Thursday, September 4, 2008

इस देश को भगवान् भी नही बचा सकता ! - सुप्रीम कोर्ट

तो नौबत यहाँ तक आ पहुँची है ! एक नागरिक को न्याय पाने के लिए देश की जिस सर्वोच्च संस्था पर आखिरी भरोषा रहता है वही अगर इस तरह के रिमार्क्स दे रही हो तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थिति किस हद तक बिगड़ चुकी है ! हमारे ये पालनहार, जिन्हें देश चलाने की जिम्मेदारी सौपी गई है उनका भद्दा चेहरा हाल ही में देश ही नही अपितु दुनिया देख चुकी है ! परमाणु डील का दुस्वप्न दिखा कर वास्तविक समस्याओ की जानबूझ कर अनदेखी की जा रही है ! अपनी नाकामयाबियों को छुपाने के नए नए मुद्दे देश के समक्ष लाये जा रहे है ताकि वास्तविक और ज्वलंत मुद्दों की तरफ़ से लोगो का ध्यान बंटाया जा सके !
जैंसा की मैंने पहले कहा,स्वार्थ सिद्दी के लिए देश की बागडोर एक चालाक विदेशी मूल की महिला ने एक बेहद अक्षम------ इंसान को प्रोक्सी के तौर पर सौंफ रखी है ! जिस इंसान में आत्म सम्मान नाम की वस्तु है ही नही ! अगर ये वस्तु इस इंसान में होती तो हाल में हुई सारी घटनावो की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए तुंरत पद छोड़ चुका होता ! ये लोग एक नुक्लियेर डील की दुहाई दे कर यह भूल चुके है कि पिछले चार सालो में इन्होने देश का बेडा गरक कर दिया है ! चाहे वह आर्थिक क्षेत्र हो, राजनैतिक क्षेत्र हो, धार्मिक क्षेत्र हो, सुरक्षा क्षेत्र हो अथवा सांस्कृतिक क्षेत्र हो , हर मोर्चे पर यह सरकार नाकामयाब सिद्ध हुई ! न जाने आगे क्या होने वाला है जब भगवान् भी इस देश को नही बचा सकता है !

गुलाम मानसिकता

कहने को इस देश को आजाद हुए ६१ साल हो गए, लेकिन मानसिक रूप से क्या सचमुच हम आजाद हुए ? तथाकथित आज़ादी से पहले भारत में दो वर्ग होते थे , एक शासक और दूसरा गुलाम ! और आज क्या है? आज भी तो वही है ! आज़ादी के बाद हमने अपना संविधान बनाया लेकिन भारतीय राजनीति का आधार क्या हो, इस पर चिंतन करना भूल गए ! यही वजह है कि स्वतंत्रता के बाद से जब भी आम चुनाव हुए भारतीय जनता की मानसिकता राजा और प्रजा के भाव में ही सिमित रही !
आज सोचता हु कि आज़ादी के बाद भी हम भारतीय गुलामो ने पिछले ६० सालो में सिवाए राजावो की जय-जयकार और चाटुकारिता के सिवाए किया क्या ? ६० और ७० के दशक में हमने राजकुमारी इंदिरा की जय-जयकार की ! ७० से ८० के दशक में हमने राजकुमार संजय की जय-जयकार की , ८० से ९० के दशक में हमने राजकुमार राजीव की जय-जयकार की, ९० से २००० के दशक में हमने राजबहू सोनिया की जय-जयकार की, आज भी कर रहे है मगर आज के दशक में एक राजकुमार राहुल भी आ गए है और आजकल हम, हमारा मीडिया , हमारे प्रचार मध्यम सिर्फ़ उन्ही की जय-जयकार में लगे है , वह कहा गए, रस्ते में उन्होंने किस दलित के बच्चे को गोदी में उठाया, किस अल्पसंख्यक महिला से गले मिले, रात को किस दलित के घर में सोये, उनका अपने शादी के बारे में क्या ख़याल है उनको कैसे लड़की की तलाश है........... उफ़ ! मुझे लग रहा है की इन गुलामो को राजवंश की चिंता सताने लगी है की कही अगर युवराज ताउम्र कुवारे रहे तो आगे चलकर ये किसकी जय-जयकार करेंगे ?