Friday, January 23, 2009

गाली, जो पुरुष्कार के बोझ तले दब गई !

कभी सोचता हूँ कि कितने भोले है हम हिन्दुस्तानी! क्या वाकई भोले है या फिर यें कहे कि मक्कार है ? अपने फायदे के लिए, पैसे के लिए क्या इज्जत और क्या आत्मसम्मान, सब कुछ दाँव पर लगा देते है ! या यूँ कहू कि इस नाम की कोई वस्तु कभी हमारे पास थी ही नही, तो दांव पर कहा से लगेगी ? वैसे भी कोरी ही सही, मगर इस अफवाह से कि हिन्दुस्तान आर्थिक प्रगति कर रहा है और आने वाले सालो में इनको पछाड़ सकता है, से परेशान पश्चिमी राष्ट्र, खासकर अमेरिका और ब्रिटेन हर उस पल के इंतज़ार में रहते है, जहाँ पर वो हिन्दुस्तान को किसी तरह नीचा दिखा सके ! आख़िर उनका एक पुराना गुलाम उनसे आगे निकलने की बात करता है !

वो हर उस मौके को बढ़ा चढा कर पेश करने से नही चूकना चाहते, जहाँ पर कि भारत की कोई कमजोरी, कोई नकारात्मक बिन्दु उजागर किया गया हो ! और ठीक यही मौका मिला उन्हें, एक ब्रिटिश डाईरेक्टर डैनी बोयले द्वारा निर्देशित फिल्म "सलम डॉग मिलिअनरी" के निर्माण के बाद ! मुंबई की सलम बस्ती पर बनी इस फ़िल्म में कहानी क्या है , मैं भी नही जानता और न ही जानना चाहता हूँ ! जो बात मैं कहना चाहता हूँ वह यह कि इस फ़िल्म के माध्यम से एक ब्रिटिश निर्देशक ने बड़े प्यार के साथ, हमारे लोगो, सलम बस्ती में रहने वाले हमारे गरीब लोगो गाली दी है, जी जनाब ! हमारे देश को न सिर्फ़ गाली दी गई अपितु उस गाली को सम्मानित कर हमारे देश को चौतरफा नीचा भी दिखने की कोशिश की गई है! और इससे क्रोधित होने की वजाए हम ज्यादातर हिन्दुस्तानी खुस हुए, बहुत खुस हुए और हमने जश्न मनाया !

जो लोग मेरी बात से सहमत न हो उनसे मेरे कुछ सवाल है :
१. इस फिल्म का नाम स्लम डॉग मिलिनरी न रख कर सिर्फ़ स्लम मिलिनरी भी तो रखा जा सकता था, इसमे "डॉग" शब्द जोड़ने का क्या आशय था, क्या जरुरत थी ?
२. एक विदेशी को इस तरह के नाम वाली फिल्म की सूटिंग हमारे देश में करने क्यो दी गई ?
३. इसके अधिकतर किरदारों के मुस्लिम नाम है ! क्या यह मुसलमानों को नीचा दिखाने और दुनिया के मुसलमानों के दिल में यह नफरत पैदा करने के उद्देश्य से तो नही बनाई गई कि इस देश में यें लोग कितनी दयनीय स्थिति है ?
४. फिल्म बना भी ली गई थी तो इतनी जल्दी, इतनी हडबडाहट में इसे गोल्डन ग्लोब पुरुष्कार और आस्कर ने लिए नामांकित करना क्या दर्शाता है ? हो सकता है कि फिल अच्छी भी हो लेकिन यह नही झलकता कि चूँकि इसका निर्माता निर्देशक विदेशी है, खासकर गोरी चमड़ी वाले है इसलिए इसे इतना महत्व दिया गया !
५. क्या हमारी फिल्मे 'सलाम बॉम्बे' , 'चक्रा' या फिर 'तारे जमीन पर' इत्यादि इससे बेहतर फिल्मे नही थी, उन्हें क्यो नही यें सब सम्मान दिए गए ?
६. इस फिल्म से उस गरीब जनता का क्या भला होता है, या उनको क्या मेसेज जाता है जिन्हें झुग्गी वाला कुत्ता कहकर नवाजा गया ?

खैर, यें तो था मेरा अपना दृष्टिकोण, अब देखना यह है कि वोट बैंक की राजनीती के लिए हाय तोबा मचने वाले इस देश के कर्णधार आगे चलकर इसे किस पुरुष्कार से नवाजते है !

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