Monday, November 30, 2009

घुन लगी न्याय व्यवस्था और न्यायिक आयोगों का औचित्य !

गौर से देखे तो आज हमारी पूरी क़ानून व्यवस्था ही एक जर्जर अवस्था में पहुँच चुकी है । जो अंग्रेजो के काल से चली आ रही जटिल न्यायिक व्यवस्था इस देश में मौजूद है वह आज अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। और यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश के तथाकथित तीन महत्वपूर्ण किन्तु भ्रष्ट खम्बो में से एक जो यह खम्बा भी है, इस पर से भी लोगो का विश्वास धीरे-धीरे उठता जा रहा है। हमारी न्यायिक व्यवस्था को पाकिस्तान से आया आतंकवादी कसाब आज मुह चिढा रहा है। सब कुछ खुला-खुला है कि इस आतंकवादी ने क्या किया, मगर सालभर से अधिक का वक्त और ३१ करोड़ रूपये खर्च करने के बाद भी हमारी न्याय व्यवस्था उसके साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेल रही है। दूसरी तरफ लिब्राहन आयोग, और अन्य इसी तरह आयोग हमारी जांच प्रणाली पर ही सवालिया निशान लगा रहे है। खोदा पहाड़ और निकली चुहिया, यह कहावत सिर्फ अयोध्या के ही केस में नहीं चरितार्थ होती अपितु अन्य मामलो जैसे बोफोर्स, १९८४ के दिल्ली दंगे, नब्बे के दशक के मुंबई दंगे और बमकांड, चारा घोटाला इत्यादि-इत्यादि सभी पर लागू है।

सरकारिया काम-काज के तरीके और राजनीतिज्ञो के आचरण से भी नहीं लगता कि कोई इस बारे में गंभीर भी है। आज जरुरत है कि जनता एक स्वर में उठ खडी हो, और इन तीनो खम्बो में सुधार की मांग करे। यदि सरकार किसी जांच के लिए कोई आयोग बनाती है और आयोग को रिपोर्ट देने के लिए तीन महीने का समय देती है, लेकिन यदि तीन महीने बाद वह इस जांच के लिए समय अवधि में फिर से विस्तार करती है, तो यह समझ लेना चाहिए कि या तो सरकार या फिर जांचकर्ता ईमानदार नहीं है, उनमे से किसी एक अथवा दोनों के दिलो में खोट है । कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों और देश हित में अगर इस समयाविस्तार की जरुरत पड़ती भी है, तो सरकार को यह क़ानून बनाना चाहिए कि कोई भी आयोग किसी भी स्थिति में एक साल से अधिक का समय नहीं ले सकता, और कोई भी न्यायालय किसी केस को दो साल से अधिक नहीं खींच सकता, चाहे केस भले ही कितना भी जटिल क्यों न हो। उसे दो साल के अन्दर हर हाल में फैसला सुनना ही पड़ेगा,फिर देखिये कैसे नहीं आती न्याय व्यवस्था पटरी पर ।

Sunday, November 22, 2009

फिर सनक गया दिमाग कार्टून बनाने को.....







ट्वींकल-ट्वींकल औल दि नाईट !

रविवार की व्यस्तता की वजह से कल रात को कुछ खास नही लिख पाया ! लोग कहते हैं कि इंसान का कबाडी(साहित्यिक) दिमाग पैदाइशी होता है, एक हास्य (पैरोडी कहना पता नही कहां तक उचित होगा, मुझे नही मालूम) तब लिखी थी, जब नौवीं-दसवीं मे पढ्ता था ! और मेरा तो यह मानना है यह एक ऐसी पोएम थी, जिसे ज्यादातर लोगो ने समय-समय पर अपने तरीके से भिन्न-भिन्न रूपों मे प्रस्तुत किया, आइये आपको भी सुनाता हूं! कुछ व्याकरण की गलतियों को जो उस समय पर मेरे हिसाब से सही थी, मैने उनमे सुधार नही किया, शब्द अगर अशोभनीय लगे तो अग्रिम माफ़ी !

ट्वींकल-ट्वींकल औल द नाईट
जीरो वाट की धुमली लाईट
वन मिड नाईट वेन माई वाइफ़ वज
डीपली सिलेप्ट ऐट माई लेफ़्ट साईड
सपने मे सी सौ अ पिक्चर,
ऐज वह ट्रैवलिंग इन अ ऐयर फ़्लाईट
जिसमे सौ हर मोस्ट ब्युटी,
भेरी डेंजरस अ ग्रीडी काईट
हर ब्युटिफुल फ़ेस हैड डर के मारे,
तुरन्त बिकेम फ़्रोम रेड टु वाईट
ऐट लास्ट जब काइट रीच्ड नियर हर,
बचाओ-बचाओ ! सी क्राईड
मै जागा ऐन्ड वोक्ड हर अप
बाय हर आर्म्स सी होल्ड मी वेरी टाईट
सुन कर हर व्वाइस अवर पडोसी,
सोचा दिस कि दे हैव अ फाईट
पर जब दे पीप्ड विन्डो से अन्दर,
बोले, अच्छा फूल बनाया राइट-राइट
ट्वींकल-ट्वींकल औल द नाईट
जीरो वाट की धुमली लाईट

Saturday, November 21, 2009

लघु कथा- परवेज

आज मुझे छुट्टी से लौटकर अपनी यूनिट आये पूरे आठ महीने बारह दिन हो गए, लेकिन साले, तूने इस दौरान मुझे एक भी ख़त नहीं लिखा ! यहाँ हमारे पास इ-मेल भेजने का कोई साधन नहीं , इसका मतलब यह तो नहीं कि तू ख़त भी न लिखे ! तुझे याद हो न हो, लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद हैं वो कॉलेज के दिनों की बाते, और वो पी. सी. की फुल फॉर्मस, सारी की सारी ....! अगर मैंने एक-एक कर कभी भाभी जी को सूना दी
तो फिर रोयेगा, मैंने बता दिया ! अगर बचना चाहता है तो हर महीने कम से कम एक ख़त मुझे जरूर लिख दियाकर ! साले, एक तू और रेखा ही तो हैं मेरे इस दुनिया में, जिन्हें मैं दिल की हर बात बता पाता हूँ, और मन का बोझ हल्का कर पाता हूँ!

आज फिर से इस पत्र के माध्यम से, तुझे मैं अपने दिल की एक और बात बताना चाहता हूँ ! सोचा था कि यह बात मैं अभी अपने ही दिल में दफ़न करके रखूगा, और जब काफी साल गुजर जायेंगे, तब तुम्हे बताऊंगा ! लेकिन अपने मुल्क से दूर, यहाँ इस विदेशी मुल्क में न जाने कभी-कभी ऐसा क्यों लगने लगता है कि इस साल की दो महीने की छुट्टियाँ अपने घर वालो और तुम जैसे लोगो के साथ बिता पाने का सुअवसर शायद फिर से मिले न मिले ! यूँ तो मौत पर किसी का भी बर्चस्व नहीं है, मगर यहाँ हमारे साथ कदम-कदम पर अनिश्चित्ताये..... तुम समझ सकते हो !

पिछले साल का यह वाकया है, बी आर के इंजीनियरों की सुरक्षा का जिम्मा मुझे सौंपा गया था ! उन्ही इंजीनियरों में से एक था, परवेज आलम ! एक दिन सुबह जब हम लोग उन्हें एस्कोर्ट करते हुए एक निर्माणाधीन पुल की और ले जा रहे थे, तो तालिबानियों ने विस्फोट कर दिया ! मेरे दो जवान और एक इंजीनियर उसमें शहीद हो गए थे, और परवेज तथा उसका एक और साथी गंभीर रूप से जख्मी ! परवेज को खून की जरुरत थी, मगर उसका ब्लड ग्रुप किसी से मैच नहीं हो पा रहा था ! चूँकि मेरा ओ पोजेटिव ग्रुप है, इसलिए डाक्टरों ने मुझे खून देने की सलाह दी, मैंने तुरंत ही खून दिया ! करीब पंद्रह दिनों बाद परवेज फिर सही सलामत हो गया था! कुछ और महीने गुजरे, इस बीच वहाँ कैम्प में हमें चाय-पानी पिलाने हेतु एक स्थानीय १२-१३ साल का बच्चा आबिद काम करता था ! एक सुबह मैंने देखा कि परवेज उसे अपनी सरकारी जीप में ड्राइविंग सिखा रहा था, मैंने सहज यह मान लिया कि यह सामान्य सी बात है कि परवेज को शायद बच्चो से ज्यादा लगाव होगा, और साथ ही आबिद और वह एक ही धर्म से सम्बद्ध है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर यह उसका आबिद के प्रति लगाव है, जो उसे इतनी बारीकी से ड्राइविंग सिखा रहा है ! यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा, इस बीच हमारे कैम्प के पास ही एक और आतंकवादी हमला हुआ, दोनों तरफ से हुई गोली बारी में बहुत सारे स्थानीय लोग मारे गए थे, जिसमे से एक थी आबिद की बड़ी बहन, खालिदा, अपने परिवार में वह दो भाई और तीन बहने थी !

इस घटना के बाद से मैंने आबिद के व्यवहार में बहुत से परिवर्तन देखे, वह जिस तरह पहले हमारे से व्यवहार करता था, उसमे एकदम बदलाव आ गया था! मैं उसके आतंरिक दर्द को भांप रहा था ! मैंने कई बार उससे उसका दर्द बाँटने की भी कोशिश की, मगर उसमे भी पेंच थे, परवेज के अलावा वहाँ किसी और को उनकी भाषा ठीक से बोलनी समझनी नहीं आती थी ! अचानक एक दिन सुबह उठे तो पास के नाले पर कोहराम मचा हुआ था! किसी ने आबिद की दूसरी बड़ी बहन और भाई का क़त्ल कर, छोटे से नाले में डाल दिया था! जब मैं अपने कुछ जवानो के साथ वहाँ पहुंचा तो देखा कि परवेज उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था ! मैंने आगे बढ़ परवेज से सारे हालात का जायजा लिया, तो उसने मुझे घटना की जानकारी दी ! और साथ ही यह भी बताया कि मैं इन्हें यह समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि यह घृणित काम, हो न हो आतंकवादियों का ही है, उन्होंने आबिद की बहन की अबरू लूटने के बाद उसका और उसके भाई का क़त्ल कर दिया था ! परवेज के इस जज्बे से मैं काफी प्रभावित हुआ था! एक दिन दोपहर में लंच के बाद मैं कुर्सी पर यों ही सुस्ता रहा था कि एक पठान दोनों हाथो की उंगलिया आपस में जोड़, उन्हें रगड़ता हुआ मेरे सामने आया, ड्यूटी पर मौजूद गार्ड ने बताया कि वह आबिद का अब्बू है ! वह मुझसे कुछ कहना चाहता था, मैंने उसे साहस दिलाते हुए कहा कि बताओ क्या तकलीफ है तुम्हे ! कुछ इधर-उधर देखने के बाद वह पठानी अंदाज में टूटी-फूटी हिन्दी में बोला, और जो मैंने सुना, मेरे रौंगटे खड़े हो गए थे ! एक सरीफ सा दिखने वाला इंसान इतना कमीना कैसे हो सकता था, मेरी समझ में नहीं आ रहा था! मैंने उसकी बात सुन पूरी तहकीकात का आश्वासन उसे दिया, तो वह चला गया!

मेरे दिमाग में आबिद के पिता/ अब्बू के कहे शब्द गूंजे जा रहे थे, अत: मैंने परवेज पर नजर रखनी शुरू कर दी थी! गर्मियों का मौसम था, मगर दूर पहाडो से आने वाली सर्द हवाए वातावरण में ठंडक पैदा किये हुए थे ! एक दिन शाम करीब सात बजे, जब मैं कैम्प के आस पास घूम रहा था तो एक टिन के सेड के पास मुझे कुछ खुसर-फुसर सुनाई दी ! दबे कदमों से मै जब पास गया, तो पाया कि परवेज किसी स्थानीय पुरुष से दबी जुबान में बाते कर रहा था! कुछ पल बाद वह चला गया, मैं वहाँ छुपकर परवेज की गतिविधियों पर नजर गडाए था! थोड़ी देर बाद आविद वहाँ आया और परवेज उसे एक पिता की तरह प्यार से कुछ समझाने लगा ! परवेज उसे कुछ निर्देश दे रहा था, और वह मासूम सहमती में अपनी गर्दन हिला देता था! इससे परवेज के चहरे पर एक शैतानी मुस्कराहट सी दौड़ पड़ती थी! मैं किसी अनहोनी की आशंका से पूर्ण सचेत हो गया था ! रात आठ बजे रोल-कॉल के बाद जवान अपने रात्रि- भोज के लिए लंगर के पास एकत्रित होते थे! परवेज द्वारा आबिद को दिए निर्देशों से मैं इतना तो समझ ही गया था कि वह उसी दौरान किसी बड़ी बारदात को अंजाम दिलाना चाहता था ! परवेज के साथ प्री-प्लान के हिसाब से ठीक आठ बजे आतंकवादियों ने हमला बोल दिया था, अत: बिना देरी किये मैंने परवेज और आविद दोनों को बिना सोचे समझे गोली मार दी! जवान आतंकियों से जूझ रहे थे, मैंने जब परवेज वाले टेंट का मुआयना किया तो पाया कि एक बारूद से भरी जीफ टेंट से कुछ दूरी पर खडी थी, जिसे शायद आबिद चलाकर लंगर तक ले जाने वाला था! चारो आक्रमणकारी मारे गए थे ! और मैंने अगले दिन यह दर्शाया कि परवेज और आबिद भी आतंकवादियों का शिकार हो गए, जबकि कहानी कुछ और थी, परवेज अपनी अतृप्त वासना की पूर्ति के लिए आबिद की दो बहिनों की बली चढ़ा चुका था, यह जानकारी आबिद के अब्बू ने मुझे दी थी ! और इसके लिए आतंकवादियों के स्थानीय आंका से मिलकर दोष हमारे सिर मढ़ कर आत्मघाती हमले के लिए आबिद का दिमाग सफाई ( ब्रेनवास) के जरिये उसको तैयार कर रहा था !
जब तक वह एक देशभक्त था, मैंने उसे खून भी दिया,
जब गद्दारी पर उतर आया, तो मैंने उसे भून भी दिया !!
तब से यह मेरे मन पर एक बोझ सा था, आज तुझे बताकर हल्का सा महसूस कर रहा हूँ ! हाँ, ध्यान रहे कि मैंने अभी यह बात रेखा को नहीं बताई और तुमसे गुजारिश है कि तुम भी मत बताना !
तुम्हारा ..

नोट : कहानी की घटना और पात्र सब काल्पनिक है, अत: इसे अन्यथा न लिया जाये !

Saturday, November 14, 2009

भेडे प्रतिकार नही करती !

हमारे इस लोकतन्त्र मे भ्रष्ठाचारियों के हौंसले किस कदर बुलंद है, इसकी एक मिशाल निर्दलीय विधायक होने के वावजूद आंटी सोनिया, हेर-फेर के भीष्म पितामह लालू और गुरुऒं के गुरु, शोरेन गुरुजी के आशिर्वाद से एक जमाने मे झारखण्ड की सत्ता के प्रमुख बने, वहां के भूतपूर्व सम्मानित मुख्यमन्त्री श्री मधु कोडा के इस एक लाईन के बयान से मिलता है, जिसमे कल ही उन्होने कहा कि यदि उन पर आरोप साबित हो गये तो वे राजनीति से सन्यास ले लेंगे। बयान भले ही बहुत छोटा सा लगता हो, मगर खुद मे बहुत से गूढ अर्थ समेटे है। मसलन पहली बात तो यह कि हमारे प्रवर्तन निदेशालय और अन्य जांच अजेंसियों द्वारा उसके पास से जुटाये गये इतने बडे हेर-फ़ेर की सामग्री और अन्य बडे-बडे दावों के वावजूद, मधु कोडा को पूरा भरोशा है कि ये ऐजेंसियां और सरकार उन पर भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध नही कर पायेंगी। दूसरी बात यह कि मधु कोडा इस बात से भी आस्वस्थ हैं कि जहां तक राजनीतिज्ञ विरादरी की भ्रष्ठता का मुद्दा है, हमारा न्यायतंत्र और कानून, खास कुछ नही कर पाते । तीसरी महत्वपूर्ण बात उनके बयान से यह निकलती है कि जैसा कि उन्होने कहा कि वे राजनीति से सन्यास ले लेंगे, इसका सीधा मतलब यह निकलता है कि इस देश मे आरोप सिद्ध हो जाने के बाद भी भ्रष्ठ लोग राजनीति से जुडे रहते है।

इससे भी आगे चलकर देखें तो जैसा कि हम सभी लोग इस बात से वाकिफ़ है कि इस देश मे आजतक हुए बडे-बडे घोटालो की जांच का क्या हश्र हुआ ? मसलन चारा घोटाला, सुखराम टेलीफोन घोटाला, बोफ़ोर्स घोटाला, हाल के सडक और मोबाईल लाइसेंस घोटाले, इत्यादि । ठीक उसी तरह अगर आप मधु कोडा से जुडे प्रकरण पर भी गौर करें तो यह जांच तबसे ठण्डी पडती दिख रही है, जबसे कोडा की डायरी का जिक्र आया। मतलब सीधा सा है कि बडी मछलियों को पकडने का आह्वान करने वाली केन्द्र सरकार इस घोटाले मे भी बडी मछलियों पर आंच आने की सम्भावना से, उन्हे बचाने की कवायद के चलते, इस केस को भी ठ्न्डे बस्ते मे डालने की तैयारी मे है। आश्चर्य तो तब होता है कि जब इस देश का तथाकथित बुद्धि जीवी वर्ग यह तर्क देने लगता है कि ’लौ विल टेक इट्स ओन कोर्स’ (कानून अपना काम करेगा)। अब कौन इन महापुरुषो से पूछे कि भाई आप किस लौ(कानून) की बात कर रहे है? उस कानून की जो सिर्फ़ एक कमजोर किस्म के नागरिक पर लागू होता है, किसी बलशाली पर नही ? अन्य शब्दो मे कहुं तो गडरिये इस बात को बखूबी जानते है कि स्वभाव से भॆडे प्रतिकार नही किया करती, और कभी कर भी लेती हैं तो भी झुण्ड की साथी भेडो पर ही अपना गुस्सा निकालती है, गडरिये को कोई नुकशान नही पहुचाती और कभी अगर झुण्ड मे से कोई नरभेड तंग आकर प्रतिकार करने भी लगे, तो उसे गडरिये द्वारा मरवा दिया जाता है। अन्त मे बस यही कहुगा कि जागो !!