Sunday, February 1, 2009

व्यंग्य- घरेलु हिंसा को रोकिये- बेल बजाये !

टीवी पर यह विज्ञापन आपने भी देखा होगा, आजकल खूब चल रहा है! "घरेलु हिंसा को रोकिये- बेल बजाये" ! सर्वप्रथम तो उस विज्ञापन एजेन्सी के क्रिएटिव मेनेजर की तारीफ़ करना चाहूँगा जिसने अपना दिमाग चलाकर इतने सूक्ष्म शब्दों में इतनी गूढ़ बात कह डाली ! एक बहुत ही अहम् तथ्य को उजागर करता है यह विज्ञापन !

कभी आपने भी गौर किया इस बात पर कि कितना निठल्ला और स्वार्थी है हमारा यह पुरूष वर्ग ! सुबह जब उठता है तो उम्मीद करता है कि पत्नी सिरहाने पर चाय का कप हाथ में पकड़े खड़ी हो , वाथरूम में घुसे जनाब तो, गीजर में पानी पहले से ही गर्म मिले! कच्छा बनियान बाथरूम की खूंटी पर टंगा मिले ! नाह-धोकर जब बाहर आए तो डायनिंग पर नाश्ता सजा हुआ हो ! ऑफिस के लिए तैयार होने लगे तो सारे कपड़े प्रेस होकर आलमारी में रखे मिले, और श्रीमतीजी उन्हें कोट पहनाने ,उनके चश्मे, पर्स रूमाल इत्यादि उन्हें पकडाने में भी मदद करे !

उसके बाद ये जनाब ताजे किए नाश्ते का एक लंबा डकार छोड़कर निकल पड़े, नौकरी अथवा पेशे के बहाने मटरगस्ती करने ! ऑफिस में टेबल पर जो काम है उसका एक तिहाई ही किया और बाकि कल के लिए रख दिया , और कंप्यूटर पर चैटिंग शुरू कर दी! दोपहर में लंच के बाद निकल पड़े ऑफिस काम्प्लेक्स और शोपिंग काम्प्लेक्स में हसीनावो के संग चक्षु पान करने ! बस हो गई दिनचर्या ख़त्म !शाम को अगर काम ठीक से न करने पर नाराज बॉस ने डांट डपट दिया तो जनाब, बॉस के सामने तो भीगी बिल्ली बन जायेंगे मगर गुस्सा निकलेगा शराब के ठेके पर बोतल और तंदूरी चिकन पर ! तंदूरी चिकन अगर थोड़ा अधपका मिला, ठेके पर मौजूद बौन्सरो के डर से वहा तो जुबान नही खुलेगी लेकिन बाकि का रहा सहा गुस्सा घरवाली पर !

जनाब जब घर के गेट पर पहुँचते है तो अपने थोबडे में उनके भले ही बारह बज रहे हो मगर बीबी से उम्मीद करते है कि वह अपने पूरे श्रृंगार में मुश्कुराते हुए जनाब का स्वागत करे, इनका ब्रीफकेश उठाये और इनकी टाई और कोट उतारे ! और इसमे अगर जरा भी कोताही हो गई तो उस अधपके चिकन का सारा गुस्सा बेचारी उस मासूम पर, जो शाम होते ही जनाब की राह तकने लगी थी, और दिनभर इनके लिए शाम के खाने पहनने का इंतजाम करती रही, और इस सबका उसे पारितोषिक क्या मिला, इन जनाब की डांट डपट और मार ! सचमुच बहुत ही घटिया किस्म की प्रजाति है यह पुरूष वर्ग !

लेकिन जैसा कि अमूमन देखा गया है कि हर प्रजाति में थोड़ा बहुत भिन्न किस्म के प्राणी भी जन्म ले लेते है जो एक अपवाद बन जाते है ! ऐंसा ही अनुभव आपके साथ बाँटना चाहूँगा ! अभी पिछले हफ्ते रात करीब साड़े दस-ग्यारह बजे, भोजन के उपरांत, अपने पालतू कुत्ते को घुमा कर ला रहा था तो अपने मोहल्ले के नुक्कड़ वाले चौधरी साहब के घर के नीचे से जब गुजरा तो मुझे मिसेज चौधरी के चिल्लाकर बोलने और चौधरी साहब के चीखने की आवाज सुनाई दी ! मेरे पैर ठिठक कर रुक गए ! मिसेज चौधरी कहे जा रही थी " अरे थोड़ा तो शर्म करो , मच्छर को देखा है तुमने ? वह कितना बहादुर होता है , उसे यह पता होते हुए भी कि इंसान एक ताली बजा कर उसका काम तमाम करसकता है, फिर भी वह खून चूसने के लिए सायरन बजा कर जाता है ! और एक तुम हो .....".बीच बीच में किसी चप्पल अथवा झाडू नुमा चीज के बजने की भी आवाज आ रही थी और चौधरी साहब चीख रहे थे , अरे मेरी माँ... हाथ जोड़ता हूँ अब बस भी कर ...!

मैंने अभी जो थोडी देर पहले अपने टीवी पर वह घरेलु हिंसा वाला विज्ञापन देखा था मुझे तुंरत उसका स्मरण आ गया ! मुझे मेरी इंसानियत ने मेरी नैतिक जिम्मेदारी का अहसास कराया और मैं पहुँच गया सीधे उनके गेट पर ! मैंने गेट पर लगी बेल को जोर से बजाया और एक हाथ में कुत्ते की चेन पकड़े रखी और दूसरा हाथ कमर पर लगाकर अकड़कर थोड़ा तिरछा होकर खड़ा हो गया ! मिसेज चौधरी ने गेट खोलते हुए पुछा कौन है ? मैंने उस विज्ञापन वाले किरदार की तरह मिसेज चौधरी को घूरा तो वह तुंरत बोल पड़ी, ओये, ऐंसे क्या घूर रहा है, आँख निकाल दूँगी, मैं थोड़ा सहमा मगर अपने को फिर से नियंत्रित करते हुए रोबदार आवाज में बोला, थोड़ा दूध मिलेगा ? मिसेज चौधरी बोली , तो ऐंसे बोल न कि दूध चाहिए ! वह अन्दर गई दूध लेने और मैं खिसक लिया !

मगर तब गजब हो गया जब साड़े ग्यारह बजे रात मेरी गली में हंगामा खड़ा हो गया ! मिसेज चौधरी हाथ में दूध की कटोरी पकड़े खड़ी थी और मेरी पत्नी का नाम ले-लेकर आवाज दे रही थी ! मेरी पत्नी बाहर निकली तो उसने कहा, वो थारा खसम कहाँ है ? इत्ती रात गए दूध माग रहा था, ये ले, उसने दूध की कटोरी मेरी बीबी को पकडाई ! गेट बंद कर मेरी पत्नी हक्की - बक्की, क्रोध से लाल-पीली हुए अन्दर आई, मेरी तरफ़ खा जाने वाली नजरो से देखते हुए बोली, अच्छा तो उस दिन जो चाँद मुहम्मद बनने के जो सपने देखे जा रहे थे, वो सब इस चौधराहन की वजह से.... आज दूध मांगने गए थे..... ठहरो ! मैं पिलाती हूँ तुम्हे दूध... .... और फिर जनाब ...... क्या बताऊ ? मैं चीखता रहा मगर अडोष पडोश का कोई कमवक्त मेरे गेट पर घंटी बजाने नही आया, इसे कहते है, नेकी कर जूते खा...!

1 comment:

Anwar Qureshi said...

ये बात बिल्कुल सहीं है ...घरेलु हिंसा रोकी जानी चाहिए ...लेकिन मैं एक बात आप को ज़रूर बताना चहुँगा के प्रताड़ित सिर्फ़ महिलाएं नहीं होती है ...पुरूष भी होते है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पिछले २ सालों से पत्नी प्रताड़ित पुरूष संघ का गठन किया गया है ...और मैंने अभी शादी भी नहीं की है ...आप का लेख बहुत सहीं है ..