आज इस दुनियां मे मौजूद हर धर्म का उद्देश्य उसे मानने वाले अनुयायियों को उनके द्वारा जीवन को जीने के अपने एक खास नजरिये के प्रति प्रेरित और सजग करना होता है। हर धर्म की जहां अपनी कुछ खास विषेशतायें होती है,वही कुछ कमियां भी है। और अक्सर देखा गया है कि यहां, हमेशा ही किसी एक धर्म की दूसरे धर्म के अनुयायियों द्वारा तरह-तरह की आलोचना की जाती रही है। लेकिन शायद इस दुनिया मे हिन्दु धर्म ही एक मात्र ऐसा धर्म है जो कि न सिर्फ़ दुनियां का सबसे पुराना धर्म है अपितु इस धर्म को, इस धर्म के ही मानने वाले तथाकथित सेक्युलरों ने समय-समय पर प्रताडित किया है। जबकि देखा जाये तो अब तक इस धर्म की अनेक मान्यताओं को भले ही परोक्ष तौर पर ही सही, मगर दुनिया के अन्य हिस्सों मे मौजूद दूसरे धर्म के अनुयायियों ने भी मान्यता दी है। यह तो आप सभी जानते है कि पूर्व मे दुनियां भर के वैज्ञानिकों ने बहुत सी ऐसी चीजों की खोज की, अनेक ऐसी बातों को अपने अलग तौर पर प्रमाणिक सिद्ध किया, जिन्हे कि हिन्दु धर्म ग्रंथ और विद्वान आदिकाल मे ही जीवन-शैली मे सम्मिलित कर चुके थे।
भले ही आज की पाश्चात्यपरस्त हमारी युवा शिक्षित पीढी बात-बात पर अपने हिन्दु धर्म की मान्यताओं और रीति-रिवाजों का मजाक उडाती हो, मगर आपको मालूम होगा कि हमारे हिन्दु धर्म की मान्यताओं मे विश्वास रखने वाले कुछ लोग आज भी अपने लड्के-लड्की का रिश्ता तलाशते वक्त लड्के और लड्की के खानदान, गोत्र इत्यादि का उनके पिछ्ली सात पुस्तों का लेखा-जोखा देखते है कि लड्के अथवा लड्की की मां-दादी किस गोत्र की थी, दादा-नाना किस गोत्र के थे, उनका खानदान और चालचलन कैसा था ? इत्यादि-इत्यादि, वह इसलिये नही कि वे अन्ध विश्वासी है, बल्कि इसलिये कि इन बातों का वैज्ञानिक प्रभाव आने वाली पीढियों पर पड्ता है। और अब तो हम-आप जैसे सेक्युलर लोग भी इस बात को मानने वाले है क्योंकि अब यह बात हमारे देश के और हिन्दु धर्म के मानने वाले वैज्ञानिको द्वारा नही वल्कि स्वीडन के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के बाद सिद्ध कर दी है कि अगर दादा अथवा नाना का कभी हड्डियों का विकार रहा हो अथवा उनकी रीढ की हड्डी कभी किसी दुर्घट्ना की वजह से कभी टूटी हो तो उसका असर उनके पोते पर भी पड्ता है। इसीलिये हमारे यहाम वह कहावत बहुत प्रचलित है “ बाप की बिगाडी हुई पूत को भुगतनी पड्ती है। तो चलिये, आगे से ध्यान रखियेगा कि जब भी अपने बेटे-बेटी का कहीं रिश्ता करने जावो तो अपने आने वाली पुस्तों की सलामती के लिये यह भी पता कर लेना कि कभी लड्के अथवा लडकी के बाप-दादा की रीढ की हड्डी तो नही टूटी थी?
भले ही आज की पाश्चात्यपरस्त हमारी युवा शिक्षित पीढी बात-बात पर अपने हिन्दु धर्म की मान्यताओं और रीति-रिवाजों का मजाक उडाती हो, मगर आपको मालूम होगा कि हमारे हिन्दु धर्म की मान्यताओं मे विश्वास रखने वाले कुछ लोग आज भी अपने लड्के-लड्की का रिश्ता तलाशते वक्त लड्के और लड्की के खानदान, गोत्र इत्यादि का उनके पिछ्ली सात पुस्तों का लेखा-जोखा देखते है कि लड्के अथवा लड्की की मां-दादी किस गोत्र की थी, दादा-नाना किस गोत्र के थे, उनका खानदान और चालचलन कैसा था ? इत्यादि-इत्यादि, वह इसलिये नही कि वे अन्ध विश्वासी है, बल्कि इसलिये कि इन बातों का वैज्ञानिक प्रभाव आने वाली पीढियों पर पड्ता है। और अब तो हम-आप जैसे सेक्युलर लोग भी इस बात को मानने वाले है क्योंकि अब यह बात हमारे देश के और हिन्दु धर्म के मानने वाले वैज्ञानिको द्वारा नही वल्कि स्वीडन के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के बाद सिद्ध कर दी है कि अगर दादा अथवा नाना का कभी हड्डियों का विकार रहा हो अथवा उनकी रीढ की हड्डी कभी किसी दुर्घट्ना की वजह से कभी टूटी हो तो उसका असर उनके पोते पर भी पड्ता है। इसीलिये हमारे यहाम वह कहावत बहुत प्रचलित है “ बाप की बिगाडी हुई पूत को भुगतनी पड्ती है। तो चलिये, आगे से ध्यान रखियेगा कि जब भी अपने बेटे-बेटी का कहीं रिश्ता करने जावो तो अपने आने वाली पुस्तों की सलामती के लिये यह भी पता कर लेना कि कभी लड्के अथवा लडकी के बाप-दादा की रीढ की हड्डी तो नही टूटी थी?
6 comments:
हिन्दू धर्म का आधार पूर्णतः वैज्ञानिक है!
अब पश्चिम की ओर से इसकी प्रमाणिकता का सर्टीफिकेट जारी कर दिया गया है तो यहाँ के पश्चिमबुद्धियों द्वारा भी इसे स्वीकार किया समझिए...बस एक बार इस समाचार की सत्यता सिद्ध हो जाए. क्या पता आपने यूँ ही हवा में उडाई हो :)
धर्म के हर बात के पीछे कुछ ना कुछ ग़ूढ रहस्य होता है मगर हम जानना ही नही चाहते पर धीरे धीरे सब कुछ सामने आने लगता है अभी और बातें सामने आएँगी भले हमें अंधविश्वास ही लगे ..एक बढ़िया जानकारी....आभार
गोदियाल जी , गोत्र मिलाने का उद्देश्य यही होता है की ---इन ब्रीडिंग न हो। यानि पति पत्नी दूए के भी रिश्तेदार न हों। ऐसा करने से बच्चों को मिलने वाले जींस उन्हें मज़बूत बनाते हैं। दूसरा , कुछ बीमारियाँ वंशागत होती हैं, उनसे भी छुटकारा पाया जा सकता है।
Excellent Article.
कृपया यहाँ पधारे और जुड़े:
http://groups.google.com/group/AHWAN1
@पं.डी.के.शर्मा"वत्स" : आदरणीय वत्स साहब, यह खबर आप कल यानि रविवार के दैनिक हिन्दुस्तान के आख़िरी पन्ने पर देख सकते है !
Post a Comment