सरकार को दोष क्यों न दे ? आखिर सरकार ने इस बारे मे किया ही क्या, सिवाए अपने देश के इन तमाम महान संचार माध्यमों के मार्फ़त आम जनता के दिलो-दिमाग पर स्वाइन फ्लू का आतंक फैलाने के ? एक अपने स्वास्थ्य मन्त्री जी है, जिन्हें खुद को नही मालूम होता कि वे बोल क्या रहे है ! इस बारे मे आम नागरिक क्या कर सकता है, सिवाये भुगतने के ? आज से पांच महिने पहले इस लाइलाज बीमारी के जब अमेरिका मे पांव पसारने की बात सामने आ गई थी, तो तब से क्या हम और हमारी यह सरकार सो रही थी ? इस पांच महिने का वक्त इसलिये मिल गया था, चूंकि फ्लू का वायरस यहां की गर्मी मे पैर पसारने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था ! आज जब देश के अन्य भागों की तुलना मे, अपेक्षाकृत थोडा ठंडी जगहों और खासकर उन जगहों पर जहां विदेशो से वापस लौटे लोग ज्यादा पहुंचे, अफ़रा-तफ़री मच चुकी है, तब जाकर इस सरकार की नींद खुली! क्या ही अच्छा होता कि तुंरत अप्रैल मे ही १५-२० मेडिकल से जुडे लोगो का एक दल बनाकर प्रशिक्षण के लिए वहाँ भेजा जाता, जहां इसकी तकनीक उपलब्ध थी ! आवश्यक बुनियादी उपकरण खरीद लिए जाते, और हर उस विदेश से आने वाले के ऊपर नजर रखी जाती, जो इससे संक्रमित पाया जाता ! और ज्यादा नहीं तो चार महानगरो में, चार अलग मोबाईल चिकित्सालय खोले जाते ताकि ऐसे लोगो का वहा उपचार किया जा सके !
लेकिन इसके लिए सरकार के पास संसाधनों की कमी थी, क्योंकि यह एक आम नागरिक के स्वास्थ्य से जुड़ा मसला था ! हां, अगर कोमंवेल्थ गेम के लिए विश्वस्तरीय खेल सुविधावो का जायजा लेने का बहाना होता, तो सरकार के सारे मंत्री और उच्च तब्के के नौकरशाह, अपने परिवारों के साथ एथेंस और जापान घूम-घूम के अब तक आ चुके होते ! कहाँ तक कोसें सरकार को, कोसते-कोसते उम्र गुजर जाएगी !
"हर डाल पे.............." !
खैर, मित्रो, समस्या इतनी गंभीर भी नहीं है, जितना कि हमारे इस ग्रेट मीडिया ने हौवा खडा कर रखा है ! जैसा कि आप लोग स्वयं जानते है कि फिलहाल यह एक लाइलाज बीमारी की तरह है ! चिकित्सा जगत के पास इसका कोई सुनिश्चित उपचार अभी तक नहीं है ! फिर भी आप इसे बहुत ज्यादा गंभीरता से ना ही ले तो बढिया, क्योंकि मैं आपको एक उदाहरण से समझाता हूँ ! आजकल देश में, खासकर उत्तरभारत में मौसम के बदमिजाजी की वजह से बहुत सी शारीरिक बीमारियाँ चली हुई है, जिसमे सामान्य फ्लू, बुखार, बदनदर्द इत्यादि-इत्यादि से लोग पीड़ित है ! लेकिन प्रचार माध्यमो ने स्वाइन फ्लू का जो हौवा खडा किया, उससे लोग इन सामान्य बीमारियों को भी उसी नजरिये से देख रहे है, और अत्यधिक डरे हुए है ! जबकि ऐंसा कुछ भी नहीं है ! मैं मानता हूँ कि यह स्वाइन फ्लू की बीमारी एक घातक बीमारी है, मगर ऐसा कतई नहीं है कि इसके एक बार हो जाने से मनुष्य ठीक ना हो ! अगर मरीज की ठीक तरह से उचित देखभाल की जाए तो कुछ ही दिनों में मरीज ठीक हो सकता है ! ठीक उसी तरह जिस तरह सामान्य सर्दी जुकाम से पीडित होने के बाद ! साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि अब, जब यह बीमारी हमारे देश में आ ही गई, तो निकट भविष्य में ख़त्म नहीं होने वाली ! बहुत लम्बी खिचेगी और सर्दियां तो अभी आनी बाकी है !
अतः जब हम यह सब जानते ,है तो डरना किस बात का ? जरुरत है तो सिर्फ सावधानिया बरतने की ! कुछ घरेलू सावधानिया है, जिन पर आप लोग भी गौर फरमा सकते है;
१.स्वच्छ रहिये
२.अमूमन हर घर में लोग तुलसी का पौधा रखते है, रोज सुबह उठकर पांच पत्तिया तुलसी की निकाल कर धोने के बाद चबा ले !
३.चाय में भी आप अदरक और तुलसी की पत्तिया डालकर उसे खूब उबालकर पिए
४. चाहे अभी आपको जुकाम लगा हो अथवा नहीं, मगर रोज रात को सोते वक्त शरीर पर छाती और गर्दन पर विक्स मले! ५. अगर नाक बह रही हो तो सोने से पहले एक बर्तन में उबलता पानी लेकर उसमे विक्स डालकर गहरी-गहरी साँसे ले ! रोज सुबह शाम व्यायाम करे, आप कमरे के अन्दर भी कर सकते है !
६. प्रारंभिक जुकाम, बदनदर्द महसूस होने पर सामान्य सर्दी जुकाम में ली जाने वाली परम्परागत दवाई की हल्की डोज ले सकते है, उसके बाद लगे कि नहीं फर्क पद रहा तो तब डॉक्टर को दिखाए !
७. खुश रहने की चेष्टा करे, क्योंकि आपने देखा होगा कि एक हंसमुख इंसान को जुकाम कम ही लगता है ! छोटे बच्चो को रोने न दे, क्योंकि रोने के बाद बच्चा अक्सर खांसी करता है !
८. प्रारंभिक तौर पर आयुर्वेदिक दवा Influenzinum डॉक्टर की सलाह पर लेने में भी कोई बुराई नहीं, क्योंकि इनका साइड इफेक्ट कम होता है !
९. जैसा कि एक मित्र ने कल अपने ब्लॉग पर लिखा था कि जब भीड़ वाली जगहों पर जा रहे हो तो कमीज की जेब में कुछ कपूर या फिनाइल की गोलिया रखे ! अगर अफोर्ड कर पाने की स्थिति में हो तो कमीज के कालरो अथवा गर्दन के आस पास कुरते पर इत्र छिड़ककर भी जा सकते है, क्योंकि इसकी गंध जीवाणुओ को दूर भगाती है !
और अंत में यही कहूंगा कि अपने इन महान चैनलों से तो हम कुछ नहीं कह सकते, किन्तु कोशिश कीजिये कि इन्हें जितना कम देखे, उतना बढिया ! जिस अखबार को आप पढ़ते है उसके सम्पादक को लिखित में निवेदन करे कि अखबार के प्रथम प्रष्ट पर इस तरह की भयभीत करने वाली सामग्री ना छापे, क्योंकि इससे इंसान के अन्दर डर पैदा होता है और रिसिस्टिंग पावर कम होती जाती है ! जब हमें मालूम है कि इसका कोई प्रामाणिक इलाज मौजूद नहीं, तो बस यही गुनगुनाते रहे कि
" दो पल के जीवन से इक उम्र चुरानी है..... जिन्दगी और कुछ भी नहीं ......"
Wednesday, August 12, 2009
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7 comments:
AAPKI BAHOOT KAAM KI JAANKAARI DE HAI.....ISKA AUR BHI PRACHAAR HONA CHAHIYE
Bhai Article pada. Exactly I will try to follow it to keep away of swain flu. Thanks you jee......
आपकी पोस्ट बहुत अच्छी है.
आप लोगो का तहे दिल से शुक्रिया और जन्माष्टमी की ढेरो बधाई !! शशिधर जी, एक और राज की बात बताऊँ आपको, मेरी जानकारी के मुताविक अभी तक एक भी बेवडे (टल्ली) को स्वायिन फ्लू नहीं हुआ, हा-हा-ह-अह-हा-हा, उम्मीद है आप मेरे शब्दों को सिर्फ मजाक के तौर पर ही लेंगे !
अच्छी पोस्ट लिखी है बधाई।
अत्यन्त सुंदर! श्री कृष्ण जनमाष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
जिस प्रकार का बवाल मचाया जा रहा है वह शायद किसी महामारी में भी नहीं फैला होगा। बस यही कहेंगे......ये स्वाइन लोग भी ना....
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