ऐसा कुछ भी ख़ास है नहीं बताने को, अपने बारे में ! बस, यों समझ लीजिये कि गुमनामी के अंधेरो में ही आधी से अधिक उम्र गुजार दी !हाँ, अपनी बात कुछ भगत सिंह जी के अंदाज में इस तरह कहूंगा ;
इन बिगड़े दिमागों में, ख्वाबों के कुछ लच्छे हैं,
हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे हैं।
साभार,
गोदियाल
My humble request is to kindly ignore the typographical errors.
My fondest wish is to inspire someone else to write something even better than I have done.
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regards,
Godiyal
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