यदा-कदा यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि एक स्वतंत्र देश में स्वतंत्र मीडिया का क्या रोल होना चाहिए ? विभिन्न मंचो पर, इस बात पर बहुत लम्बी- लम्बी बहस भी होती है लेकिन अपने को सर्वोपरि साबित करने की दौड़ में और तुच्छ व्यक्तिगत और राजनितिक स्वार्थो के चलते कोई सार्थक परिणाम नही निकल पाते, यानि नतीजा वही ढाक के तीन पात; विधायिका, न्यायपालिका और संचारपालिका (कार्यपालिका तो नाम की ही कार्यपालिका रह गई है) यही वजह है कि अक्सर मीडिया पर निष्पक्ष न होने का आरोप लगता आया है! एक वक्त था जब पत्रकारिता जगत में प्रवेश करने वाले को पहला पाठ यह पढाया जाता था कि देश के निर्माण में और उसके भविष्य को निर्धारित करने में एक पत्रकार कौन-कौन सी भूमिका अदा कर सकता है ! इसके ठीक विपरीत आज हर एक पत्रकार और मीडियाकर्मी इस इस जुगत में रहता है कि बस किसी तरह वह खबरों में छाया रहे, ख़बर या रिपोर्ट कितनी सही है और इसके देश समाज पर क्या-क्या कुप्रभाव पड़ सकते है उससे उसे कुछ नही लेना-देना ! और दूसरी तरफ़ उनके मातहत भी इसी ताक में रहते है कि कोई सनसनीखेज ख़बर मिल जाए, और उनकी टीआरपी टॉप में रहे, बस ! वह ख़बर कितनी सही है, कितनी समसामयिक है, उसके क्या विपरीत प्रभाव है, इससे इन्हे क्या?
अगर कोई रिपोर्टर किसी राजनैतिक दल की कारगुजारियों की इमानदारी से कोई ख़बर देना भी चाहे, तो उसे सबसे पहले यह देखना पड़ता है कि उसका खबरिया चेंनल, उसका अखबार, उसका मालिक कौन से राजनैतिक दल का समर्थक है, और इससे उसके हितों को क्या चोट पहुँच सकती है, इसलिए दिखावे भर के लिए कि यह एक निष्पक्ष संचार माद्यम है, लीपापोती करते हुए कहीं ऐंसी जगह पर वह ख़बर प्रसारित जरूर करेंगे जहा जनता का ज्यादा ध्यान न जाता हो, मगर वह रिपोर्टर चाह कर भी निष्पक्ष ख़बर, जनता के समक्ष नही रख पाते ! कहने का तात्पर्य यह है कि आज के इस दौर में, कुछ तुच्छ किस्म के प्राणियो ने अपने राजनैतिक हितों को बनाये और बचाए रखने के लिए, साम, दाम, दंड, भेद का सहारा लेकर हर उस जगह पर कब्जा जमा लिया है जिससे उसके कैरियर को कोई खतरा है !
इस सम्बन्ध में मैं अभी हाल के बहुत से उदाहरण, यहाँ पर गिना सकता हूँ; मसलन अभी कल परसों की एक ख़बर आपने अखबारों, मीडिया और इन्टरनेट पर खूब छाई हुए देखी होगी ! गुजरात के मुख्यमंत्री ने एक छींक क्या मारी कि वह ख़बर बन गई कि अगर मोदी छींक नही मारते तो शायद पाकिस्तान अब तक २६/११ की एक निष्पक्ष रिपोर्ट भारत को सौंप चुका होता ! और जो वाकई में ख़बर बनने लायक बातें थी और जिन पर देश में एक सार्थक बहस इन संचार माध्यमो के जरिये होनी चाहिए थी, वह नही हुई या फिर हुई भी तो सिर्फ़ दिखावे मात्र के लिए, जैसे चुनाव आयोग का मुद्दा, जैसे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का मुद्दा, समाजवादी पार्टी के श्री अमर सिंह ने सीधे आरोप लगाया कि जुलाई में कांग्रेस को समर्थन देने के लिए मिडीएटर का काम राज्यपाल महोदय ने किया ! आन्ध्र सरकार और सत्यम का मुद्दा ( इतना बड़ा गवन और देश की प्रतिष्ठा को धक्का पहुचने का काम उस सरकार के नाक तले हो गया और जिस ढंग से इसकी छानबीन को अब तक उचित महत्व नही दिया गया वह सोचनीय है कि कहीं न कहीं कुछ मिलीभगत है ) , आन्ध्र विधानसभा और उडीसा विधान सभावो में हंगामे का मुद्दा , इत्यादि, इत्यादि !
अब बढ़ते है दुसरे पहलु की ओर, आज की तारीख में देश के वर्तमान राजनैतिक परिद्रश्य में, जहाँ तक मैं देख सकता हूँ मेरे आंकलन से सिर्फ़ दो ही दलों में मुझे गुन्जायिस दिखती है जो कि भविष्य के मुताविक, आगे चलकर आज से १५-२० सालो के बाद भी देश का प्रतिनिधित्व कर सके, एक कांग्रेस और दूसरा भारतीय जनता पार्टी ! और जैसा कि आजकल आम हो चुका है कि राजनीती में बाप के बाद बेटा गद्दी संभाल रहा है तो न सिर्फ़ इन दो पार्टियों अपितु अन्य दलों को भी यह बात ध्यान में रखनी होगी कि जिस तरह की लूट खसौट और तात्कालिक स्वार्थ की राजनीति के चलते ये बुड्ढे लोग अपनी हरकतों से हर दिन एक नई ग़लत मिसाल कायम कर रहे है तो अगर इन्हे देश की न सही, मगर अपनी औलादों के भविष्य की तनिक भी फिक्र है तो इन्हे सोचना होगा कि ये अपनी पीढियों के लिए कांटे बोने में लगे है ! आज भले ही इनकी तात्कालिक मनोकामना पूर्ण हो रही हो लेकिन एक वक्त आएगा जब देश का अधिकाश युवा वर्ग शिक्षित होगा, और जो ग़लत परम्पराए इन्होने आज डाली है उसका हिसाब इनके सपूतो से जनता मांगेगी, और जो उन्हें देना भारी पड़ेगा!
इसे इस उदाहरण से हम ज्यादा समझ सकते है , मान लो कोंग्रेस आज अपने युवा नेता राहुल को भविष्य के लिए तैयार कर रही है और समय के हिसाब से कल राहुल को देश की कमान मिल जाती है, अभी तो चल जाएगा, लेकिन एक अन्तराल के बाद जब देश के बहुसंखय्क जनता ठीक से अपना भला बुरा समझने में सक्षम हो जायेगी तो वही जनता इनके समक्ष उन ग़लत मिसालों को पेश करेगी जो सत्ता में बने रहने के लिए अथवा और किसी और स्वार्थ पूर्ति के लिए वर्तमान में मौजूद कोंग्रेस और यूपिये ने पिछले कुछ सालो में कायम् की! राज्यपालों का दुरुपयोग, जांच एजेंसियों का दुरूपयोग, सुरक्षाबलों का दुरुपयोग,सत्ता का दुरुपयोग, धन का दुरुपयोग, समर्थन के लिए उन दलों और लोगो का समर्थन जो इनके दलीय सिद्दांतो के खिलाप था, द्रिड राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव, तात्कालिक लाभ के लिए भोत बैंक की राजनीती के आगे झुकना , इत्यादि, इत्यादि ! कमोवेश यही बातें अन्य दलों पर भी समान रूप से लागू होती है ! और जरूरी नही कि आप हमेशा सत्ता में ही रहे, मान्धाता च महीपति....... कभी इनकी पीदियों को भी आम नागरिक का जीवन जीना पड़ सकता है ! अगर इस बात को इन्होने अभी नही समझा तो फिर वह वक्त दूर नही जब हर कोई इनको यह कटाक्ष मारता फिरेगा कि " बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाए" !
Wednesday, February 11, 2009
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1 comment:
sahi kaha aapane
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