Sunday, February 8, 2009

जरुरत है उनके खुफिया तंत्र को समझने और उसे नेस्तनाबूद करने की !

भारत द्वारा पाकिस्तान को मुंबई हमलो पर दिए गए डोजिएर का बहुप्रतीक्षित जबाब शायद आज कल में मिलने की उम्मीद है, इस जबाब से मेरी नजर में, शायद भारत को खास उम्मीद नही रखनी चाहिए, मगर भारत का अगला कदम बहुत कुछ इस जबाब पर निर्भर करेगा, यह उम्मीद की जा रही है ! २६/११ के बाद दक्षिण एशिया क्षेत्र में जो आतकवाद और उससे जुड़े संगठनो के नए समीकरण उभर का सामने आए है, उसमे न सिर्फ़ हमारे देश को अपितु दुनिया भर के उन तमाम देशो, जो आतंकवाद के मुख्य निशाने पर है, उन्हें यह समझने की जरुरत है कि आतंकवाद का यह खतरा उनको न सिर्फ़ किसी खूंखार आतंकवादी संघठन से है, बल्कि सबसे बड़ा खतरा उस इंजीनियरिंग डिजायिनर से है जो इसका खाका और ड्राइंग तैयार करता है ! और इसमे कोई संदेह नही होना चाहिए कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी, आईएसआई, एक कुशल डिजाईन इंजिनियर की भूमिका दशको से बड़े ही अनुभवी ढंग से निभाती आ रही है! वो एक अंग्रेजी कहावत है कि अपराधी बिना पूछे बहुत सारे तर्क दे डालता है, हाल के जनरल मुसर्रफ के आईएसआई पर दीगयी सफाई को भी इसी दृष्टीकोण से देखा जाना चाहिए !

आपको याद होगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जब अपना चुनाव प्रचार कर रहे थे, तो उन्होंने पाकिस्तान की मौजूदा हालत पर कुछ ऐसे कठोर संकेत पाकिस्तान को दिए थे जिससे इनकी यह विश्व कुख्यात एजेंसी, बुरी तरह से डर गई थी ! और यही वजह है कि समय-समय पर भ्रमित करने के लिए यह अपने पुराने मातहत रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल हामिद गुल को आगे करदेती है, या यु कहे कि एक अनोखे किस्म का आंतरिक भय इस पुराने चीफ को आगे आने के लिए मजबूर कर देता है ! और यही भय इनकी जुबान से हाल में रावलपिंडी में हुई पाकिस्तान के उच्च पदस्त सैन्य और अन्य अधिकारियो की मीटिंग में इनके सिरकत करते वक्त निकल गया था जब इन्होने ख़ुद कहा कि पाकिस्तान अन्दर से बहुत डरा हुआ है औरवह ऐंसे हालत में परमाणु हमला भी करसकता है !


मार्च १९८७ में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जियाउल हक ने इन हामिद साहब को पाकिस्तान की खुपिया एजेन्सी आईएसआई का चीफ नियुक्तकिया था, इससे पहले ये सेना में रहते हुए, अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सी आई ए के लिए अफगानिस्तान में रुसी सेनावो के खिलाप काम करते थे और यूँ कहे कि इस क्षेत्र में सीआईए के दाहिने हाथ थे ! और भारत के खिलाप इन्होने ही वक्त-वक्त पर सुई चुभो कर खून बहाने की रूपरेखा (प्रोक्सी वार) बखूबी तैयार की थी ! पहले पंजाबमें, और फिर कश्मीर मैं और इसके अलावा असम और उत्तर पूरब के इलाको में सक्रीय नागा, मिजो और उल्फा संगठनों के चरमपंथियों को तैयार करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, और कहा तो यह भी जा रहा है कि इस देश में मावो और नक्श्ली गुटों को भी यही हथियार और उनके इस्तेमाल का प्रशिक्षण देने वालो में से है !

अब जो मुख्य बात मैं कहना चाह रहा हूँ वह यह है कि २६/११ के बाद अमेरिका ने जिन चार लोगो को संयुक्त राष्ट से आतंकवादी घोषित करने का आग्रह किया था उसमे से एक है, यह हामिद गुल साहब ! खैर मुझे नही लगता कि अमेरिकी राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में कोई ऐसा खास कदम उठाने वाले है जो कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकवाद की रीढ़ की हड्डी को तोडे सके , मगर फिर भी पाकिस्तान के आतंकवाद के इन आंकवो को कहीं न कहीं यह डर जरूर सता रहा है कि आने वाले वक्त में कुछ होगा जरूर ! और यही वजह थी इन हामिद साहब ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के समक्ष यह कहना शुरू कर दिया कि अमेरिका में घटित ०९/११ अमेरिका द्वारा स्वयं रचित एक ड्रामा था ! वैसे ये ख़ुद भी जानते है कि यह आरोप स्वयं में एक हास्यास्पद सी बात है मगर इनका मकसद कुछ और है , ये यह कहकर, या इस पर किताब लिखकर अंतराष्ट्रीय समुदाय को इस बहकावे में रखना चाहते है कि अमेरिका में हुए हमलो के बारे में पाकिस्तान की खुपिया एजेन्सी को कुछ नही मालुम, अगर इनको मालुम होता तो उसका चीफ इस तरह की उल-जुलूल बातें क्यो कहता ! जबकि वास्तविकता इससे बहुत परे है ! जिस तरह से ०९/११ और २६/११ हुआ उसमे बहुत सी समानताये थी और जिसमे से एक प्रमुख समानता थी, हिट एंड रन ! यानि मुख्य काम को अंजाम देने वाले या तो खुदा को प्यारे हो जाए या फिर वापस इनके पास पहुच जाए! आई एस आई के ब्लू प्रिंट के सिद्धांत के मुताविक ये पहले आप्शन यानि खुदा को प्यारा हो जाने को ज्यादा प्राथमिकता देते है ! अन्दर से इनके सपोर्टिंग एजेंट बहुत सारे रहे हो लेकिन वास्तविक घटना को अंजाम तक पहुचने वाले अलकायदा के ४ या ५ आत्मघाती और लस्करे तयिबा के सिर्फ़ १० कमांडो ही थे, जिसमे से आई एस आई के सर्बोत्तम ब्लूप्रिंट के ठीक विपरीत, इनके दुर्भाग्यबस एक कमांडो यानि कसाब जिन्दा हाथ आ गया , नही तो इन जनाब ने अब तक मुंबई हमले पर भी एक किताब लिख डाली होती और इसे भारत की भगवा ब्रिगेड का मालेगांव घटना से ध्यान बटाने का एक ड्रामा मात्र करार दिया होता !

मेरा यह मानना है कि अगर हमें अथवा पश्चिमी देशो को ईमानदारी से इस आतंकवाद के ताने बाने को ख़त्म करना है तो पहली जरुरत है, पाकिस्तान की इस बदनाम एजेन्सी को नेश्तनाबूद कर देना ! अगर भारत अथवा अमेरिका और नाटो संघटन इस कार्य में सफल हो जाए तो समझो कि आतंकवाद के खात्मे का ५० फीसदी काम पुरा हो गया ! हमें भी अपने देश के दुश्मन आतंकवाद के विरुद्ध उतनी सफलता पाकिस्तान पर प्रत्यक्ष युद्ध अथवा सर्जिकल स्ट्राइक से नही मिलेगी जितनी की इस एजेन्सी के खात्मे पर !अगर गौर से देखे तो अलकायदा और तालिबान का फिर से सिर उठाने की एक सबसे बड़ी वजह है आई एस आई ! यह आज तक इस तरह का रोल अदा करती आ रही है कि अमेरिका के साथ भी भले बन गए, और आतंकवादियों के साथ भी ! इसकी थोडी सी ख़बर उसे दे दो और उसकी थोडी सी ख़बर इसे दे दो और ख़ुद को भला आदमी साबित करो दोनों की नजर में ! जबकि वास्तविकता यह है कि यह दोना का ही एक खतरनाक शत्रु है!

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