Wednesday, April 29, 2009

अल्पसंख्यकों ने भी खूब उडाया इस लोकतन्त्र का मजाक !

अभी हाल ही मे एक हिन्दी अखबार मे जसपाल भटटी जी की देश की वर्तमान राजनीति पर एक सटीक टिप्पणी पढ रहा था, जिसमे उन्होने कहा कि यह तो सबको मालूम है कि आज के हमारे इन राजनेतावों का सफ़ेद कपडो के अन्दर छुपा कितना काला दिल है ! और अब तो इन्होने एक नई परम्परा भी डाल दी है कि अपने साथ-साथ एक-एक कर ये लोग अपने बच्चो को भी राजनीति मे ला रहे है ! आज जितने भी युवा राजनीति मे दिख रहे है ज्यादातर उसी घराने के है जो पहले से राजनीति को गन्दा किये है ! कहने का मतलब है, बीज तो वही है फिर आप और हम आगे चलकर अच्छे और मीठे फल की अपेक्षा कैसे कर सकते है ?

अब सवाल उठता है कि यह गन्दी राजनीति हमारे लोकतन्त्र मे आई कहां से ? इसे लाया कौन ? इसे प्रोत्साहन मिला कहा से ? सीधा जबाब है अनपढ गवार, स्वार्थी एवम संकुचित मानसिकता वाले वोटरो के द्वारा! अब फिर सवाल यह कि आखिर ये वोटर है कौन ? सीधा जबाब, जिन्हे देश से कुछ नही लेना-देना, कोई गुन्डा, मवाली, उठाईगिर कोई भी जीते, बस वह इनका ध्यान रखे, इनके धर्म, इनकी आज़ादी पर कोई आंच न आने पाये, कोई इनसे यह न पूछे कि इस मंहगाई के जमाने मे तुमने १२ बच्चे क्यो पैदा किये, बस! बाकी देश जाये भाड मे इनकी बला से ! आज ही एक अखबार मे मेरठ संसदीय क्षेत्र के एक पूर्व सांसद और प्रत्याशी का रिपोर्ट कार्ड पढ रहा था ! चालीस साल के इन जनाव ने अभी तक सिर्फ़ और सिर्फ़ सात बच्चे पैदा किये है! जरा सोचिये ये आगे कहां तक जायेंगे ! इस समाज के किसी तथाकथित बुद्धिजीवी से जब इस बात का जिक्र करो तो वह दो बाते कहेगा, एक तो कि आप क्योकि कट्टर हिंदुत्व के समर्थक है इसलिए पंचजन्य पढ़-पढ़ कर आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है और दुसरे , क्योंकि इस समाज में शिक्षा का अभाव है, गरीबी है, इसलिए ये इतने बच्चे पैदा करते है ! मगर यहाँ जिन सांसद महोदय की मैं बात कर रहा हूँ उनके पास तो सब कुछ है ! हकीकत यह है कि इस समाज का पुरुष वर्ग निहायत स्वार्थी है और जिसके चलते वह महिलावो को शिक्षित नहीं होने देना चाहता , इसलिए महिला शिक्षा का विरोध करता है ताकि वह पढ़-लिखकर, अपना भला बुरा ठीक से न समझने लगे, अपने हक़ के लिए ना लड़ बैठे ! इसलिए ये उसे सिर्फ एक बच्चे पैदा करने वाली मशीन बना कर रखना चाहते है ! ये जो जनाव का जिक्र हो रहा है , आज इनके पास प्रचूर धन-दौलत और ऐशोआराम उप्लब्ध है ! उसके बाद कल भले ही इनके बच्चो की फ़ौज, जिस मंच से आज ये जनता से वोट मांग रहे है, उसी मंच पर खड़े होकर कल देश और दूसरे धर्मो के सम्पन्न लोगो को अपनी अशिक्षा और पिछडेपन के लिये उन्हें दोष दे, उन्हें कोशे ! आज इनके किसी बुद्धिजीवी से देश के हालत के बारे में पूछो तो वह बस बाबरी मस्जिद और गुजरात के दंगो का ही रोना रोता है, विकास शब्द उसके लिए अनजान है !

इनके वोट धुर्बीकरण का ही नतीजा है कि आज देश का असंतुलित विकास हो रहा है ! ये भ्रष्ट नेतागण अपने लाभ के लिए, तुष्टीकरण के मार्ग पर चलते हुए, बहुसंख्य्को का हक छीनकर इनकी तुष्ठी पर उसे व्यर्थ गवा रहे है ! इसका एक उदाहरण मै इस तरह से देता हू; अगर आप कभी दिल्ली में सरिता विहार से कालिंदी कुज के तरफ जाए तो बीच में ओखला से सटी एक अल्पसंख्य वस्ती है, उस वस्ती के सामने सरिता विहार कालिनिदिकुंज सड़क पर एक लोहे का पैदल पार पुल आज से ५-७ साल पहले बन गया था ! और जब आप आज भी वहा पर जाकर देखो उस पुल को दिन भर में मुस्किल से ५ लोग भी इस्तेमाल नहीं करते, मगर पुल बन गया क्योंकि अल्प्संखयको की तुष्टि का सवाल था ! दूसरी तरफ कभी निजामुद्दीन पुल से गाजियाबाद की तरफ जावो तो नॉएडा मोड़ के पास बंद पड़े पैट्रोल पम्प के समीप थोड़ी देर दोपहर के समय रूककर देखो किस तरह उस भारी यातायात में एक माँ-बाप अपने स्कूल से लौटे बच्चे को जान हथेली पर रखकर सड़क पार करवाते है, लेकिन किसी ने वहाँ पर आज तक एक ओवर ब्रिज बनाने की नहीं सोची, क्योंकि वहा वोट बैंक नहीं रहता है !

यह इस देश का दुर्भाग्य है और हमारे लिए इससे बढ़कर शर्म की बात और क्या हो सकती है कि एक खूनी दरिंदा आज इस देश की न्याय और कानून व्यवस्था का मजाक उडाते हुए एक हाई प्रोफाइल लाइफ स्टाइल की मांग कर रहा है ! जिसे मूत्र छिड़ककर नवाजा जाना चाहिए था, वह इत्र मांग रहा है !

5 comments:

Anil Kumar said...

"जिसे मूत्र छिड़ककर नवाजा जाना चाहिए था, वह इत्र मांग रहा है !" - यथास्थिति को हूबहू बयाँ करने के लिये इससे सटीक शब्द कोई दे ही नहीं सकता। लेख में काफी विचारणीय सवाल उठाये गये हैं, और विश्लेषण काबिलेतारीफ है। लेकिन आखिर समस्या का समाधान हो कैसे?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अनिल जी सर्वप्रथम आपका शुक्रिया !

अनिलजी समाधान तो बहुत है, अगर इच्छा शक्ति हो तो ! लेकिन अगर इसी विषय तक सीमित रहकर जबाब दूं तो यही कहूँगा हमारे ये तथाकथित अल्पसंख्यक या तो देश और उसके कानूनों को महत्व दे और हमारी इस राजनीती को गंदा न होने दे या फिर अगर उन्हें अपने ही धर्म कानूनों के हिसाब से चलना है तो भले ही उन्हें देश के नागरिक होने के नाते वोट डालने का समान अधिकार हमारे संविधान ने दिया हो, लेकिन वे उन अधिकारों का इस तरह चोर उचक्कों को वोट देकर उसका कम से कम दुरुपयोग न करे !

Anil Kumar said...

कायदे से तो कोई अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक होने ही नहीं चाहिये, सबको बराबरी मिलनी चाहिये - कानून भी और यथार्थ में भी। जिस समाज में बहुसंख्यक लोग मतदान के दिन चारपायी तोड़ते हुये टीवी देखें वहाँ नेताओं के मन में अल्पसंख्यकों के प्रति प्यार उमड़ेगा ही। जिस दिन तथाकथित बहुसंख्यक लोग मतदान के लिये गंभीरता दिखायेंगे उस दिन उनकी मांगों को भी राजनेता सुनेंगे - "वोट के लिये कुछ भी करेगा"!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अनिलजी,

इसी बात का तो ये चंद स्वार्थी लोग फायदा उठा रहे है ! अगर आजादी के बाद से ये अल्प-बहु वाला किस्सा नहीं होता, सबके लिए समान कानून होता तो इन बुजदिलो की दाल रोटी कैसे चलती ! सारी राम कहानी वही है कि अगर हमारे में एकता होती तो १००० सालो तक तीन-तीन गुलामिया क्यों करते फिरते ?

अनुनाद सिंह said...

भाई, आपकी पोस्टों के शीर्षक ही सब कुछ कह दे रहे हैं। बहुत सही शीर्षक हैं। विशेष प्रतिक्रिया पूरपढ़ने के बाद दूँगा। अभी तो जल्दी है।