Friday, May 1, 2009

लालची ब्लॉगर

मध्य-रात्रि का समय था। आसमान में घने-काले बादल रह-रहकर एक तेज कड़कन पैदा कर रहे थे । बिजली चमकती, तेज हवाए चलती, और उसके बाद फिर से बादलो की गडगडाहट । चौदह वर्षीय गूगुल प्रसव पीडा से छटपटाये जा रही थी, जिस इलाके में वह रहती थी, वहां से मुख्य शहर और नर्सिंग होम करीब ४० किलोमीटर दूर थे। अतः उसका मित्र माइक्रोसोफ्ट भी उसे घर से बाहर निकालने और अस्पताल पहुचाने में खुद को असहाय सा महसूस कर रहा था, क्योंकि तेज आंधी में सडको पर पेड़ गिरने और ड्राईव करने का ख़तरा वहाँ मौजूद था।

माइक्रोसोफ्ट अपने पास मौजूद एल सी डी प्रोजक्टर को अपने लैपटॉप से जोड़ सामने सफ़ेद दीवार पर यू ट्यूब की मदद से 'लाइव बर्थ' की वीडियो डॉक्युमेंटरी देख-देखकर, उसी प्रकार की हर संभव सहायता गूगुल को पहुचा रहा था। और आखिर वह घड़ी भी आ गयी, जब नन्हे मेहमान ने गूगुल की उस वृहत दुनिया में अपने कदम रखे। जब वह पैदा हुआ तो रोते हुए वह एक ही शब्द को बार-बार मुह से निकाल रहा था, ब्लॉग-ब्लाग-ब्लाग- ब्लॉग । अतः गूगुल और माइक्रोसोफ्ट ने प्यार से उसका नाम ब्लॉगर रख दिया।

ब्लॉगर धीरे-धीरे बड़ा होना शुरू हुआ, और शीघ्र ही वह अपने पैरो पर खडा हो गया। उसके युवा दिल में भी किसी कुख्यात ब्लौगर की भांति कुछ कर गुजरने की इच्छा थी। वह एक अच्छा साहित्यकार भी बनना चाहता था। उसने लगन के साथ लेखन की दुनिया में कदम रखा और कुछ उम्दा लेख, कविताएं और कहानिया लिखी । किन्तु उसके भाग्य में तो कुछ और ही लिखा था। एक दिन जब वह फुरसत पर अपने कंप्युटर पर इन्टरनेट सर्फिंग कर रहा था तो उसे एक साईट नजर आई । यह साईट अनेक धुरंदर ब्लागरो के चिट्ठो से पटी पडी थी। उसने देखा कि लोग पैसा कमाने के लिए क्या-क्या नहीं कर रहे थे। अतः उसका मन भी अमीर बनने के ख्वाब देखने लगा। उसने अपनी माँ, गूगुल की मदद से इन्टरनेट पर अपना भी एक खाता खोल डाला और अपने सभी लेखन वहां हस्तांतरित कर दिए । बस फिर क्या था, यकायक टिप्पणियों की मानो बाढ़ सी आ गयी। ब्लागर काफी खुश था, उसे आर्श्चय होता था कि जिसे वह अपना घटिया से घटिया लेख समझता था, लोग उस पर भी अपनी टिपण्णी देकर वाह-वाह करते थे, और साथ ही उसे अपने ब्लॉग पर आने को भी आमंत्रित करते थे।

अपरीपक्व ब्लोगर के दिमाग में यह देख अनेको प्रश्न उठते थे, वह हिंदी के अलावा पहाडी भाषा, बिहारी और ब्रज भाषा में भी लेख लिखता था, और उसे यह देख कर हैरानी होती थी कि ये लोग वहाँ भी अपनी टिपण्णी देकर वाह-वाह करते थे, और उसे अपने ब्लॉग पर आने को भी कहते थे। वह सोचता था कि ये लोग कितने ज्ञानी है जो इतनी भाषाओ को पढ़ और समझ सकते है । लेकिन उसका भरम शीघ्र ही टूट गया । चूँकि वह लोगो के ब्लॉग पर बहुत सोच-समझकर ही टिपण्णी देता था, इसलिए सभी ब्लोगर उससे रूठ गए और टिप्पणिया आनी बंद हो गयी । उसने जब इसका राज अपनी माँ गूगुल के पास से ढूंडा तो यह जानकर उसकी बांछे खिल गयी कि यहाँ भी एक तरह का अलग लोचा है, ये सब पैसे कमाने के पांसे है, लोग इसलिए उसे अपने ब्लॉग पर आमंत्रित करते है ताकि अधिक से अधिक लोग उनके ब्लॉग पर विजिट करे और यदि महीने में १००० से ऊपर लोग उनकी साईट पर विजिट करते है तो विज्ञापनदाता कंपनी (ऐडवरटायीजिंग एजेन्सी) से उनके पैसे पक्के।

ब्लोगर को भी लालच आ गया, और उसने भी वही हथकंडे अपनाने शुरु किये जो कुछ वह अपने गुरुओ से सीखा था। बस फिर क्या था उसका ब्लॉग एक बार फिर से टिप्पणियों से पट गया था। वह भी बिना सोचे और किसी के ब्लॉग को पढ़े बगैर ही धडाधड टिप्पणिया देता था, और पाता था । खासकर नए-नए आये ब्लोगरो पर उसकी ख़ास नजर रहती थी। उसकी यह सब हरकते देख, एक बार उसके एक मित्र ने उसे समझाने की भी कोशिश की कि टिपण्णी देना और किसी को प्रोत्साहित करना एक अच्छी बात है, लेकिन यह कहा तक उचित है कि तुम झूटमूठ में किसी के लेखन की तारीफ़ सिर्फ इसलिए करो, ताकि वह भी तुम्हारे ब्लॉग पर आये और तुम पैसे कमा सको ? वहाँ टिपण्णी दो और तारीफ़ करो, जहा लगे कि वाकई तारीफ़ करने लायक कोई चीज है और अगर वह लेखन में कोई गलतिया कर रहा है तो उसे उसकी कमियों की तरफ इशारा करो ताकि वह खुद को सुधार सके।

लेकिन लालची ब्लोगर पर कहाँ इसका कोई प्रभाव पड़ने वाला था, उसे तो दिन-रात बस टिपण्णी ही नजर आती थी । मगर कहावत है कि झूट की बुनियाद पर खडा महल ज्यादा दिन नहीं टिका रह पाता। ठीक वही ब्लोगर के साथ भी हुआ । लोग धीरे-धीरे उसकी हरकतों को समझने लगे और टिप्पणियाँ देना बंद कर दिया। लालची ब्लोगर का धंधा धीरे-धीरे ठप्प पड़ गया और इसी चिंता में उसका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। जब एक दिन उसकी तबियत बहुत बिगड़ गयी तो गूगुल उसे डाक्टर याहू के पास ले गयी। पूरे परीक्षणों के बाद डाक्टर याहू ने बताया कि उसे लाइलाज रोग ब्लॉग-फ्लू हो गया है ।

और एक दिन जब गूगुल इस बात से बेहद खुश थी कि उसको दुनिया के एक सर्वोत्तम ब्रांड से नवाजा गया है और वह अपने दोस्त माईक्रोसोफ्ट के साथ जश्न की तैयारियों में जुटी थी कि फिर से ब्लोगर की तवियत बिगड़ गयी और वह वक्त भी आ गया, जब एक सुखद उत्पति का दुखद अंत सामने था। ब्लोगर अपनी अंतिम साँसे गिन रहा था और टिपण्णी मांग रहा था। वह बार-बार टिपण्णी-टिपण्णी शब्द मुह से निकाल रहा था, मगर वहाँ उसको टिपण्णी देने कोई नहीं आया । गूगुल एक कोने में खड़ी भीगी पलकों से ब्लोगर को निहार रही थी और माइक्रोसॉफ्ट, गूगुल को दिलाशा देते हुए, किशोर दा का अमर प्रेम का वह गीत गुनगुना रहा था;
कुछ रीत जगत की ऐसी है, हर एक सुबह की शाम हुई
तू कौन है, तेरा नाम है क्या, सीता भी यहाँ बदनाम हुई
फिर क्यूँ संसार की बातों से, भीग गये तेरे नयना
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना
छोडो बेकार की बातो में कहीं.....................!

-गोदियाल

3 comments:

Mired Mirage said...

जन्म से लेकर मरण तक ! मुस्कराते हुए भी आँखें भीग रही हैं। :(
घुघूती बासूती

पी.सी.गोदियाल said...

घुघूती बासूती जी ,
शुक्रिया,
थैंक गोड़ !
किसी ने तो टिप्पणी दी, हा-हा-हा-हा.......!

गिरीश बिल्लोरे said...

Sahee observation
kal hee gandhi par aaye aalekh ko lekar man kshubdh huaa tha