड़े ही अनुभवी ढंग से निभाती आ रही है! वो एक अंग्रेजी कहावत है कि अपराधी बिना पूछे बहुत सारे तर्क दे डालता है, हाल के जनरल मुसर्रफ के आईएसआई पर दीगयी सफाई को भी इसी दृष्टीकोण से देखा जाना चाहिए !

आपको याद होगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जब अपना चुनाव प्रचार कर रहे थे, तो उन्होंने पाकिस्तान की मौजूदा हालत पर कुछ ऐसे कठोर संकेत पाकिस्तान को दिए थे जिससे इनकी यह विश्व कुख्यात एजेंसी, बुरी तरह से डर गई थी ! और यही वजह है कि समय-समय पर भ्रमित करने के लिए यह अपने पुराने मातहत रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल हामिद गुल को आगे करदेती है, या यु कहे कि एक अनोखे किस्म का आंतरिक भय इस पुराने चीफ को आगे आने के लिए मजबूर कर देता है ! और यही भय इनकी जुबान से हाल में रावलपिंडी में हुई पाकिस्तान के उच्च पदस्त सैन्य और अन्य अधिकारियो की मीटिंग में इनके सिरकत करते वक्त निकल गया था जब इन्होने ख़ुद कहा कि पाकिस्तान अन्दर से बहुत डरा हुआ है औरवह ऐंसे हालत में परमाणु हमला भी करसकता है !


मार्च १९८७ में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जियाउल हक ने इन हामिद साहब को पाकिस्तान की खुपिया एजेन्सी आईएसआई का चीफ नियुक्तकिया था, इससे पहले ये सेना में रहते हुए, अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सी आई ए के लिए अफगानिस्तान में रुसी सेनावो के खिलाप काम करते थे और यूँ कहे कि इस क्षेत्र में सीआईए के दाहिने हाथ थे ! और भारत के खिलाप इन्होने ही वक्त-वक्त पर सुई चुभो कर खून बहाने की रूपरेखा (प्रोक्सी वार) बखूबी तैयार की थी ! पहले पंजाबमें, और फिर कश्मीर मैं और इसके अलावा असम और उत्तर पूरब के इलाको में सक्रीय नागा, मिजो और उल्फा संगठनों के चरमपंथियों को तैयार करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, और कहा तो यह भी जा रहा है कि इस देश में मावो और नक्श्ली गुटों को भी यही हथियार और उनके इस्तेमाल का प्रशिक्षण देने वालो में से है !

अब जो मुख्य बात मैं कहना चाह रहा हूँ वह यह है कि २६/११ के बाद अमेरिका ने जिन चार लोगो को संयुक्त राष्ट से आतंकवादी घोषित करने का आग्रह किया था उसमे से एक है, यह हामिद गुल साहब ! खैर मुझे नही लगता कि अमेरिकी राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में कोई ऐसा खास कदम उठाने वाले है जो कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकवाद की रीढ़ की हड्डी को तोडे सके , मगर फिर भी पाकिस्तान के आतंकवाद के इन आंकवो को कहीं न कहीं यह डर जरूर सता रहा है कि आने वाले वक्त में कुछ होगा जरूर ! और यही वजह थी इन हामिद साहब ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के समक्ष यह कहना शुरू कर दिया कि अमेरिका में घटित ०९/११ अमेरिका द्वारा स्वयं रचित एक ड्रामा था ! वैसे ये ख़ुद भी जानते है कि यह आरोप स्वयं में एक हास्यास्पद सी बात है मगर इनका मकसद कुछ और है , ये यह कहकर, या इस पर किताब लिखकर अंतराष्ट्रीय समुदाय को इस बहकावे में रखना चाहते है कि अमेरिका में हुए हमलो के बारे में पाकिस्तान की खुपिया एजेन्सी को कुछ नही मालुम, अगर इनको मालुम होता तो उसका चीफ इस तरह की उल-जुलूल बातें क्यो कहता ! जबकि वास्तविकता इससे बहुत परे है ! जिस तरह से ०९/११ और २६/११ हुआ उसमे बहुत सी समानताये थी और जिसमे से एक प्रमुख समानता थी, हिट एंड रन ! यानि मुख्य काम को अंजाम देने वाले या तो खुदा को प्यारे हो जाए या फिर वापस इनके पास पहुच जाए! आई एस आई के ब्लू प्रिंट के सिद्धांत के मुताविक ये पहले आप्शन यानि खुदा को प्यारा हो जाने को ज्यादा प्राथमिकता देते है ! अन्दर से इनके सपोर्टिंग एजेंट बहुत सारे रहे हो लेकिन वास्तविक घटना को अंजाम तक पहुचने वाले अलकायदा के ४ या ५ आत्मघाती और लस्करे तयिबा के सिर्फ़ १० कमांडो ही थे, जिसमे से आई एस आई के सर्बोत्तम ब्लूप्रिंट के ठीक विपरीत, इनके दुर्भाग्यबस एक कमांडो यानि कसाब जिन्दा हाथ आ गया , नही तो इन जनाब ने अब तक मुंबई हमले पर भी एक किताब लिख डाली होती और इसे भारत की भगवा ब्रिगेड का मालेगांव घटना से ध्यान बटाने का एक ड्रामा मात्र करार दिया होता !

मेरा यह मानना है कि अगर हमें अथवा पश्चिमी देशो को ईमानदारी से इस आतंकवाद के ताने बाने को ख़त्म करना है तो पहली जरुरत है, पाकिस्तान की इस बदनाम एजेन्सी को नेश्तनाबूद कर देना ! अगर भारत अथवा अमेरिका और नाटो संघटन इस कार्य में सफल हो जाए तो समझो कि आतंकवाद के खात्मे का ५० फीसदी काम पुरा हो गया ! हमें भी अपने देश के दुश्मन आतंकवाद के विरुद्ध उतनी सफलता पाकिस्तान पर प्रत्यक्ष युद्ध अथवा सर्जिकल स्ट्राइक से नही मिलेगी जितनी की इस एजेन्सी के खात्मे पर !अगर गौर से देखे तो अलकायदा और तालिबान का फिर से सिर उठाने की एक सबसे बड़ी वजह है आई एस आई ! यह आज तक इस तरह का रोल अदा करती आ रही है कि अमेरिका के साथ भी भले बन गए, और आतंकवादियों के साथ भी ! इसकी थोडी सी ख़बर उसे दे दो और उसकी थोडी सी ख़बर इसे दे दो और ख़ुद को भला आदमी साबित करो दोनों की नजर में ! जबकि वास्तविकता यह है कि यह दोना का ही एक खतरनाक शत्रु है!

Thursday, February 5, 2009

श्रीकृष्ण सेना !

हे भिडू ! नोट करले कहीं पर, इस सेना का संस्थापक मैं हूँ मैं, पीसी गोदियाल ! मैंने गूगल में भी सर्च मार के देख लिया है, भगवान के नाम वाला एक ही ट्रेडमार्क खाली पड़ा था, बाकि सब पर तो सारे सज्जन लोगो ने बहुत पहले ही कब्जा जमा रखा है! तो बस समझ ले , आज से ये ट्रेड मार्क मेरा ! हे सर्किट ! वो बाहर खड़े बबंडर टीवी के संवाददाता को जाके बोल कि जाकर अपने 24x365 वाले न्यूज़ चेनल पर ऐलान कर दे कि श्रीकृष्ण सेना के संस्थापक ने चेतावनी दी है कि इस वेलेनटाईन डे पर कोई भी लड़की दूध से बनी आइस्क्रीम नही खायेगी, क्यूंकि दूध वाले हर आइटम पर पहला अधिकार श्रीकृष्ण सेना के जवानों(ग्वालो) का है !इससे सभ्यता पर आंच आती है और संस्कृति ख़राब होती है ! अगर सड़क पर कोई लड़की उस दिन ऐसा करते पायी गई तो हम आईसक्रीम वाले की ठेली उठा लेंगे !

वाह मुन्ना भाई ! क्या दिमाग पाएला, क्या कमाल का आईडिया आयिरेला है आपकी खाली खोपडी में! अब तक किसी भी समाज विरोधी तत्व की नजर नही पड़ी इस ट्रेड मार्क पर ! बोले तो एकदम पियोर, फिर तो मुन्ना भाई, आपको जेड प्लस सिक्यूरिटी भी मिल जायेगी, वो अपुन बोले तो शिवजी की सेना, रामजीकी सेना और बानारजी की सेना के प्राप्राईटरो की तरह ! अरे मुन्ना भाई, फिर तो आप भी वीआईपी लगोगे !

हां, ठीक है-ठीक है, तुम जावो सर्किट और पहले उस टीवी रिपोर्टर को पकडो और फिर ये चाटुकार जगत को भी बोलो कि जो भी अपनी पहले टिपण्णी भेजेगा, समझो उसको हमने इस सेना में भरती कर दिया,और सुन एक काम और करियो, पता लगा की कौन से दूध की डेरी पर लड़किया दूध लेने ज्यादा पहुँचती है ? वो किस लिए मुन्ना भाई ? अरे सर्किट, खIली पीली खोपडी ख़राब मत कर , अब अगर प्रसिद्धि पानी है तो एक आध तोड़-फोड़ तो करनी ही पड़ेगी न ! अब तुम जावो !

Sunday, February 1, 2009

व्यंग्य- घरेलु हिंसा को रोकिये- बेल बजाये !

टीवी पर यह विज्ञापन आपने भी देखा होगा, आजकल खूब चल रहा है! "घरेलु हिंसा को रोकिये- बेल बजाये" ! सर्वप्रथम तो उस विज्ञापन एजेन्सी के क्रिएटिव मेनेजर की तारीफ़ करना चाहूँगा जिसने अपना दिमाग चलाकर इतने सूक्ष्म शब्दों में इतनी गूढ़ बात कह डाली ! एक बहुत ही अहम् तथ्य को उजागर करता है यह विज्ञापन !

कभी आपने भी गौर किया इस बात पर कि कितना निठल्ला और स्वार्थी है हमारा यह पुरूष वर्ग ! सुबह जब उठता है तो उम्मीद करता है कि पत्नी सिरहाने पर चाय का कप हाथ में पकड़े खड़ी हो , वाथरूम में घुसे जनाब तो, गीजर में पानी पहले से ही गर्म मिले! कच्छा बनियान बाथरूम की खूंटी पर टंगा मिले ! नाह-धोकर जब बाहर आए तो डायनिंग पर नाश्ता सजा हुआ हो ! ऑफिस के लिए तैयार होने लगे तो सारे कपड़े प्रेस होकर आलमारी में रखे मिले, और श्रीमतीजी उन्हें कोट पहनाने ,उनके चश्मे, पर्स रूमाल इत्यादि उन्हें पकडाने में भी मदद करे !

उसके बाद ये जनाब ताजे किए नाश्ते का एक लंबा डकार छोड़कर निकल पड़े, नौकरी अथवा पेशे के बहाने मटरगस्ती करने ! ऑफिस में टेबल पर जो काम है उसका एक तिहाई ही किया और बाकि कल के लिए रख दिया , और कंप्यूटर पर चैटिंग शुरू कर दी! दोपहर में लंच के बाद निकल पड़े ऑफिस काम्प्लेक्स और शोपिंग काम्प्लेक्स में हसीनावो के संग चक्षु पान करने ! बस हो गई दिनचर्या ख़त्म !शाम को अगर काम ठीक से न करने पर नाराज बॉस ने डांट डपट दिया तो जनाब, बॉस के सामने तो भीगी बिल्ली बन जायेंगे मगर गुस्सा निकलेगा शराब के ठेके पर बोतल और तंदूरी चिकन पर ! तंदूरी चिकन अगर थोड़ा अधपका मिला, ठेके पर मौजूद बौन्सरो के डर से वहा तो जुबान नही खुलेगी लेकिन बाकि का रहा सहा गुस्सा घरवाली पर !

जनाब जब घर के गेट पर पहुँचते है तो अपने थोबडे में उनके भले ही बारह बज रहे हो मगर बीबी से उम्मीद करते है कि वह अपने पूरे श्रृंगार में मुश्कुराते हुए जनाब का स्वागत करे, इनका ब्रीफकेश उठाये और इनकी टाई और कोट उतारे ! और इसमे अगर जरा भी कोताही हो गई तो उस अधपके चिकन का सारा गुस्सा बेचारी उस मासूम पर, जो शाम होते ही जनाब की राह तकने लगी थी, और दिनभर इनके लिए शाम के खाने पहनने का इंतजाम करती रही, और इस सबका उसे पारितोषिक क्या मिला, इन जनाब की डांट डपट और मार ! सचमुच बहुत ही घटिया किस्म की प्रजाति है यह पुरूष वर्ग !

लेकिन जैसा कि अमूमन देखा गया है कि हर प्रजाति में थोड़ा बहुत भिन्न किस्म के प्राणी भी जन्म ले लेते है जो एक अपवाद बन जाते है ! ऐंसा ही अनुभव आपके साथ बाँटना चाहूँगा ! अभी पिछले हफ्ते रात करीब साड़े दस-ग्यारह बजे, भोजन के उपरांत, अपने पालतू कुत्ते को घुमा कर ला रहा था तो अपने मोहल्ले के नुक्कड़ वाले चौधरी साहब के घर के नीचे से जब गुजरा तो मुझे मिसेज चौधरी के चिल्लाकर बोलने और चौधरी साहब के चीखने की आवाज सुनाई दी ! मेरे पैर ठिठक कर रुक गए ! मिसेज चौधरी कहे जा रही थी " अरे थोड़ा तो शर्म करो , मच्छर को देखा है तुमने ? वह कितना बहादुर होता है , उसे यह पता होते हुए भी कि इंसान एक ताली बजा कर उसका काम तमाम करसकता है, फिर भी वह खून चूसने के लिए सायरन बजा कर जाता है ! और एक तुम हो .....".बीच बीच में किसी चप्पल अथवा झाडू नुमा चीज के बजने की भी आवाज आ रही थी और चौधरी साहब चीख रहे थे , अरे मेरी माँ... हाथ जोड़ता हूँ अब बस भी कर ...!

मैंने अभी जो थोडी देर पहले अपने टीवी पर वह घरेलु हिंसा वाला विज्ञापन देखा था मुझे तुंरत उसका स्मरण आ गया ! मुझे मेरी इंसानियत ने मेरी नैतिक जिम्मेदारी का अहसास कराया और मैं पहुँच गया सीधे उनके गेट पर ! मैंने गेट पर लगी बेल को जोर से बजाया और एक हाथ में कुत्ते की चेन पकड़े रखी और दूसरा हाथ कमर पर लगाकर अकड़कर थोड़ा तिरछा होकर खड़ा हो गया ! मिसेज चौधरी ने गेट खोलते हुए पुछा कौन है ? मैंने उस विज्ञापन वाले किरदार की तरह मिसेज चौधरी को घूरा तो वह तुंरत बोल पड़ी, ओये, ऐंसे क्या घूर रहा है, आँख निकाल दूँगी, मैं थोड़ा सहमा मगर अपने को फिर से नियंत्रित करते हुए रोबदार आवाज में बोला, थोड़ा दूध मिलेगा ? मिसेज चौधरी बोली , तो ऐंसे बोल न कि दूध चाहिए ! वह अन्दर गई दूध लेने और मैं खिसक लिया !

मगर तब गजब हो गया जब साड़े ग्यारह बजे रात मेरी गली में हंगामा खड़ा हो गया ! मिसेज चौधरी हाथ में दूध की कटोरी पकड़े खड़ी थी और मेरी पत्नी का नाम ले-लेकर आवाज दे रही थी ! मेरी पत्नी बाहर निकली तो उसने कहा, वो थारा खसम कहाँ है ? इत्ती रात गए दूध माग रहा था, ये ले, उसने दूध की कटोरी मेरी बीबी को पकडाई ! गेट बंद कर मेरी पत्नी हक्की - बक्की, क्रोध से लाल-पीली हुए अन्दर आई, मेरी तरफ़ खा जाने वाली नजरो से देखते हुए बोली, अच्छा तो उस दिन जो चाँद मुहम्मद बनने के जो सपने देखे जा रहे थे, वो सब इस चौधराहन की वजह से.... आज दूध मांगने गए थे..... ठहरो ! मैं पिलाती हूँ तुम्हे दूध... .... और फिर जनाब ...... क्या बताऊ ? मैं चीखता रहा मगर अडोष पडोश का कोई कमवक्त मेरे गेट पर घंटी बजाने नही आया, इसे कहते है, नेकी कर जूते खा...!