Monday, May 25, 2009

हमारी सड़क छाप मानसिकता !

आज अचानक सड़क पर ड्राइव करते हुए एक ख्याल दिल को छूं गया ! मेरे आगे एक ब्रांड न्यू आइ २० जा रही थी ! सीटो पर अभी कवर भी नहीं चढ़े थे, जनाब ने शायद एक-दो दिन पहले ही डिलिवरी ली थी ! हां, लेकिन महाशय ने एक काम फटाफट कर डाला था ! उन्होंने गाडी के पिछले भाग के शीशे के एक कोने पर एडवोकेट का एक बड़ा सा स्टीकर( दो तिरछी काली पट्टी) चिपका दिया था ! आपने भी अक्सर सडको पर चलते नोट लिया होगा कि लोग कभी-कभी तो दो मोटी मोटी काली पट्टियां अपनी गाडी के आगे और पीछे इस तरह कहीं डालते है कि दूर से ही देखने से लगे कि एडवोकेट साहब आ रहे है ! दुपहिया और चौपहिया वाहनों के नंबर प्लेट के ऊपर लाल और नीले रंग की पट्टी तो आपने अक्सर देखी होगी, जो यह दर्शाता है कि वाहन किसी पुलिस वाले से सम्बंधित है ! कभी कभी तो यह देख कर भी हैरान हो जाता हूँ कि दीखने में तो गाडी कोई प्राइवेट गाडी ही होती है लेकिन उस पर पुलिस का सायरन लगा होता है और जहा जरुरत समझी बजा दिया !

मैं सोच रहा था कि इस तरह के होलोग्राम और स्टीकर चिपकाने के पीछे लोगो की क्या मानसिकता छुपी रहती होगी ? क्या इसका मतलब लोगो को यह जतलाना रहता होगा कि देखो जिस गाडी को तुम फौलो कर रहे हो वह किसी छोटे मोटे इंसान कि नहीं है, किसी एडवोकेट अथवा पुलिस वाले की है ! या फिर क्या वह इंसान ट्राफिक पुलिस वाले को यह जतलाना चाहता है कि उसे रोकने की कोशिश मत करना, वह कोई एडवोकेट अथवा पुलिस वाले का है ? नेताओ और अफसरों के तो क्या कहने ? इनको देखकर कभी- कभी ऐंसा नहीं लगता कि क्या सचमुच हम स्वतंत्र भारत में जी रहे है ? क्या हमारी मानसिकता में गुलामी इतने अन्दर तक अपनी पैंठ बना चुकी है ? जो छोडे नहीं छूटती? एक ज़माना था जब दोपहिया और चौपहिया वाहनों पर हम लाल क्रॉस देखते थे जो यह जतलाने के लिए होता था कि वह वाहन किसी डॉक्टर का है और उसे कृपया रास्ता दे, क्योंकि हो सकता है कि किसी की जान मुसीबत में हो और डॉक्टर वहा पहुँचने की जल्दी में है ! लेकिन आजकल यह सब नहीं दीखता !

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