सर्वप्रथम आप सभी को नववर्ष-२००९ की हार्दिक शुभकामनाये !
रूस के एक प्रोफ़ेसर ने क्या कहा, ये कोई ज्यादा मायने नही रखता ! जो बात रूस का प्रोफेसर अब कह रहा है कि रूस और चीन बड़ी शक्ति के रूप में उभरेंगे, और अमेरिका ६ भागो में विभक्त हो जाएगा ! अगर यह ६ भागो में विभक्त होने जैसी बात को हम अलग कर दे, तो आपको भी मालूम होगा कि कुछ समय पहले अमरीकी नेशनल इंटेलिजेंस काउंसिल का भी यही कहना था कि आने वाले वर्षों में चीन, भारत और रूस से अमरीका को कड़ी चुनौती मिलेगी ! काउंसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में मुख्य मुद्रा के रुप में स्वीकार्य अमरीकी डॉलर अपनी चमक खो बैठेगा ! चीन के बारे में कहा गया है कि यह वर्ष 2025 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और बड़ी सैनिक ताकत के रुप में उभरेगा !
समय कभी एक सा नहीं रहता, आज जो शीर्ष पर है कल उसे नीचे भी आना ही है, यही दुनिया के पहिये का दस्तूर भी है ! एक समय था जब रोम और फिर इंगलैडं का एक छत्र राज हुआ करता था विश्व के बहुत से देशों पर ! इसलिए सुपरपावर की दौड़ में कल अगर अमेरिका पिछड़ गया तो कोई बड़ा आश्चर्य नही ! निश्चित रूप से वह समय भी आयेगा जब दुनिया पर अमेरिका दबदबा भी ज्यादा दिन नहीं रहने वाला ! शीत युद्ध के बाद अमेरिका ने दुनिया पर एक छत्र राज सा ही किया पर कुछ समय से रूस और चीन ने जिस तरह अपने को उभारा है वो अमेरिकी दबदबे को एक चुनोती है! इस आर्थिक मंदी ने अमेरिका को और भी बडा झटका दिया है जिससे उभारना उसके लिए बड़ा मुश्किल हो रहा है ! लेकिन कई मामलों में उसका महत्व बरक़रार रहेगा! चीन की यथास्थिति से तो मैं ज्यादा परिचित नहीं लेकिन दावे के साथ कह सकता हूँ कि भारत को अमेरिका जैसा बनाने में १०० साल से ज्यादा का समय लगेगा ! ऐसा इसलिए की भौतिक परिवर्तन से पहले मानसिक परिवर्तन जरूरी है जिसको कि बहुत समय लगेगा और बहुत कठिन भी है ! हम कितनी बडी महाशक्ति बनने जा रहे है इसकी पोल २६/११ ने खोल दी है ! सोचने की बात यह है कि 'शक्तिशाली' होने तथा 'शक्तिशाली और संपन्न' होने में अंतर है सरकारी तंत्र में कूट कूट कर भरी नाकामी और नपुंसकता पर जीत हासिल करनी एक टेडी खीर के समान है ! यह सच है कि वतर्मान आर्थिक मंदी की दौर में अमरीकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाती नज़र आ रही है पर इसका मतलब ये नहीं कि अमरीका अब बिखर जायेगा !
चीन और रूस कुछ आगे बढ़ सकता है लेकिन भारत को तो अभी 100 साल लगेंगे ! वह भी तब सम्भव है जब कि भारत में गरीबी, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, पक्षपात, भय, भूख और भृष्टाचार का पूरी तरह से खात्मा हो ! यह तभी संभव है जब निःस्वार्थ दृढ़निश्चयी नेतृत्व हो ! जिसकी कथनी-करनी में कोई अंतर नहीं हो! भारत को ऐसा अलौकिक-कुशल नेतृत्व निकट भविष्य में मिलेगा, मुझे तो कहीं दूर-दूर तक नज़र नही आता !अगर अमरीका का पतन होता है तो ये तय मानिए कि इस सारी प्रक्रिया में महाविनाश के बाद ही कुछ और स्थापित हो सकेगा! अमरीकी दबदबा मेरे आकलन के अनुसार अच्छा नही है तो बुरा भी नहीं है ! सभी देश अपनी-अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे हैं, और मनमानी करते रहते हैं ! ज्यादातर मुस्लिम राष्ट्र बेगुनाहों पर जुल्म ढाने में कोई कसर नही छोड़ते ! अमरीका एक पुराना प्रजातांत्रिक देश है ! वह अगर दुनिया में एक अच्छे गार्जियन जैसी भूमिका सही तरह से निभाए ( जो वह सही तरीके से नही निभा रहा और जिसका परिणाम आज उसे आर्थिक मंदी के रूप में भोगना पड़ रहा है ), तो इस विश्व रूपी घर में अनुशासन की दृष्टि से एक अच्छी बात है ! अतः सभी को इस बात पर सकारात्मक ढंग से सोचना चाहिए कि कौन सी चीज़ हमारे हित में है
Wednesday, December 31, 2008
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1 comment:
सही कहा आपने. विकसित देश बनने के लिए निचले स्तर से ऊपरी स्तर तक सभी को कमर कसनी होगी. अपने पूर्वाग्रहों को त्यागना होगा, कुटिल नेताओं की कुटिल चालों से बचना होगा, जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्रीयतावाद जैसी बुराइयों से बचना होगा, सभी को आत्मसुधार से शुरुआत करनी होगी, तभी जाकर हम अपनी आने वाली पीढियों को एक सम्रद्ध भारत दे पाएंगे. मुश्किल ज़रूर है, असंभव नहीं!
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