Monday, October 26, 2009

लघु कथा- वह एक नर्स थी !

डा० मार्क, डा० श्रीवास्तव के एक अजीज मित्र थे, और डा० श्रीवास्तव के ही आमत्रण पर अमेरिका से भारत आये थे। डा० मार्क से डा० श्रीवास्तव की जान पहचान तब हुई थी, जब डा० श्रीवास्तव अमेरिका मे डाक्टरी कोर्स कर रहे थे। कोर्स खत्म होने के उपरान्त देश सेवा और खासकर ग्रामीण समाज की सेवा का जज्बा डा० श्रीवास्तव को स्वदेश खींच लाया था। यहां लौटकर उन्होने सरकारी नौकरी ज्वाइन की और राज्य सरकार के दूर-दराज के ग्रामीण अस्पतालों मे मरीजो को अपनी सेवायें प्रदान करने लगे। उस वक्त तक उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश से अलग राज्य नही था, अत: डा० श्रीवास्तव का तबाद्ला पहाडो की तलहटी मे बसे उस कस्बे के एक सरकारी अस्पताल मे हो गया था, जिसमे केरल की रहने वाली जैनी बतौर नर्स पिछले चार-पांच सालो से कार्यरत थी।

हालांकि तब मै बहुत छोटा था, और शायद छठी कक्षा में पढता था। मुझे याद है कि सुन्दर और चुलबुले किस्म की जैनी स्वभाव से बहुत मिलनसार और भावनात्मक तौर पर दिल खोलकर दूसरों की मदद करने वाली थी। वह भारत के केरल प्रान्त के कोच्चि से करीब साठ किलोमीटर दूर अथीरापल्ली इलाके की मूल निवासी थी, और वाईएमसीए दिल्ली से प्रशिक्षित थी। उस कस्बे और आस-पास के गांवो के जरुरतमंद लोगो की मदद के लिये वह हमेशा तत्पर रहती थी। अस्पताल के आस-पास के इलाके मे और उस से सठे आस-पास के गांवो मे जब भी कोई प्रसव का इमरजेंसी केस होता, जैनी बिना देरी किये मदद के लिये वहां पहुंच जाती। धीरे-धीरे जैनी उस पूरे इलाके मे एक लोकप्रिय हस्ती बन गई थी। वह किसी से भी अपनी सेवाओं का कोई शुल्क नही लेती थी, अत: इलाके के जिन लोगो के यहां प्रसव के वक्त जैनी अपनी सेवायें देती, वे लोग उस वक्त जैनी को अपनी हैसियत के मुताविक इक्कीस अथवा इक्कावन रुपये तिलक के तौर पर भेंट और एक लड्डू का डब्बा पकडाने मे अपनी शान समझते थे। कम हिन्दी जानने वाली जैनी मरीज को अपने हिन्दी के रटे-रटाये दो वाक्य कि तुम चिन्ता नही करते, गौड सब ठीक करता जी , और फिर सब ठीक-ठाक निपट जाने पर खुशी-खुशी शुक्रिया और थैंकयू बोल लौट आती।

डा० मार्क को डा० श्रीवास्तव के पास आये तीन रोज हो गये थे कि अचानक डा० श्रीवास्तव को जिला मुख्यालय से सी एम ओ (चीफ़ मेडिकल आफिसर) का फोन आया और उन्हे एक जरूरी मीटिंग के लिये राज्य मुख्यालय, लखनऊ तलब किया गया। डा० श्रीवास्तव ने डा० मार्क की आवाभगत का भार जेनी के ऊपर डालते हुए, उसे कुछ जरूरी निर्देश दे, लखनऊ के लिये प्रस्थान किया। जैनी, मार्क के साथ व्यस्थ हो गई। चुंकि जैनी उस इलाके मे पिछ्ले चार-पांच सालो से रह रही थी, अत: वहां के कुछ जाने माने दर्शनीय इलाकों मे डा० मार्क को घुमाने ले गई। मार्क जिज्ञासू था और जैनी ज्ञाता, दोनो को एक दूसरे से जानकारी लेने और उसे समझने मे एक असीम किस्म का आनंद प्राप्त होता था। और इस समझने-समझाने के चक्कर मे कब दोनो एक दूसरे के इतने नजदीक आ गये , इसका अह्सास दोनो को ही तब हुआ, जब डा० मार्क के प्रस्थान का समय नजदीक आया। “मै तुम्हे छोड्कर नही जा सकता” डा० मार्क ने कहा। “मै भी तुम्हारे बगैर नही रह सकती” जैनी ने धीरे से गम्भीर स्वर मे कहा। “एक साथ रहने के लिये हममे से किसी एक को अपना देश छोडना पडेगा और मुझे तुम्हारा देश पसन्द है “ डा० मार्क ने कुछ सोचते हुए कहा ।

और फिर कुछ दिनो की छुट्टी लेकर जैनी और मार्क ने शहर आकर एक चर्च मे शादी रचा ली। शादी के बाद दोनो ही बहुत खुश थे, उनकी इस शादी से बस अगर खुश नही थे तो सिर्फ़ उस इलाके के लोग। न जाने उन्हे क्यो यह एक गोरे और एक काले का मेल पच नही रहा था। दो साल तक तो सब कुछ ठीक-ठाक ही चला, इस दर्मियान जब डा० श्रीवास्तव का वहां से तवाद्ला हो गया और महिनों तक जब रिक्त स्थान के लिये कोई डाक्टर उस अस्पताल मे नही आया तो डा० मार्क ही स्थानीय मरीजो की चिकित्सकीय मदद करते। और फिर वह हो गया जिसका अन्देशा कुछ स्थानीय लोग पहले ही जतला चुके थे।

जैनी करीब पांच-छ: माह के गर्भ से थी, काफ़ी दिनो से बात-बात पर जेनी और डा० मार्क्स के बीच खट-पट चल रही थी, और उनकी बातों से ऐसा लगता था कि उनके बीच गलत फहमी की कोई दीवार खडी हो गई थी। उस दिन सुबह-सबेरे भी उनकी किसी बात पर बहस हो गई थी। उनकी बातों से लगता था कि मानो डा० मार्क्स जेनी से नर्स की नौकरी छोड्ने की बात कह रहा था। जेनी गुस्से मे डा० मार्क को कह रही थी “आई हैडन्ट एक्स्पेक्टेड यू टु से इट वज औल राइट फ़ौर अ मैन टु गो आउट ऐन्ड अर्न हिज लिविंग, बट नौट अ ओमन” (मैने तुमसे यह उम्मीद नही की थी, आदमी के लिये तो बाहर जाकर नौकरी करना ठीक है, लेकिन एक औरत के लिये नही ) डा० मार्क ने भी उसी अन्दाज मे फिर जबाब दिया था “आइ डिडन्ट से इट. ऐज फार ऐज आइ एम कन्सर्न्ड,वोमन कैन डू व्हट एवर दे वान्ट” ( अर्थात मैने यह तो नही कहा। जहा तक मेरा सवाल है, औरत वह सब कर सकती है जो वह करना चाहे ) फिर ज्यों ही मार्क अपना बैग उठा चलने को हुआ, जेनी ने लगभग चिल्लाते हुए पूछा था “ व्हेन आर यू कमिंग बैक टु इन्डिया मार्क ?” (तुम वापस भारत कब आ रहे हो मार्क्स ?), डा० मार्क ने हल्के स्वर मे बुद-बुदाते हुए छोटा सा जबाब दिया था ’आई डोन्ट नो’ (अर्थात मुझे नही मालूम) ।

डा० मार्क के अचानक जैनी को ऐसे वक्त पर जिस वक्त पर कि जैनी को उसके सहारे की सख्त जरुरत थी,ऐसी परिस्थितियों मे इस तरह छोड्कर चले जाने से, वह टूटकर रह गई थी। नतीजन दिन प्रतिदिन उसकी हालत गिरती चली गई। और फिर वह एक दिन भी आया जब कस्बे के बीचों-बीच स्थित अस्पताल के ठीक बगल पर बने उस मकान की उपरी मंजिल से, जिस पर जैनी पिछले पांच सालो से किराए पर रह रही थी, रुक-रुककर असहाय अबला के छटपटाने की कराहे और दर्द भरी चीखे उस सुनशान कस्बे को हिलाने लगी। लेकिन इलाके के जिन लोगो की उसने लग्न और मेह्नत से पिछले छह सालो से सेवा की थी, जो लोग कल तक उसे जैनीजी-जैनीजी कहकर पुकारते थे, वहीं आज मदद करना तो दूर, उधर से गुजरते हुए जैनी पर फब्तियां कसने से तनिक भी नही हिचकिचा रहे थे। उसकी बदकिस्मती देखो कि हाल ही में उस अस्पताल में नया आया डाक्टर भी हफ्ते रोज की छुट्टी पर अपने गाँव गोरखपुर गया था। कस्बे में एक छोटा सा निजी चिकित्सालय भी था, मगर जैनी को वहाँ पहुंचाता कौन ? और हद तो तब हो गई जब ६५ वर्षीय मकान मालकिन, जिसे जैनी रमा चाची कह कर पुकारती थी, उसके दरवाजे के समीप गई और जब जैनी अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे अपने दोनों हाथ ऊपर उठा, उस रमा चाची से मदद की गुहार लगा रही थी, तभी उसके यह कटु बोल जैनी के कानो में पड़े कि रांड, चली थी अंग्रेज बनने, अब मर, सड यहीं पर। यह सुनकर जैनी करीब १५ मिनट के लिए अपने ओठों को चबाकर कसकर बंद करके एकदम खामोश सी हो गई थी। मानो इस बीच सोच रही हो कि इन लोगो को, जिन्हें वह अपना समझकर, सुख-दुःख में इनकी इतनी सेवा करती रही, क्या उनसे उसे इसी सिले की उम्मीद थी? माना कि डा० मार्क के साथ उसका शादी रचाना लोगो को पचा न हो, लेकिन वह उसका अपना, अपनी निजी जिन्दगी के बारे में लिया गया फैसला था, उसे सही या गलत ठहराने वाले ये लोग होते कौन है ?

किसी अनजान भय की लकीरे उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई देती थी । लोग अपने घरो-गलियों में तरह-तरह की बाते करते रहे, मगर एक भी माई का लाल ऐसा न निकला जो उसकी मदद के लिए आगे आ सके। रात करीब एक डेड बजे तक जैनी की दर्द भरी कराहे वातावरण में गूंजती रही, और फिर कुछ पल बाद एक नन्हे मेहमान की रूंधन भी वातावरण में गूंजी । मगर जब कुछ जिज्ञासू तमाशबीन सुबह जैनी की देहरी पर अन्दर झाँकने के लिए पहुचे तो जैनी और उसका नन्हा मेहमान बिस्तर पर शांत सो चुके थे, सदा के लिए !

Tuesday, October 13, 2009

चोरो के पैसो पर ऐश करता एक देश !

ऐसा अनुमान है कि १९४७ में आजादी के तुंरत बाद से अब तक हम भारतीय, जिनमे हमारे नेता, अफसर और कुछ व्यावसायिक घराने शामिल है, अपने देश का धन चुराकर तकरीबन बारह खरब रूपये अकेले सिर्फ स्विस बैंक के खातो में जमा कर चुके है ! यूँ तो समय-समय पर इस देश में यह मांग उठती रही है कि विदेशी बैंको में पडा इस देश का काला धन वापस देश में लाया जाए और इस देश के विकास कार्यो में लगे, मगर यह बात भी किसी से छुपी नहीं कि हम लोग और हमारी सरकारे इस दिशा में कितनी ईमानदारी से पहल करने की कोशिश करते है ! अभी हाल के चुनावों से पहले भी यह मुद्दा खूब उछला लेकिन उसके बाद क्या हुआ ? वही ढाक के तीन पात ! सबके पास रटा-रटाया एक ही एक्सक्यूज होता है कि स्विस राष्ट्रीय बैंक अपनी गुप्त नीति के तहत इन खातो के आंकडे मुहैया नहीं करा सकती ! दुनिया भर में लोगो के बढ़ते विरोध के बाद स्विस बैंकर एसोशियेसन ने एक नया सगूफा छोड़ दिया है ! अब वे कहते है कि इस बर्ष दिसम्बर माह से वे खातेदार का अता-पता बताये बगैर जिन देशो के साथ उनकी दोहरी कर संधि है उन देशो के खाता धारियों की आय पर वे टैक्स लगाकर उस पैसे को उस देश को दे देंगे जिसके ये खाते है ! अकेले अमेरिका के खाताधारियों के ही स्विस बैंक में ४४५० खाते इस वक्त है !

कितनी हास्यास्पद बात है कि हम लोग अपने देश से धन चोरी करके ले जाकर एक विदेशी देश के हवाले कर देते है और वह मजे में बैठकर हमारे उस चोरी के माल से अर्जित कमाई से ही मोटा सेठ हुए जा रहा है और ऐश कर रहा है ! आइये एक नजर कुछ उन आंकडो पर डाले !
२००६ में प्रकाशित कुछ आंकडो के हिसाब से स्विस बैंक में शीर्ष पांच चोरो में से भारत के चोर सबसे ऊपर थे :

स्विट्जरलैंड में जमा शीर्ष पांच देशो के खाताधारियों का धन :

India-------$1456 billion (यानी करीब सात खरब तीस अरब रूपये)
Russia------$ 470 billion
UK----------$ 390 billion
Ukraine-----$ 100 billion
China-------$ 96 billion


यानी भारत से ही करीब सात खरब तीस अरब रूपये खातेदारों द्बारा स्विस खाते में जमा थे, और ८ % साधारण ब्याज की दर से भी स्वीटजरलैंड साल के ५६ अरब रूपये सिर्फ हमारे चोरो द्बारा जमा किये गए काले धन में से ही कमा लेता है ! तो अब आप ही बतावो कि जब बैठे -बिठाये उनकी इतनी कमाई हो जाती है तो उन्हें और कुछ करने की जरुरत क्या है ? हम दुनिया में तरह-तरह के अपराधो की बात करते है और उन देशो पर पश्चिमी राष्ट्र कारवाही करने की कोशिशे भी करते रहते है जो इन अपराधो को बढावा देते है ! मगर जो एक देश खुले आम आर्थिक अपराधो को इस तरह बढावा दे रहा है, उसके खिलाप कार्यवाही की कोई बात नहीं करता !