एक बार एक पहाडी गाँव के नए-नए बने एक गरीब प्रधान जी के घर पर मेहमान को कुछ देर ठहरने का सौभाग्य मिला तो उनकी धर्म- पत्नी की बुद्धिमता की प्रशंसा किये बगैर नहीं रह सका ! आइये आपको भी सुनाते है ! प्रधान जी को चावल का गरम-गरम मांड पीने का शौक था! उनकी धर्मपत्नी ने चावल अभी चूल्हे में रखे ही थे कि हम यानी मेहमान टपक गए ! बाहर प्रधान जी मेहमानों के साथ गपो में व्यस्त थे ! उनकी पत्नी ने उबलते चावलों में से मांड निकाल कर एक गिलास में उनके लिए रख दिया था! लेकिन अब प्रश्न प्रधान जी की नाक का था कि कहीं मेहमानों के सामने मांड उन्हें पीने को देकर नाक न कट जाए ! लेकिन मांड भी ठंडा हो रहा था, ठन्डे मांड से प्रधान जी भी उस पर गुस्सा कर देंगे! अब क्या करे? अत: कुछ देर इन्तजार करने के बाद अन्दर किचन से उसने जोर से गाने के से अंदाज में बोला " धान सिंह का बेटा मांड सिंह , पीना है तो आओ नहीं तो शीतलपुर को जाता है" !
बस प्रधान जी समझ गए, और "आप बैठिये मैं अभी आया" कहकर मांड पीने चले गए !
Monday, January 11, 2010
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26 comments:
हा हा हा हा हा हा ...मज़ा आ गया...बहुत रोचक प्रसंग...
नीरज
" धान सिंह का बेटा मांड सिंह , पीना है तो आओ नहीं तो शीतलपुर को जाता है"!
वाह! जोरदार तरीका है बुलाने का!
बहुत समझदार औरत थी. बिल्कुल सलीकेदार.:)
रामराम.
बेहतरीन-जोर का झटका।:)
किस्सा सुना हुआ है पर लगता है अधूरा है। प्रधान जी ने बाहर से जो जवाब दिया। वह भी होना चाहिए था इस में। चलो दूसरी किस्त मे ही सही। वरना पहेली बना कर पूछा भी जा सकता है।
nice
हा हा! सब का तरीका निकल ही आता है...
बहुत आनन्द आया जी!
ब्लॉग पर हाजिरी तो हो ही गई!
बहुत सही । क्या समझदारी है !
गर्म गर्म मांड पीने का शौक ---दिलचस्प लगा।
hahaha bahut samajhdaar patni thi vo.maja aaya padh kar.
बहुत खूब क्या आइडिया अपनाया घरवाली ने प्रधान जी को बुलाने का..मजेदार गोदियाल जी बढ़िया एवं मजेदार घटना
दिलचस्प।
और लोग कहते हैं...कि औरतों में दिमाग नहीं होता ...
बेचारे ...!!
हा हा मजा आ गया
पत्निया ऐसी ही समझदार होती हैं ...कोई शक नहीं ...!!
good !
गोदियाल जी,
क्या कोई पत्नी समझदार नहीं भी होती...
चलूं रसोई से आवाज़ आ रही हैं...मांड पी लो...पीना ही पड़ेगा...अपनी टांड गंजी कोई करानी है...
जय हिंद...
पति को बुलाने का दिलचस्प तरीका
ईश्वर ऎसी समझदार पत्नि सब को दे :)
waah...........maza aa gaya.
मजेदार, बुलाने का तरीका तो बहुत अच्छा लगा... लेकिन पत्नी ओर वो भी समझदार? हो सकता है :)
गोदियाल जी काफी पहले घुघूती बासूती में पढ़ा था यह किस्सा ! संभवतः वे भी उसी क्षेत्र की हैं जहां के आप हैं!
दरअसल यह किस्सा भारतीय लोक मेधा का प्रमाण है, घुघूती जी को लम्बी टिप्पणी दी थी उसे ढूंढना कठिन है पर मैं काल्पनिक रूप से ही सही , वही टिप्पणी आपको भी समर्पित कर रहा हूँ !
वाह वाह मजा आ गया.
अरे इस तरह की एक घटना हमारे साथ घटित हुई है . हम अपने एक रिशेतादार के यहाँ पहुंचे . अब हमारे आने का समाचार उन्हें
मिल चुका था लेकिन उसी समय उनके यहाँ और mehmaan आ गए .
जिनके यहाँ हम गए थे वह रिश्ते में कह दीजिये हमारी डेढ़साली की लड़की थी याने हम उसके मौसा हुए . अब भोजन की बारी आयी . सबको प्रथम चरण में भोजन परोसा गया . दूसरी बर लोग सम्हल जाएँ सोचकर वह बिटिया चतुराई से अपने श्रीमान जी को खाली कुकर दिखाकर कहने लगीं आपको चावल लेना है क्या . .... अब श्रीमान जी समझ गए माज़रा क्या है, कहने लगे "अरे कैसी बात कर रही हैं आप हम कोई जानवर थोड़े हैं ..... " बस क्या था बाकी लोगों को दुबारा मांगने की हिम्मत कहाँ ?...... मजा आ गया ऐसा ही वाकया लिखा पाकर.
काश हमारे प्रधान मंत्री जी भी इतने समझदार होते ......... बहुत मजेदार किस्सा सुनाया .........
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