अब तकरीवन दो हफ़्ते बाद (१६ मई ) इस चुनाव के परिणाम घोषित हो जायेंगे, और उसके बाद संसद मे नई लोकसभा के गठन की तैयारियां शुरु हो जायेंगी ! अगर किसी एक पार्टी को वांछित बहुमत नही मिला(जिसकी उम्मीद ना के बराबर ही है ) , तो समझो कि फिर वही जोड-तोड, वही पुराना घोडे-गधो का व्यापार(होर्स ट्रेडिंग) शुरु ! और आज के इस राजनैतिक दौर मे, अपने मौजूदा नेतावो से किसी अच्छे की उम्मीद रखना ही सरासर ज्यादती और खुद से बेईमानी होगी, खुद को धोखे मे रखने वाली बात है!
फिर भी एक नागरिक होने के नाते, मेरी इस बार की लोक सभा से कुछ अपेक्षायें थी ! जैसा कि आज सभी लोग जानते है कि हमारे नेतावो की साख, उनकी करतूतो और काले कारनामों से एकदम मिट्टी मे मिल चुकी है ! फिर भी अगर भारतीय राजनीति मे अभी भी कुछ ऐसे लोग है जो लोकतन्त्र की मर्यादा के प्रति सजग और निष्ठावान है, तो मै उन नेतावो/लोगो से यह निवेदन करूंगा कि जो नव-निर्वाचित सांसद लोक सभा में आयेंगे, वे शपथ ग्रहण के लिये जब जाये तो साथ मे अपने बच्चे अथवा पोते ( जो बाल-बच्चेदार नेता है), अथवा माता-पिता (जो युवा नेता है और अभी परिवार वाले नही है) को भी साथ ले जाये, और शपथ लेते वक्त उन बच्चो अथवा माता-पिता के सिर पर हाथ रखकर शपथ ले, ताकि आम जनता का आपके ऊपर कुछ भरोषा जागे ! मै जानता हूं कि जिनके खून मे ही भ्रष्ठता मौजूद हो वे तो इसका भी तोड निकाल लेगे, अतः उनका और उन अन्य नेतावों का जो भगवा धारणकर इस सांसारिक सुख से ही विमुख है, तो भगवान ही फैसला करेंगे !
दूसरा यह कि शपथ के सार को भी बदला जाना चाहिये ! सब जानते है कि ये लोग संविधान के प्रति कितने कर्तव्यनिष्ठ है, अत: उनकी देश भक्ति पर शंका न करते हुए, इनसे वो सब इम्ला बुलवाने की क्या जरूरत, सिर्फ़ एक लाइन की शपथ होनी चाहिये कि “ मै अपने बच्चे/ पोते/ माता/ पिता के सिर पर हाथ रखकर/ साक्षी मानकर, यह शपथ लेता हू कि इस लोकसभा/ राज्य सभा का सांसद रह्ते हुए मै, जाने, अनजाने किसी भी किस्म का भ्रष्ठ तरीका नही अपनाऊंगा” ! शपथ ग्रहण के बाद, रोज सुबह जब संसद की कार्यवाही शुरु हो तो सभी सदस्य के लिए यह अनिवार्य हो कि वे अपनी सीट पर खडे होकर इस संस्कृत के श्लोक को बोले- "मान्धाता च महिपति कृत्युगालंकार भू तो गत; … " और फिर लोक सभा / राज सभा के अध्यक्ष उसका हिन्दी और अंग्रेजी मे सदस्यों को अनुवाद बताये कि हे नेता !, हे सांसद , हे मंत्री ! , बड़े बड़े राजा महाराजा आये और गए, लेकिन किसी के साथ भी यह पृथ्वी,उनकी धन दौलत, कुछ भी साथ नहीं गया, सब यहीं छूट गया, लेकिन जिस तरह तुम लोग, भ्रष्ट तरीके अपनाकर धन बटोर रहे हो, दूसरो का बुरा कर रहे हो, उसे देखकर तो लगता है कि यह पृथ्वी और तुम्हारी ये सब धनदौलत जरूर तुम्हारे ही साथ जायेगी!
क्या सचमुच ऐसा हो पायेगा ? काश !
Thursday, April 30, 2009
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