Wednesday, July 29, 2009

लघु व्यंग्य- अरहर महादेव !

सावन का महीना है, इस पूरे मास में हिन्दू महिलाए प्रत्येक सोमवार को शिव भगवान् का व्रत रखती है, शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना करती है तथा उन्हें श्रदा-पूर्वक ताजे पकवानों का भोग चढाती है! आदतन आलसी और अमूमन थोबडा सुजाकर, मुह से हूँ-आई-इच की मधुर ध्वनि के साथ रोज सुबह खडा उठने वाला यह निठल्ला इंसान, पिछले सोमवार को थोडा जल्दी उठा गया था, और बरामदे में बैठ धर्मपत्नी के साथ चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अच्छे मूड में होने का इजहार उनपर कर चुका था, अतः ब्लैकमेलिंग में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल मेरी धर्मपत्नी ने मुझे जल्दी नाह-धोकर तैयार होने को कहा! मैंने यह शुभ कार्य मुझसे इतनी जल्दी निपटवाने का कारण उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि मुझे भी आज उनके साथ मोहल्ले के बाहर, सरकारी जमीन कब्जाकर बने-बैठे शिवजी के मंदिर में पूजा-अर्चना करने और भोग लगाने चलना है !

स्नान कर तैयार हुआ तो धर्मपत्नी भी किचन में जरूरी भोग सामग्री बनाकर तैयार बैठी थी, अतः हम चल पड़े मंदिर की और ! मंदिर पहुंचकर कुछ देर तक पुजारी द्वारा आचमन और अन्य शुद्धि विधाये निपटाने के बाद हम दोनों ने मंदिर के बगल में स्थित भगवान् की करीब दो मीटर ऊँची प्रतिमा को दंडवत प्रणाम किया, इस बीच धर्मपत्नी थाली पर भगवान् शिव को चढाने वास्ते साथ लाये पकवान सजा रही थी कि मैंने जोश में भगवान् शिव का जयघोष करते हुए कहा; हर-हर महादेव ! यह जय-घोष किया तो मैंने पूरे जोश के साथ था, मगर चूँकि पहाडी मूल का हूँ, इसलिए आवाज में वो दमख़म नहीं है, और कभी-कभार सुनने वाला उलटा-सीधा भी सुन लेता है ! अतः जैसे ही मेरा हर-हर महादेव कहना था कि अमूमन आँखे मूँद कर अंतर्ध्यान रहने वाले शिवजी ने तुंरत आँखे खोल दी, और बोले, ला यार, पिछले एक महीने से किसी भक्तगण ने भी दाल नहीं परोशी मुझे ! अरहर की दाल खाने का मेरा भी बहुत जी कर रहा है ! मगर ज्यों ही मेरी धर्मपत्नी ने भोग की थाली आगे की, शिवजी थाली पर नजर डाल क्रोधित होते हुए बोले, तुम लोग नहीं सुधरोगे, टिंडे की सब्जी पका कर लाया है और मोहल्ले के लोगो को सुनाने और गुमराह करने के लिए अरहर की दाल बता रहा है!

बकरे की भांति मै-मै करते हुए मैंने सफाई दी, भगवन आप नाराज न हो, मेरा किसी को भी गुमराह करने का कोई इरादा नहीं है ! दरह्सल आपके सुनने में ही कुछ गलती हो गई, मैंने तो आपकी महिमा का जय-घोष करते हुए हर-हर महादेव कहा था, आपने अरहर सुन लिया! अब आप ही बताएं प्रभु कि इस कमरतोड़ महंगाई में आप तो बड़े लोगो के खान-पान वाली बात कर रहे है, हम चिकन रोटी खाने वाले लोग भला आपको १०५ रूपये किलो वाली अरहर की दाल कहाँ से परोश सकते है? यहाँ तो बाजार की मुर्गी घर की दाल बराबर हो रखी है, आजकल एक 'लेग पीस' में ही पूरा परिवार काम चला रहा है ! और हाँ, ये जो आप टिंडे की सब्जी की बात कर रहे है तो इसे भी आप तुच्छ भोग न समझे प्रभु, ४५/- रूपये किलो मिल रहे है टिंडे भी !इतना सुनने के बाद भगवान शिव ने थोडा सा अपनी मुंडी हिलाई, कुछ बड-बडाये, मानो कह रहे हो कि इडियट,पता नहीं कहाँ से सुबह-सुबह चले आते है...........और फिर से अंतर्ध्यान हो गए !

Sunday, July 26, 2009

लघु कथा- सुजाता

सुजाता के पिता शहर मे बिजली विभाग के दफ़्तर मे वरिष्ठ कलर्क थे ! सुजाता के दादा जी की मृत्यु के तुरन्त बाद ही गांव की जमीन-जायदाद बेचकर उन्होने उसी शहर मे एक घर खरीद लिया था ! परिवार मे कुल ६ सदस्य थे, दादी मा, सुजाता के माता-पिता और तीन भाई-बहन, यानि सुजाता और उसके दो भाई ! पिता बडे ही निठुर और स्वार्थी स्वभाव के इन्सान है, लिहाजा उनकी इस निठुरता का ही परिणाम था कि सुजाता की मां को समय पर उचित चिकित्सकीय सहायता न मिल पाने की वजह से करीब सात साल पहले उनका निधन हो चुका था ! मां की मृत्यु के बाद घरेलू कामों का बोझ नन्ही सुजाता, जो तीनो भाई-बहनो मे सबसे बडी थी,के कन्धो पर आन पडा था, किन्तु जब तक दादी मां थी, उसे घर पर थोडा सा सहारा था, और वह अपनी पढाई जारी रखे थी, एवम जैसे-तैसे कर उसने दसवीं पास कर ली थी! किन्तु दो साल पहले दादी मां भी चल बसी, और तब से सम्पूर्ण घर की जिम्मेदारी उसी को सम्भालनी पड रही थी! पिता ने उसे दसवी से आगे पढाने से साफ़ इन्कार कर दिया था !

सुजाता की हार्दिक इच्च्छा थी कि वह पढ-लिखकर अध्यापिका बनेगी, लेकिन निष्ठुर पिता के आगे उसकी इतनी भी हिम्मत नही हुई कि वह इस बात की जिद कर सके कि वह आगे पढ्ना चाहती है ! पिता दफ़्तर तथा दोनो भाई जब स्कूल चले जाते थे तो घर का सारा काम-काज निपटाकर, वह लिखने बैठ जाती थी ! उसे कविता लिखने का बडा शौक था, वह अपनी डायरी मे कवितायें एवम गजल लिखती और फिर बार बार उसे पढ़ती! एक दिन पडोस की एक आन्टी, जो कि मोहल्ले के ही एक स्कूल मे अध्यापिका थी, उससे मिलने आई! वह उस समय भी अपनी डायरी मे एक कविता लिख रही थी, छुपाने की कोशिश करते-करते भी आन्टी ने डायरी देख ली थी, और बातों ही बातों मे उसने उसे वह डायरी दिखाने को कहा ! उसकी कवितायें एवं गजल पढ्कर उस आंटी ने कहा, अरे तू तो बहुत सुन्दर लिखती है, इन्टर्नेट पर अपना ब्लोग क्यों नही खोल लेती ? उसने कहा, आंटी मुझे इन्टर्नेट के बारे मे खास जानकारी नही है, और आप तो जानती ही है कि ……, इतना कहकर वह खामोश हो गई! आंटी ने कहा, एक काम क्यों नही कर लेती, रोज शाम को चार बजे के आस-पास एक घन्टे के लिये मेरे घर आ जाया कर, मेरे घर मे कम्प्युटर और नेट दोनो है, मै तुझे सब कुछ सिखा दूंगी! उसने उत्साहित होकर कहा, ठीक है आन्टी, वैसे भी मै कम्प्युटर चलाना अपने स्कूल के दिनो मे सीख चुकी हूं!

बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से उसका वह इन्टर्नेट पर ब्लॉग लिखना एक रुटीन सा बन गया था ! साथ ही उसे रोजाना थोडी देर के लिये मन बह्लाने का भी एक अच्छा खिलोना मिल गया था ! उसे यह मालूम नही था कि जो कुछ वह अपने ब्लोग पर डालती है, वह चिठठा जगत के माध्यम से ब्लोगर विरादरी की दुनियां मे तथा आम पाठको तक पहुंच जाता है! उस दिन तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा, जब उसे टिप्पणी के रूप मे उसकी कवितावों की तारीफ़ का एक जबाब मिला ! घर आकर वह रात भर यही सोचती रही कि आखिर उस शख्स को उसके ब्लोग के बारे मे पता कहां से चला? और फिर तो उसकी हर कविता और गजल पर उस शख्स की प्रतिक्रियाऒ का सिलसिला लगातार चलने लगा था!


शरद ऋतु की एक सुहाने भोर को उसकी संयोग से हुई वह पहली भेंट, जिसे उसने उस वक्त कोई खास तबज्जो नही दी थी, वो पल आज अचानक, उस नई सेज पर औंधे मुह लेटी सुजाता की आखों मे किसी हसींन सपने की भांति तैरने लगे थे ! वह हर उस पल को बारिकी से याद करने की कोशिश कर रही थी, जब वह अपने छोटे भाई को स्कूल-बस मे चढाने के उपरान्त, ज्यों ही अपने घर के लिये मुडी थी,तो सामने उसके ठीक दो फूट दूरी पर एक सिल्वर कलर की सैन्त्रो कार रुकी थी ! कार की ड्राइविंग सीट की खिड्की का काला शीशा जब धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा, तो सुबह-सुबह अपने मोहल्ले के बाहर की उस निर्जन सडक पर अकेली सुजाता एकदम चौकन्नी हो गई थी ! कार की खिड्की का शीशा जब पूरा खुल चुका तो उसमे से करीब २६-२७ साल के सुन्दर-सजीले युवक ने खिड्की से गर्दन बाहर निकालते हुए सुजाता से पूछा: ए़क्सक्युज मी, ये मेन हाईवे पर पहुंचने के लिये कहां से जाना होगा? उस युवक के पूछ्ने पर सुजाता उसके थोडा और निकट जाकर उसे दिशा समझाने लगी कि आगे टी प्वाइंट पर पहुचकर दाई तरफ़.............. सीधी हाइवे पर पहुंचती है ! यह सब बताने के बाद उस युवक ने सुजाता के खुबसूरत चेहरे पर नजरें गडाते हुए, अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरी और थैंक्यु सो मच, आइ एम संयोग पालीवाल, कहते हुए अपना दायां हाथ खिड्की से बाहर निकाल सुजाता की ओर बढाया! अप्रत्याशित इस पेशकश पर सुजाता सकपका सी गई और चेहरे पर शुन्यता लिये ही, एक बार आगे पीछे देखने के उपरांत उसने भी अपना हाथ युवक के हाथ की तरफ़ बढाते हुए धीरे से कहा, सुजाता ! उस युवक ने उसे मुस्कुराते हुए ’थैक्स अलौट’ कहकर गाडी आगे बढा दी थी, मगर सुजाता उसके इस अचानक हाथ पकडने से खुद को कुछ असहज सी मह्सूस कर रही थी! क्षणिक खडे रहने के बाद वह अपने घर की दिशा मे यह बड्बडाते हुए मुडी कि कमीना, होगा बिग्डैल किसी बडे बाप की औलाद, मुझे अकेला देख छेडने के लिये जानबूझ कर अनजान बन, रास्ता पूछ्ने का यह बहाना कर रहा होगा !

मगर फिर घर आकर वह उस घट्ना को एकदम भुला बैठी थी, और अपने घर के काम-काज मे जुट गई ! शाम को जब पुन: वह आन्टी के घर नॆट पर अपना ब्लौग चेक करने गई, तो उसके दिलो-दिमाग पर एक हल्का झट्का सा उस नई आई प्रतिक्रिया को पढ कर लगा, जिसमे उस शख्स ने दो शेर लिखे थे, शेर कुछ इस तरह के थे ;

हमारे आवारा दिल को राह चलते सरेआम, आज कोई ठग गया ,
यादों के किसी कोने मे हमारे भी, ख्वाब आशिकी का जग गया !
पता नही ये उनकी खुबसूरती का जादू है या मेरे दिल की लगी,
इसी कशमकश में हूँ कि अचानक मुझे ये रोग कैसा लग गया !!
XXXXXX
सुर्ख ख्वाबो को ऐ काश ! बहार मिल जाये,
टुकडो मे सही मगर सच्चा प्यार मिल जाये,
मै फिर दुआ मांगने लगू खुदा से कि हे खुदा,
मुझे थोडी सी और जिन्दगी उधार मिल जाये !

प्रतिक्रिया को पढकर न जाने उसे क्यों लग रहा था कि हो न हो, यह वही शख्स है, जो उसे सुबह रास्ते मे मिला था ! वह इन्हीं विचारों मे खोई अपने घर लौटी, तो अमूमन शाम छह बजे के बाद लौटने वाले उसके पिता, आज पांच बजे से पहले ही घर लौट आये थे ! और उसे घर मे न पाकर आग-बबूला हुए जा रहे थे ! जब वह घर के अन्दर पहुची तो लगे उसे खरी खोटी सुनाने, कि मै देख रहा हूं कि आजकल तेरे बहुत पंख लग गये है ! कल से तू घर से बाहर नही जायेगी, मैने तेरे लिये एक बडे घर का लड्का ढूंढ लिया है, और अब जल्दी तेरी शादी होने वाली है! पिता की बातें सुनकर वह एकदम घबरा गई थी, बहुत रोई, गिडगिडाई कि मै अभी बहुत छोटी हू, उस रात उसने खाना भी नही खाया, लेकिन पिता पर उसका कोई फर्क नही पडा ! उसके बाद से वह बस यही सोचती कि आखिर एक बडा घराना क्यों उनके घर से रिश्ता जोडना चाहता है जबकि वह पढी-लिखी भी खास नही है, जरूर कोई ऐसी-वैसी बात होगी, जो वे लोग उसका रिश्ता मांग रहे है ! मगर उसके पिता थे कि उसकी कोई भी बात सुनने को राजी न थे !

और फिर एक महिने बाद एक सादे समारोह मे उनके ८-१० रिश्तेदारो और जान-पह्चान वाले लोगो के सामने मन्दिर मे उसका हाथ एक अजनबी को थमा दिया गया, यह देखकर वह हैरान थी कि वह अजनबी और कोई नही बल्कि वही संयोग नाम का व्यक्ति था, जो उस दिन उसे कार मे से रास्ता पूछ रहा था ! संयोग की तरफ़ से भी शादी मे सिर्फ़ उसके चार दोस्त ही आये थे और कोई नही था! किसी अनहोनी की आशंका के बीच सुजाता अपने घर से विदा हुई ! वहां से सीधे अपने घर न ले जाकर संयोग उसे एक होटल मे ले गया जो उसने पहले से बूक करवाया हुआ था ! दुल्हा-दुल्हन को होटल मे छोड, संयोग के साथ आये दोस्त भी शाम को पार्टी में मिलने की बात कहकर विदा हो गये ! गाडी पार्क कर संयोग, सुजाता को होटल के एक कमरे मे ले गया, सुजाता अन्दर से बहुत डरी हुई थी और हो भी क्यों न, किसी ने भी अब तक उसे यह नही बताया था कि परम्परा से हटकर आखिर यह सब कुछ हो क्या रहा है ? कमरे मे पहुच संयोग ने सुजाता को बेड पर बिठाया और खुद सामने टेबल के ऊपर रखी पानी की बोतल को दो गिलासों मे उडेल कर एक गिलास सुजाता की तरफ़ बढाते हुए बोला, मुझे मालूम है कि तुम इस तरह खुद को बडा अनकम्फ़ोर्टेबल मह्सूस कर रही हो, वैसे तो मेरे बारे मे आपको आपके पिताजी ने थोडा बहुत बता ही दिया होगा फिर भी पानी पीकर थोडा रेले़क्स हो लो, फिर मै पूरी बात समझाता हू !

थोडी देर तक कमरे मे सन्नाटा छाया रहने के बाद सुजाता के बगल मे बैठे संयोग ने खामोशी को तोडते हुए बोलना शुरु किया ! तुम सोच रही होंगी कि यह किस तरह की शादी है ? न कोई बैन्ड, न कोई धूम धडाका, न कोई घर, न परिवार और न कोई नाते-रिश्तेदार ! मै पेशे से इन्जीनियर हूं और यहां बिजली विभाग मे एग्जीक्युटिव इंजीनियर के पद पर कार्यरत हू ! पहले मेरी पोस्टिंग दूसरे शहर मे थी, लेकिन अभी दो महिने पहले ही मैने अपनी पोस्टिंग यहां करवाई ! मेरा परिवार एक पहाडी कस्बे मे ही रह्ता है और हालांकि मेरे पिता वहां के एक प्रमुख बिजनेस मैन है मगर वे लोग बहुत ही पुराने खयालातो के लोग है ! मेरी जन्मपत्री के हिसाब से पंड्त लोगो ने मेरे परिवार को बताया कि मेरे ग्रह उनके लिये ठीक नही है और अगर वे लोग मेरी शादी करेंगे तो मेरे पिता की जल्दी ही मौत हो जायेगी ! लेकिन अगर मैं अपनी मर्जी से खुद कहीं अलग जाकर शादी करता हूं तो फिर उनके लिये इसमे कोई अपशगून नही है ! इसी के चलते मेरे परिवार वालों ने मुझे खुली छूट दे रखी है कि मै अपनी पसन्द और मर्जी से शादी कर सकता हूं ! हालांकि पहले मैने यह तय किया था कि मै जिन्दगी भर कुंवारा ही रहुगा, मगर यहाँ सब अपनी मर्जी का कहाँ होता है, तुम मिली तो ख्यालात ही बदल गये !

अब आशंकित सुजाता ने, जो अब तक खामोश बैठकर ध्यान से संयोग की बातें सुन रही थी, चुप्पी तोडते हुए पूछा कि आपने उस दिन सड्क पर मुश्किल से दो मिनट की मुलाकात मे मुझमे ऐसा क्या देख लिया कि आपके ख्यालात ही बदल कर रह गये? संयोग थोडा सा मुस्कराया और फिर उसने उसे ब्लॉग की वह सारी कहानी बताते हुए कहा कि दरसहल मुझे भी लेखन का शौक है, और जब मैने चिठ्ठा जगत पर तुम्हारा ब्लोग पढा तो मै तुम्हारी लेखनी का दीवाना हो गया था, और उस दिन जब मै ब्लोग पर मिले तुम्हारे पते को ढूढ्ते हुए तुम्हारे इलाके मे एक दोस्त के यहां रात को रुका था, और उसके यह बताने पर कि तुम रोज सुबह अपने भाई को स्कूलबस मे चढाने अमूक स्थान पर जाती हो, तो मैने तुम्हारी एक झलक पाने के लिए वह सारा नाट्क किया था, मुझे तब अपनी मंजिल और आसान नजर आने लगी, जब मुझे मालूम पडा कि तुम्हारे पिता भी हमारे ही विभाग मे कार्यरत है ! मैने जब उन्हे सारी स्थिति समझाई तो वे तुरन्त तैयार हो गये! संयोग की बाते सुनकर मानो सुजाता की खुशी का ठिकाना न था, उसके मन मे संयोग के लिये प्यार किसी सितार के एक-एक तार की तरह बज उठे थे! उसे लग रहा था कि मानो उसके पखं उग आये हो और वह अभी उड जायेगी! उसे विस्वास नहीं हो रहा था कि सचमुच उसकी किस्मत ने इतनी ख़ूबसूरत करवट बदली है अथवा वह महज एक सपना देख रही है! उसने तो सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि उसे जीवन साथी के तौर पर इतना सुन्दर और सर्वगुण संपन्न साथी मिल जाएगा! उसकी अंतरात्मा इस उपलब्धि के लिए बार-बार एक ही वाक्य दोहरा रही थी, 'थैंक्यू आंटी, थैंक्यू ब्लॉग, थैंक्यू चिठ्ठा-जगत' !

Thursday, July 16, 2009

भगवान् भरोशे ही चल रहा है यह देश !

हर तरफ अराजकता , बदइन्तजामी, चरमराई कानून व्यवस्था और पंगु न्याय व्यवस्था क्या यही सब कोंग्रेस का तथाकथित सुशासन है ? राज्यों में जो कुछ भी हो रहा है, क्या केंद्र इसके लिए जिम्मेदार नही ? आज तडके गाजियाबाद से आते वक्त दिल्ली के बोर्डरो की स्थिति देख लगा जैसे इस देश में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज़ ही नहीं रह गई है! हजारो की तादाद में माल से लदे ट्रको को पिछले तीन दिनों से दिल्ली के बॉर्डर पर रोक कर रखा गया है ! करोडो रुपये का सामान इन ट्रको में सड़ने लगा है ! एन सी आर की यातायात व्यवस्था चरमरा गई है, दफ्तरों और व्यवसाय के लिए दिल्ली आने वाले लोग परेशान है !

अंधेर नगरी, दxxx राजा !

अभद्र भाषा जिसके भी द्बारा और जिस रूप में भी प्रयोग की जाए, वह हमेशा नंदनीय है ! किन्तु जो इंसान उस अभद्र भाषा को किसी और रूप में एक माध्यम बनाकर अपने लाभार्थ प्रयोग करे, वह उससे कहीं ज्यादा निंदनीय है! श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी ने कल मुरादाबाद में सुश्री मायावती के सम्बन्ध में जो तथाकथित अपशब्द कहे, उन्हें हम एक सभ्य शब्दावली की श्रेणी में नहीं रख सकते ! लेकिन आइये देखे कि उन्होंने क्या शब्द इस्तेमाल किये थे:

"उत्तरप्रदेश में जिन लड़कियों का बलात्कार किया गया है और ह्त्या हुई है, उनके लिए 75,000 रुपये का मुआवजा प्रयाप्त है ? मायावती ने हेलीकाप्टर की सवारी पर इन लड़कियों को देखने के लिए 5 लाख रुपए खर्च किए,पहले वह मेरठ गई और फिर गाजिआबाद, और आखिरकार उसने उस लडकी को 75,000 रुपये दिए, जिसकी ह्त्या हुई, इन लड़कियों को मायावती से कहना चाहिए कि कोई उसके साथ भी @##*! करे, और तब वे क्षतिपूर्ति के रूप में उसे 1 करोड़ रुपए दे देंगे. " !

अब आप खुद ही इस बात का आंकलन करे कि इन शब्दो में कहाँ तक और कितना, एवं किस परिपेक्ष में अभद्र भाषा का प्रयोग हुआ है, और श्रीमती रीता बहुगुणा इसके लिए किस हद तक दोषी है! लेकिन जो बात मुझे इस पूरे प्रकरण में विचलित करती है, वह यह है कि श्रीमती बहुगुणा को SC & ST (Prevention of Atrocities Act) की धारा ३(१) तथा १० के अधीन गिरफ्तार किया गया है ! जोकि यह साफ़ परिलक्षित करता है कि दलित समुदाय के लोग अपने विरोधियों (दूसरे समुदाय के लोगो) को प्रताडित करने के लिए इस कानून का बेजा इस्तेमाल अथवा दुरुपयोग कर रहे है ! आप उपरोक्त उद्घृत श्रीमती बहुगुणा के भाषण से सहज अंदाजा लगा सकते है कि उसमे दलित वर्ग से सम्बंधित कोई अपशब्दावाली कहाँ पर इस्तेमाल हुई है?

मायावती यह भूल रही है कि वे एक दलित महिला बाद में है और एक प्रदेश की मुख्यमंत्री और राजनेता पहले है, सिर्फ़ दलित होने का मतलब यह नही की उन्हें निरंकुश राज करने की छूट मिले और जिस प्रकार से आज प्रदेश में क़ानून और व्यवस्था की स्थिति है, मुख्यमंत्री होने के नाते वे अपने दायित्व से बच नही सकती ! कोंग्रेस तो अपने ही बोए हुए बीजो की फसल काट रही है, किंतु लोकतंत्र में यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब और उसके परिणाम, इस तरह की नादिरशाही है,तो भगवान् बचाए इस देश को! साथ ही यदि दलित भी Might is Right की नीति का समर्थन करते है, तो फिर यही सब करने के लिए लिए उच्च जाति वर्ग के प्रति उनका आरोप महज एक छल है !

Tuesday, July 14, 2009

लघु कथा- अच्छी खबरों वाला चैनल !

करीब दस साल पहले मेरी मिश्रा जी से पहली बार तब मुलाक़ात हुई थी, जब मैं अपने नए मकान में प्रवेश से पूर्व पुताई करवा रहा था, और वे मेरे मकान से कुछ दूरी पर स्थित एक प्लाट को खरीदने के विचार से उसे देखने वहाँ आये थे ! लघु परिचय में उन्होंने बताया कि वे एनआरआई है, और अमेरिका में रहते है! फिर मैंने उनसे पूछा था कि आप इनवेस्टमेंट पॉइंट आफ व्ह्यु से प्लाट खरीद रहे होंगे, तो उनका जबाब था नहीं, बुढापे के लिए खरीद रहा हूँ ! लेकिन आपने तो बताया कि आप अमेरिका में सेटल्ड है? मैंने फिर सवाल किया ! वे बोले, सो तो है, मगर वह हम जैसे लोगो के लिए बुढापे में रहने लायक जगह नहीं है, सोचता हूँ कि एक कुटिया इंडिया में बनाकर अपना बुढापा शांति से काटूं !

कुछ दिनों बाद उन्होंने वह प्लाट खरीद लिया था, और फिर वे मेरे घर पर आये थे, यह बताने कि उन्होंने वह प्लाट खरीद लिया है, और परसों वे वापस अमेरिका जा रहे है, अतः हम लोग उनके प्लाट का भी ध्यान रखे! मैंने उन्हें आस्वस्थ किया कि जब तक हम लोग यहाँ पर है, आप लोग बिलकुल भी चिंता न करे ! चाय की चुस्किया लेते-लेते उन्होंने अपने कुछ खट्टे-मीठे अनुभव भी हमे सुनाये, जो कि अकसर विदेश में रहकर आया हर भारतीय लौटने पर यहाँ के हालात की तुलना विदेश से कर, सुनाता है ! लेकिन उनका एक अनुभव मुझे और मेरी पत्नी को काफी रोमांचित कर देने वाला लगा था, और तब से अक्सर उनकी उस बात को याद कर हम फुरसत के पलों में खूब हंसते थे ! हुआ यह था कि बहुत साल पहले जब वे अपनी पत्नी और दस वर्षीय बेटे के साथ भारत भ्रमण पर आये तो मुंबई उतरे थे ! वहाँ एक दिन घूमते वक्त वे लोग सी एस टी स्टेशन पर पहुंचे तो लोगो की भारी भीड़ में उनकी पत्नी उनके बेटे का हाथ, अपने हाथो में पकडे चल रही थी, कि कब बेटा, माँ से हाथ छुडा, बगल से चल रहे अपने पिता का हाथ पकड़कर चलने लगा, उनकी पत्नी को पता भी न चला ! बात यहीं तक सीमित रहती तो अलग बात थी, किन्तु हद तो तब हो गई जब उनकी पत्नी ने अपनी ही धुन में बगल में चल रहे एक ठिगने से व्यक्ति का मजबूती से हाथ पकड़ लिया और खींचते हुए उसे अपने साथ ले जाने लगी! वह व्यक्ति गुहार लगाए जा रहा था कि दीदी आप मुझे कहाँ ले जा रही है.... दीदी मेरा हाथ छोड़ दो आप मुझे कहाँ ले जा रही है ! और दीदी थी कि उसे अपने बेटे का हाथ समझ खींचे जा रही थी ! काफी देर बाद जब मिश्रा जी का ध्यान उस और गया और उन्होंने पत्नी को बताया तो सभी वह देखकर खिसियाये से रह गए, और फिर उस व्यक्ति को सॉरी बोलने के बाद एक साथ जोर से हंस पड़े !

अभी छः महीने पहले एक दिन शाम को मै जब दफ्तर से घर लौटा तो मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि आज मिश्राजी आये थे, और जल्दी अपने मकान का काम शुरू करवा रहे है! फिर करीब चार महीने में उनका मकान बनकर तैयार हो गया था! इस बीच वे मुझसे चार-पांच बार मिल चुके थे! वे शायद किसी गेस्ट हाउस में रह रहे थे और फिर एक दिन वे और उनकी पत्नी अपने नए मकान में शिफ्ट हो गए!

अपने इस नए मकान में शिफ्ट होने के बाद कल जब मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई तो उनके चेहरे से असंतुष्टी साफ़ झलक रही थी! मैंने पूछा, मिश्राजी, नए घर में आप संतुष्ट तो हो न, कोई दिक्कत, परेशानी तो नहीं है? उन्होंने अपने दाहिने हाथ कि उंगली से अपने कान के ऊपर के बालो को थोडा सा खुजलाया और फिर बोले, गोदियाल जी, अब आप से क्या छुपाये, बस ये समझो कि दिक्कत ही दिक्कत है ! सोचा कुछ और था, मिला कुछ और! बस, यूँ समझिये, शकुन कही भी नहीं है ! आज बिजली का बिल भरने बिजली के दफ्तर गया तो वे कहने लगे कि आपका मीटर कम कैपसिटी का लगा है जबकि आप बिजली अधिक खर्च कर रहे है, अतः आपको मीटर की कैपसिटी बढ़वानी होगी ! फिर थोडा रूककर वे बोले, अच्छा एक बात बताइये गोदियाल जी, आपने अपने टीवी पर कनेक्सन कौन सा लिया है ? मैंने कहा, केबल का कनेक्सन है, लेकिन यह बात आप क्यों पूछ रहे है ? वे बोले, मैंने भी केबल का ही कनेक्सन लगाया हुआ है लेकिन कोई भी अच्छी खबरे देने वाला चेनल उस पर नहीं आता! जिस भी न्यूज़ चैनल पर जावो, जिस भी अखबार को पढो, बस मार-धाड़, लूट, ह्त्या, दुर्घटना और घोटालो की ही खबरे सुनने और पढने को मिलती है! मैं यह जानना चाहता था कि कोई ऐसा चैनल अथवा अखबार भी है जो सिर्फ अच्छी खबरे देता हो ?

मैंने उनके अन्दर के दर्द को भाँपते हुए उन्हें समझाया, मिश्राजी, आप तो जानते ही है कि हमारे देश ने सदियों से सिर्फ लूट-खसोट, मार-धाड़ और कत्ल के सीन ही अधिक देखे है, इसलिए यहाँ के लोग यही सब देखने-सुनने के आदी हो चुके है, अब आप ही बताइये कि जहां सिर्फ ऐसे दर्शक और पाठक हों जिन्हें बस अप्रिय देखना और सुनना ही भाता हो, वहां भला सिर्फ अच्छी खबरे दिखाने वाला चैनल सर्वाविव कैसे करेगा ? अमूमन हर बात पर थैंक्यू बोलने वाले मिश्राजी, मेरी बात सुनकर थैंक्यू गोदियालजी कहकर धीमे कदमो से अपने घर को चल दिए, और मैं यही सोचता रहा कि काश, क्या सच में कभी ऐसा वक्त आयेगा, जब इस देश में सभी खबरी संचार माध्यम, अच्छी और सिर्फ अच्छी खबरे ही लोगो को दे रहे हो ??!!

Friday, July 3, 2009

पापा ये समलैंगिक क्या होता है ?

जी जनाव, जिसका मुझे डर था, आखिर वही हुआ ! इन मीडिया वालो को तो कोई मुद्दा मिलना चाहिए बस , फिर ये लोग यह नहीं देखते कि उस बात का हमारे समाज में प्रौढ़ वर्ग पर क्या असर पड़ रहा है ! उन्हें कितनी जिल्लत झेलनी पड़ती है ? इन्हें तो बस अपनी टी आर पी बढाने की चिंता रहती है !वैसे यहाँ यह बात भी इंटरेस्टिंग है कि अक्सर हम लोग विषम बातो पर ही ज्यादा बहस करते है, लेकिन वो कहावत भी है कि हर कुत्ते के दिन फिरते है, इसलिए आजकल हम जोर-शोर से "सम" बातो पर बहस कर रहे है !

कल, जब से इस विषय पर न्यायालय का फैसला आया, तभी से टीवी खोलने से बच रहा था, लेकिन सिर्फ मेरे टीवी न खोलने भर से क्या होता है, छोटे ठाकुर ने तो कई बार देख डाला तब से, और आखिर जब जनाव के अन्दर का कौतुहल अपनी सारी हदें पार कर गया तो रात को खाने की टेबल पर उन्होंने पूछ ही डाला " पापा ये समलैंगिक क्या होता है ?"

मैं यह सुनकर थोडा सकपकाया जरूर, मगर फिर मैंने खुद को संभालते हुए एक अच्छे पिता की भांति इस तरह समझाया:
बेटा ये अंगरेजी के तीन शब्दों से मिलकर बनता है :Sum+Lain+Geek

१. Sum: To add two or more numbers togather
2. Lain: .Past participle of the word "lie"
3. Geek: A person who isn't into all the popular things

तो बेटा, इसका कुल मिलाकर यह अर्थ होता है कि जो लोग प्रचलित चीजो में शामिल नही होते और झूट-मूठ के नम्बरों को जोड़ने की कोशिश करते रहते है, उन्हें समलैंगिक कहते है! तो जनाव, मैंने तो फिलहाल इस तरह से अपना पिंड छुडा दिया, लेकिन एक और बात का डर सता रहा है कि कहीं वह फिर से यह न पूछ बैठे कि पापा ये बतावो कि विषमलैंगिक और उभय लैंगिक क्या होता है ?

और हाँ, आप भी कोई संतुष्ट उत्तर ढूंढ के रखियेगा अपने पास, हो सकता है कि आप को भी इसी तरह के प्रश्नों से दो-चार होना पड़े !

Wednesday, July 1, 2009

यहाँ एक हरागढ़ भी है !

हाल के दिनों में लालगढ़ की खूब चर्चा है! यूँ तो यह लालगढ़ एक लम्बे समय से अमन पसंद लोगो के लिए चिंता का बिषय बना हुआ है, किन्तु यह प्रकाश में तभी आया, जब अपने को गरीबो और बेसहारों का मसीहा बताने वाले का अपना खुद का घर, अपनी खुद की लगाई आग की उन लपटों में घिर गया, जिन लपटों से वह आजतक दूसरो का घर जलाता आया था! और अब हमारे अर्ध-सैनिक बलों के जवान, दिन रात कड़ी मेंहनत करके इसे उन लाल-पसन्द लोगो के चंगुल से छुडाने का हरसंभव प्रयास कर रहे है!

यूँ तो इस देश में सदियों पुरानी परम्परा के चलते कदम-कदम पर अनेको गढ़ है, लेकिन अब लालगढ़ से भी भयावह बनता जा रहा एक और गढ़ है, हरागढ़ ! जो देश की राजधानी दिल्ली से सटा पश्चमी उत्तर- प्रदेश का इलाका है, और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पड़ता है! पिछले १०-१५ सालो से इस प्रदेश में मौजूद कुशासन और हर तरफ व्याप्त भ्रष्टाचार ने यहाँ की कानून-व्यवस्था की स्थिति को जर्जर करके रख दिया है! यहाँ पर भरी दोपहर में भी सडको पर मोटरसाइकिलों पर अराजकता और लूट-पाट का नंगा नाच देखना एक आम बात हो चली है ! हर मोड़ पर अपराधियों के गढ़ है, और हैवानियत इस कदर बढ़ चुकी है कि इंसान को लूटते वक्त अगर उसके बदन पर पहने कपडे भी इनको पसंद आ गए, तो उन्हें भी उतार कर ले जाते है ! किसी महिला के गले में चेन नहीं है, मगर कानो पर कुंडल है तो उन्हें निकालने के लिए, उसके कान काटने से ज़रा भी नहीं हिचकिचाते !

जरुरत है समय रहते इसे रोकने की, जरुरत है यहाँ पर भी लालगढ़ जैसा सैनिक अभियान चलाने की ! वरना कहीं ऐसा न हो कि बहुत देर हो जाए और इसकी लपटों में दिल्ली भी जल उठे !