आज मुझे छुट्टी से लौटकर अपनी यूनिट आये पूरे आठ महीने बारह दिन हो गए, लेकिन साले, तूने इस दौरान मुझे एक भी ख़त नहीं लिखा ! यहाँ हमारे पास इ-मेल भेजने का कोई साधन नहीं , इसका मतलब यह तो नहीं कि तू ख़त भी न लिखे ! तुझे याद हो न हो, लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद हैं वो कॉलेज के दिनों की बाते, और वो पी. सी. की फुल फॉर्मस, सारी की सारी ....! अगर मैंने एक-एक कर कभी भाभी जी को सूना दी
तो फिर रोयेगा, मैंने बता दिया ! अगर बचना चाहता है तो हर महीने कम से कम एक ख़त मुझे जरूर लिख दियाकर ! साले, एक तू और रेखा ही तो हैं मेरे इस दुनिया में, जिन्हें मैं दिल की हर बात बता पाता हूँ, और मन का बोझ हल्का कर पाता हूँ!
आज फिर से इस पत्र के माध्यम से, तुझे मैं अपने दिल की एक और बात बताना चाहता हूँ ! सोचा था कि यह बात मैं अभी अपने ही दिल में दफ़न करके रखूगा, और जब काफी साल गुजर जायेंगे, तब तुम्हे बताऊंगा ! लेकिन अपने मुल्क से दूर, यहाँ इस विदेशी मुल्क में न जाने कभी-कभी ऐसा क्यों लगने लगता है कि इस साल की दो महीने की छुट्टियाँ अपने घर वालो और तुम जैसे लोगो के साथ बिता पाने का सुअवसर शायद फिर से मिले न मिले ! यूँ तो मौत पर किसी का भी बर्चस्व नहीं है, मगर यहाँ हमारे साथ कदम-कदम पर अनिश्चित्ताये..... तुम समझ सकते हो !
पिछले साल का यह वाकया है, बी आर के इंजीनियरों की सुरक्षा का जिम्मा मुझे सौंपा गया था ! उन्ही इंजीनियरों में से एक था, परवेज आलम ! एक दिन सुबह जब हम लोग उन्हें एस्कोर्ट करते हुए एक निर्माणाधीन पुल की और ले जा रहे थे, तो तालिबानियों ने विस्फोट कर दिया ! मेरे दो जवान और एक इंजीनियर उसमें शहीद हो गए थे, और परवेज तथा उसका एक और साथी गंभीर रूप से जख्मी ! परवेज को खून की जरुरत थी, मगर उसका ब्लड ग्रुप किसी से मैच नहीं हो पा रहा था ! चूँकि मेरा ओ पोजेटिव ग्रुप है, इसलिए डाक्टरों ने मुझे खून देने की सलाह दी, मैंने तुरंत ही खून दिया ! करीब पंद्रह दिनों बाद परवेज फिर सही सलामत हो गया था! कुछ और महीने गुजरे, इस बीच वहाँ कैम्प में हमें चाय-पानी पिलाने हेतु एक स्थानीय १२-१३ साल का बच्चा आबिद काम करता था ! एक सुबह मैंने देखा कि परवेज उसे अपनी सरकारी जीप में ड्राइविंग सिखा रहा था, मैंने सहज यह मान लिया कि यह सामान्य सी बात है कि परवेज को शायद बच्चो से ज्यादा लगाव होगा, और साथ ही आबिद और वह एक ही धर्म से सम्बद्ध है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर यह उसका आबिद के प्रति लगाव है, जो उसे इतनी बारीकी से ड्राइविंग सिखा रहा है ! यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा, इस बीच हमारे कैम्प के पास ही एक और आतंकवादी हमला हुआ, दोनों तरफ से हुई गोली बारी में बहुत सारे स्थानीय लोग मारे गए थे, जिसमे से एक थी आबिद की बड़ी बहन, खालिदा, अपने परिवार में वह दो भाई और तीन बहने थी !
इस घटना के बाद से मैंने आबिद के व्यवहार में बहुत से परिवर्तन देखे, वह जिस तरह पहले हमारे से व्यवहार करता था, उसमे एकदम बदलाव आ गया था! मैं उसके आतंरिक दर्द को भांप रहा था ! मैंने कई बार उससे उसका दर्द बाँटने की भी कोशिश की, मगर उसमे भी पेंच थे, परवेज के अलावा वहाँ किसी और को उनकी भाषा ठीक से बोलनी समझनी नहीं आती थी ! अचानक एक दिन सुबह उठे तो पास के नाले पर कोहराम मचा हुआ था! किसी ने आबिद की दूसरी बड़ी बहन और भाई का क़त्ल कर, छोटे से नाले में डाल दिया था! जब मैं अपने कुछ जवानो के साथ वहाँ पहुंचा तो देखा कि परवेज उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था ! मैंने आगे बढ़ परवेज से सारे हालात का जायजा लिया, तो उसने मुझे घटना की जानकारी दी ! और साथ ही यह भी बताया कि मैं इन्हें यह समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि यह घृणित काम, हो न हो आतंकवादियों का ही है, उन्होंने आबिद की बहन की अबरू लूटने के बाद उसका और उसके भाई का क़त्ल कर दिया था ! परवेज के इस जज्बे से मैं काफी प्रभावित हुआ था! एक दिन दोपहर में लंच के बाद मैं कुर्सी पर यों ही सुस्ता रहा था कि एक पठान दोनों हाथो की उंगलिया आपस में जोड़, उन्हें रगड़ता हुआ मेरे सामने आया, ड्यूटी पर मौजूद गार्ड ने बताया कि वह आबिद का अब्बू है ! वह मुझसे कुछ कहना चाहता था, मैंने उसे साहस दिलाते हुए कहा कि बताओ क्या तकलीफ है तुम्हे ! कुछ इधर-उधर देखने के बाद वह पठानी अंदाज में टूटी-फूटी हिन्दी में बोला, और जो मैंने सुना, मेरे रौंगटे खड़े हो गए थे ! एक सरीफ सा दिखने वाला इंसान इतना कमीना कैसे हो सकता था, मेरी समझ में नहीं आ रहा था! मैंने उसकी बात सुन पूरी तहकीकात का आश्वासन उसे दिया, तो वह चला गया!
मेरे दिमाग में आबिद के पिता/ अब्बू के कहे शब्द गूंजे जा रहे थे, अत: मैंने परवेज पर नजर रखनी शुरू कर दी थी! गर्मियों का मौसम था, मगर दूर पहाडो से आने वाली सर्द हवाए वातावरण में ठंडक पैदा किये हुए थे ! एक दिन शाम करीब सात बजे, जब मैं कैम्प के आस पास घूम रहा था तो एक टिन के सेड के पास मुझे कुछ खुसर-फुसर सुनाई दी ! दबे कदमों से मै जब पास गया, तो पाया कि परवेज किसी स्थानीय पुरुष से दबी जुबान में बाते कर रहा था! कुछ पल बाद वह चला गया, मैं वहाँ छुपकर परवेज की गतिविधियों पर नजर गडाए था! थोड़ी देर बाद आविद वहाँ आया और परवेज उसे एक पिता की तरह प्यार से कुछ समझाने लगा ! परवेज उसे कुछ निर्देश दे रहा था, और वह मासूम सहमती में अपनी गर्दन हिला देता था! इससे परवेज के चहरे पर एक शैतानी मुस्कराहट सी दौड़ पड़ती थी! मैं किसी अनहोनी की आशंका से पूर्ण सचेत हो गया था ! रात आठ बजे रोल-कॉल के बाद जवान अपने रात्रि- भोज के लिए लंगर के पास एकत्रित होते थे! परवेज द्वारा आबिद को दिए निर्देशों से मैं इतना तो समझ ही गया था कि वह उसी दौरान किसी बड़ी बारदात को अंजाम दिलाना चाहता था ! परवेज के साथ प्री-प्लान के हिसाब से ठीक आठ बजे आतंकवादियों ने हमला बोल दिया था, अत: बिना देरी किये मैंने परवेज और आविद दोनों को बिना सोचे समझे गोली मार दी! जवान आतंकियों से जूझ रहे थे, मैंने जब परवेज वाले टेंट का मुआयना किया तो पाया कि एक बारूद से भरी जीफ टेंट से कुछ दूरी पर खडी थी, जिसे शायद आबिद चलाकर लंगर तक ले जाने वाला था! चारो आक्रमणकारी मारे गए थे ! और मैंने अगले दिन यह दर्शाया कि परवेज और आबिद भी आतंकवादियों का शिकार हो गए, जबकि कहानी कुछ और थी, परवेज अपनी अतृप्त वासना की पूर्ति के लिए आबिद की दो बहिनों की बली चढ़ा चुका था, यह जानकारी आबिद के अब्बू ने मुझे दी थी ! और इसके लिए आतंकवादियों के स्थानीय आंका से मिलकर दोष हमारे सिर मढ़ कर आत्मघाती हमले के लिए आबिद का दिमाग सफाई ( ब्रेनवास) के जरिये उसको तैयार कर रहा था !
जब तक वह एक देशभक्त था, मैंने उसे खून भी दिया,
जब गद्दारी पर उतर आया, तो मैंने उसे भून भी दिया !!
तब से यह मेरे मन पर एक बोझ सा था, आज तुझे बताकर हल्का सा महसूस कर रहा हूँ ! हाँ, ध्यान रहे कि मैंने अभी यह बात रेखा को नहीं बताई और तुमसे गुजारिश है कि तुम भी मत बताना !
तुम्हारा ..
नोट : कहानी की घटना और पात्र सब काल्पनिक है, अत: इसे अन्यथा न लिया जाये !
Saturday, November 21, 2009
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10 comments:
एक सही लेखक का काम सांप्रदायिकतावादी, पूंजीवादी, प्रतिक्रियावादी, अलगाववदी एवं यथास्थितिवादी शक्तियों के जाल में जकड़े समाज में छटपटाने की भावना और उस जाल को तोड़ने की शक्ति जागृत करना है। अंत तक पठनीयता से भरपूर होना ही इसकी सार्थकता है
परवेज़ हो या प्रवेश, इस तरह के तत्त्वों की यही गति होनी चाहिए।
बहुत जल्दी जीने के लिए सतत सतर्कता एक अनिवार्य शर्त हो जाएगी। दुनिया ऐसे ही रस्ते जा रही है।
बहुत अच्छी कहानी लिखी ओर ऎसा हो भी रह है, अब गद्दर कोई भी हो हिन्दू या मुस्लिम वो सिर्फ़ गद्दार ही कहलायेगा, ओर सजा भी इन्हे उचित मिली. यह देश केवल हिन्दु का ही नही मुस्लिम का भी उतना ही हक है ओर दोनो को ही इसे बनाना है, इस के साथ गद्दारी की सजा सिर्फ़...यही है
बहुत सुन्दर और सार्थक सन्देश देती कहानी बधाई
कथा लघु..मर्म दीर्घ...
जब तक वह एक देशभक्त था,
मैंने उसे खून भी दिया,
जब गद्दारी पर उतर आया,
तो मैंने उसे भून भी दिया !!
बहुत बढ़िया!
इसे आप काल्पनिक न लिखते तो हम सच ही समझते ...जीवंत!
श्री गोदियाल सर, ऐसी घटनाएँ कोई नई तो नहीं लेकिन वास्तव में अन्दर तक कंपा देनी वाली होती हैं.. पता नहीं चलता की किस पे भरोसा करें और किस पे नहीं..
है तो कहानी लेकिन शायद किसी न किसी के लिए हकीकत भी होगी..क्या पता?
जय हिंद..
बहुत ही गहरी प्रभाव छोडती हुई कहानी । गिरिजेश राव जी से सहमत ।
मुल्क के साथ गद्दारी का यही अंजाम होना चाहिये,जो इस कहानी में बताया गया है
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