Tirchhi Nazar (अंधड़ से कहानी और लेख संग्रह )
Monday, August 5, 2013
Tuesday, April 30, 2013
Tuesday, March 19, 2013
कहानी - भाग्य अपने हिस्से का !
"सॉरी, गोंट टु गो, आई वेस्टेड सो मच आफ योर टाइम।" हल्की सी कराह खुद में समेटे ये भारी-भरकम स्वर जब कानो में पड़े तब जाकर यह अहसास हुआ कि साथ में कोई अजनबी बैठे हैं। मोटी, घनी और घुमावदार सफ़ेद मूछों से सुसज्जित उस रौबीले चेहरे पर एक नजर डालने के उपरान्त मैं कहना चाहता था, "प्लीज स्टे अ लिटिल लौंगर" किन्तु न जाने क्या सोचकर मैंने खुद को रोक लिया था।
डग धीरे-धीरे एक ख़ास दिशा में बढ़ाते, उम्र के तकरीबन सत्तर वसंत पार कर चुके उन रिटायर्ड ब्रिगेडियर साहब को मैं और मेरा परिवार खामोश अंदाज में तब तक निहारता रहा, जब तक वे सज्जन टिप्पन टॉप के ठीक सामने, विपरीत दिशा में पार्क अपनी हरे रंग की जोंगा जीप में नहीं बैठ गए थे। और फिर उसे मोड़कर हमारे सामने की सड़क से, अंग्रेजों के जमाने के उस गिरजाघर के लॉन में खेल रहे मेरे दोनों बच्चों की तरफ खिड़की से हाथ हिलाते हुए वहाँ से निकल नहीं गए थे। मैं और मेरी धर्म-पत्नी यह देखकर हैरान थे कि ड्राइविंग सीट पर बैठे उन ब्रिगेडियर साहब के बगल की सीट पर एक अधेड उम्र संभ्रांत महिला भी बैठी थी।
उस वक्त में हमारे पास एक ११०० सीसी की प्रीमियर पद्मिनी की फिएट कार हुआ करती है। बड़े गर्व से उसकी सवारी करते हुए मैं, सपरिवार घूमने जब कहीं निकलता था तो उसकी डिक्की में एक दरी, एक या दो फोल्डिंग कुर्सी, एक छोटा सा चुल्हायुक्त गैस सिलेंडर,चाय बनाने के बर्तन और चाय का सामान ले जाना नहीं भूलता था। लम्बे सफ़र पर वह इसलिए भी हम जरूरी समझते थे, चूंकि बच्चे छोटे थे,और जहां जरुरत महसूस हुई सड़क किनारे गाडी पार्क कर दूध गर्म कर उन्हें पिलाने में भी सहूलियत रहती थी। इस बार भी हम दिल्ली से पूरे चार दिन का प्रोग्राम लेकर पूरे बोरिया-बिस्तर समेत लैंसडाउन भ्रमण को निकले थे। लैंसडाउन से मुझे इसलिए भी एक विशेष लगाव है कि मेरी शुरुआती शिक्षा यहीं के सेंट्रल स्कूल से हुई थी। बचपन में मैं करीब पांच साल यहाँ रहा था।
सुनशान पड़े गिरजाघर के गेट के ठीक सामने गाडी पार्क कर मैं, अपनी पत्नी और बच्चों को बांज, देवदार और काफल के पेड़ों से घिरी पहाड़ की चोटी के ठीक ऊपर खड़े उस बड़े से पत्थर पर ले गया था, जिसे टिप्पन-टॉप के नाम से जाना जाता है। हालाँकि पत्थर के ठीक ऊपर से नीचे झाँकने पर शरीर में एक स्वाभाविक सिहरन सी दौड़ जाती है, किन्तु साफ मौसम में उस स्थान से आगे की ओर का दृश्य बहुत ही मनमोहक और आँखों को शुकून पहुंचाने वाला होता है। हरे-भरे पहाड़ और सुदूर उस तरफ तिब्बत तक फैला धवल चादर ओढ़े गढ़वाल हिमालय का विहंगम दृश्य, सफ़ेद बर्फ से आछांदित पहाड़ियों पर जब उगते और डूबते सूर्य की किरणे पड़ती है , तो वह दृश्य देखते ही बनता है।
उस समय बच्चे न सिर्फ छोटे थे अपितु शरारती भी बहुत थे, खासकर तब तीन साल की बेटी। अत: थोड़ी देर टिप्पन-टॉप से हिमालय को टकटकी लगाकर देखने के उपरान्त हम उस समीप के गिरजाघर के आँगन में आ गए थे, जो अक्सर वीरान ही पडा रहता है। छोटे बच्चे साथ में होने की वजह से भी एक तो वह जगह थोड़ी सुरक्षित थी, साथ ही वहाँ से भी हिमालय की झलक हमें खूब मिल रही थी। कुर्सी और दरी आँगन में बिछाकर मेरी पत्नी ने चाय और दूध गर्म करने की तैयारी शुरू ही की थी, मैं डिक्की से सामान निकाल-निकाल कर उसके समीप रखे जा रहा था कि तभी बच्चों से बतियाते हुए सामने के छोर से वह सज्जन हमारे समीप आ गए थे। 'हाय-हैलो' के उपरान्त मैंने शिष्टता से एक फोल्डिंग कुर्सी उनकी तरफ सरका दी और उन्हें बैठने का आग्रह करते हुए खुद दरी में बैठ गया था। पत्नी ने गर्मा-गर्म चाय बनाकर जब दो प्यालिया हमें परोसी तो वे हमारे इस आइडिये की दाद देते हुए मुस्कुराते हुए बोले कि चलो आपसे सीखने को एक बढ़िया चीज मिली आज कि कहीं घूमने निकलो तो ये सामान भी साथ लेकर चलना जरूरी है, खासकर पहाडी इलाकों की यात्रा में तो। मैंने भी मुस्कुराकर उनकी बात का समर्थन किया और फिर चाय की चुसकिया लेते हुए आपसी परिचय से शुरू हुई बात उस वक्त की दिल्ली की सल्तनत पर आ पहुँची थी।
उनकी गाडी के वहाँ से निकल जाने के बाद मैं और मेरी धर्म-पत्नी मन में पैदा हुए एक ख़ास किस्म के अपराध-बोध से गर्सित होकर एक दूसरे को घूर रहे थे कि मेरी पत्नी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा " यार कम से कम तुम तो मुझे बता देते कि उन अंकल जी के साथ में एक आंटी भी है, एक कप चाय………. बेचारी वहाँ अकेली जीप में बैठी …।" "यार भाई, मैंने भी नहीं नोटिस किया था, मैंने भी अभी देखा उस आंटी को फ्रंट सीट पर बैठे हुए, मैं तो उलटे तुम्हे डपटने वाला था कि अगर तुमने उस आंटी को देख लिया था तो ज़रा उन्हें भी पूछ लेती" खैर छोड़ो, उस बुड्ढे ने भी तो नहीं बताया इतनी देर तक कि उनके साथ कोई और भी है…… मैंने कुढ़ते-झुंझलाते अपनी खीज बाहर निकालते हुए पत्नी से कहा। उसके बाद कुछ देर तक हम लोग उन ब्रिगेडियर साहब पर ही बातें करते रहे थे।
अभी हमारे पास दो दिन का समय बाकी था। अत: अगली सुबह, लैंसडाउन रोडवेज बस अड्डे के समीप जिस छोटे से होटल में हम लोग ठहरे हुए थे, दिन-भर बाहर ही गुजारने की मंशा से उस होटल के कर्मचारी से कहकर मेरी पत्नी ने दस आलू के पराठे और दही पैक करवा लिया था, ताकि दिन में लंच पर भी गैस स्टोव पर पराठे गरम कर उन्ही से दिन का जुगाड़ भी हो जाए। सूरज उगते ही हम पुन: टिप्पन-टॉप पर उसी स्थान पर पहुँच गए थे। यह देख हमारे उत्साह मिश्रित आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि उन रिटायर्ड ब्रिगेडियर साहब की जोंगा गाडी कल वाले निर्धारित स्थान पर ही पार्क थी और वह वृद्ध जोड़ा टिप्पन- टॉप पर बने सीमेंट-कंक्रीट के ढाँचे पर पीठ टिकाये एक टक हिमालय को ही निहारे जा रहा था।
गाडी से उतरकर मैंने अपनी ३ साल की बिटिया जोकि अभी सो ही रही थी को गोदी पर उठाया और धर्मपत्नी ने सात वर्षीय हमारे बेटे का हाथ पकड़ा और हम भी उस संकरी पगडंडी पर आहिस्ता-आहिस्ता टिप्पन-टॉप की तरफ बढ़ने लगे। समीप पहुचे ही थे कि ब्रिगडियर साहब की नजर हम पर पडी और वे अपना दांया हाथ हिलाते हुए मोटी आवाज में गरजे " हेलो " ! हम दोनों ने भी हाथ जोड़कर उन दोनों का अभिवादन किया, और ब्रिगेडियर साहब फूर्ती से उठकर झट से हमारे बेटे का हाथ पकड़कर उसे उस सीमेंट कंक्रीट के बने आसन पर ले गए, जहां वे लोग बैठे हुए थे। हम लोग भी समीप जाकर खड़े हुए तो ब्रिगेडियर साहब ने उस अधेड़ उम्र आंटी की तरफ हाथ का इशारा करते हुए कहा "माय वाइफ़, प्रतिभा राणा !" हम दोनों ने एक बार पुन: हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया, और मेरी पत्नी उनकी बगल पर जाकर बैठ गई। मैं बेटी को गोदी में पकड़ा खडा था, ब्रिगेडियर साहब को शायद मेरी बेटी का अभी तक सोते अच्छा लग रहा था अत: वे खड़े हुए और हथेली से मेरी बेटी के गाल थपथपाते हुए बोले " बेक अप बेबी, कमॉन वेक अप ". उनकी भारी-भरकम आवाज सुन अब वह भी जाग गई थी।
काफी देर तक हम लोग यूं ही बातो में मशगूल रहे, फिर ब्रिगेडियर साहब ने अपनी धर्म-पत्नी की तरफ इशारा करते हुए प्रश्नवाचक मुद्रा में कहा" चले "? बिना उनकी पत्नी का जबाब सुने मैंने ब्रिगेडियर साहब से सवाल किया "आर यू इन अ हरी" ?
वे फक्कड़ से अंदाज में मुस्कुराते हुए बोले " नहीं साहब, अपने पास तो टाइम ही टाइम है…लौटेंगे भी तो शाम को यहाँ से कोटद्वार के लिए निकलेंगे, मैं तो इनको नाश्ते के लिए आर्मी के ऑफिसर मेस चलने की बात कर रहा था….आप भी चलो हमारे साथ…।बस यहीं पर करीब एक किलोमीटर आगे जहां पर यहाँ का जो एक अकेला सिनेमाघर है, उसी के पास में ही है। उनकी बात सुनकर मैंने अभी सिर्फ इतना ही कहा था कि या आई एम् वेल ऐक्विंटेड विद आळ द प्लेसेस हेयर कि तभी मेरी धर्म-पत्नी ने साथ लाये दही-पराँठों की कहानी मेसेज राणा से छेड़ दे थी। ब्रिगेडियर राणा भी झट से सहमत होते हुए बोले " अगर आपको कोई दिक्कत नहीं है तो यह तो हमारा सौभाग्य होगा बेटे कि तुम्हारे हाथ की बनी स्वादिष्ट चाय का भी मैं एक बार फिर से लुत्फ़ उठा सकूं।
फिर हम सभी लोग वहां से झटपट गिरजाघर के आँगन में उसी जगह पर आ पहुंचे जहां पर बीता दिन गुजारा था। गाडी की डिक्की से फ़टाफ़ट सामान बाहर निकाल कर हम गिरजाघर के आँगन में सजाने लगे। दोनों बच्चे खेलने में मशगूल हो गए थे। चूँकि वह सड़क उधर से केन्द्रीय विद्यालय को जाती है और साथ ही कैंट एरिया होने की वजह से आगे आर्मी के वाहनों की वर्क-शॉप भी है, अत: उस सड़क पर यदा-कदा आर्मी के वन-टन, थ्री-टन गुजर जाते है, अत: मेसेज राणा बार-बार मेरे सात वर्षीय बेटे को देती थी " बब्बू, काक्की का ध्यान रखो बेटे, वो सड़क पे न चली जाए, आप उसके बड़े भैया हो……. "
गाडी से उतरकर मैंने अपनी ३ साल की बिटिया जोकि अभी सो ही रही थी को गोदी पर उठाया और धर्मपत्नी ने सात वर्षीय हमारे बेटे का हाथ पकड़ा और हम भी उस संकरी पगडंडी पर आहिस्ता-आहिस्ता टिप्पन-टॉप की तरफ बढ़ने लगे। समीप पहुचे ही थे कि ब्रिगडियर साहब की नजर हम पर पडी और वे अपना दांया हाथ हिलाते हुए मोटी आवाज में गरजे " हेलो " ! हम दोनों ने भी हाथ जोड़कर उन दोनों का अभिवादन किया, और ब्रिगेडियर साहब फूर्ती से उठकर झट से हमारे बेटे का हाथ पकड़कर उसे उस सीमेंट कंक्रीट के बने आसन पर ले गए, जहां वे लोग बैठे हुए थे। हम लोग भी समीप जाकर खड़े हुए तो ब्रिगेडियर साहब ने उस अधेड़ उम्र आंटी की तरफ हाथ का इशारा करते हुए कहा "माय वाइफ़, प्रतिभा राणा !" हम दोनों ने एक बार पुन: हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया, और मेरी पत्नी उनकी बगल पर जाकर बैठ गई। मैं बेटी को गोदी में पकड़ा खडा था, ब्रिगेडियर साहब को शायद मेरी बेटी का अभी तक सोते अच्छा लग रहा था अत: वे खड़े हुए और हथेली से मेरी बेटी के गाल थपथपाते हुए बोले " बेक अप बेबी, कमॉन वेक अप ". उनकी भारी-भरकम आवाज सुन अब वह भी जाग गई थी।
काफी देर तक हम लोग यूं ही बातो में मशगूल रहे, फिर ब्रिगेडियर साहब ने अपनी धर्म-पत्नी की तरफ इशारा करते हुए प्रश्नवाचक मुद्रा में कहा" चले "? बिना उनकी पत्नी का जबाब सुने मैंने ब्रिगेडियर साहब से सवाल किया "आर यू इन अ हरी" ?
वे फक्कड़ से अंदाज में मुस्कुराते हुए बोले " नहीं साहब, अपने पास तो टाइम ही टाइम है…लौटेंगे भी तो शाम को यहाँ से कोटद्वार के लिए निकलेंगे, मैं तो इनको नाश्ते के लिए आर्मी के ऑफिसर मेस चलने की बात कर रहा था….आप भी चलो हमारे साथ…।बस यहीं पर करीब एक किलोमीटर आगे जहां पर यहाँ का जो एक अकेला सिनेमाघर है, उसी के पास में ही है। उनकी बात सुनकर मैंने अभी सिर्फ इतना ही कहा था कि या आई एम् वेल ऐक्विंटेड विद आळ द प्लेसेस हेयर कि तभी मेरी धर्म-पत्नी ने साथ लाये दही-पराँठों की कहानी मेसेज राणा से छेड़ दे थी। ब्रिगेडियर राणा भी झट से सहमत होते हुए बोले " अगर आपको कोई दिक्कत नहीं है तो यह तो हमारा सौभाग्य होगा बेटे कि तुम्हारे हाथ की बनी स्वादिष्ट चाय का भी मैं एक बार फिर से लुत्फ़ उठा सकूं।
फिर हम सभी लोग वहां से झटपट गिरजाघर के आँगन में उसी जगह पर आ पहुंचे जहां पर बीता दिन गुजारा था। गाडी की डिक्की से फ़टाफ़ट सामान बाहर निकाल कर हम गिरजाघर के आँगन में सजाने लगे। दोनों बच्चे खेलने में मशगूल हो गए थे। चूँकि वह सड़क उधर से केन्द्रीय विद्यालय को जाती है और साथ ही कैंट एरिया होने की वजह से आगे आर्मी के वाहनों की वर्क-शॉप भी है, अत: उस सड़क पर यदा-कदा आर्मी के वन-टन, थ्री-टन गुजर जाते है, अत: मेसेज राणा बार-बार मेरे सात वर्षीय बेटे को देती थी " बब्बू, काक्की का ध्यान रखो बेटे, वो सड़क पे न चली जाए, आप उसके बड़े भैया हो……. "
गरमागरम चाय, दही-पराठों का लुफ्त उठाते हुए मेरी पत्नी ने एक अलग राग छेड़ते हुए ब्रिगेडियर साहब से सवाल किया " अंकल आप कुमाऊँ के हैं और आंटी हरियाणा की……. आपने यह नहीं बताया कि आप दोनों की पहली मुलाक़ात कहाँ हुई थी ? ब्रिगेडियर साहब ने एक ठहाका लगाया, और बोले " बेटे हमारा भी अपनी जवानी के दिनों में ऐसे ही एक एक्सीडेंट हो गया था। तब मेरी नई-नई पोस्टिंग अम्बाला कैंट में थी। एक दिन सुबह करीब साढ़े नौ, दस बजे बीपीटी से लौटते हुए मैं बहुत थका- प्यासा इनके गाँव की सड़क, जोकि एक छोटा हाईवे था, पर चला जा रहा था कि सड़क किनारे मुझे एक ढाबानुमा दूकान दिखी, काउंटर पर चुनर ओढ़े एक लडकी बैठी थी। मैंने कहाँ, बहुत प्यास लगी है थोड़ा पानी मिलेगा? अनादर से एक खनकती हुई आवाज आई, चुल्लू आगे करो। मेरी कुछ समझ में नहीं आया क्योंकि मुझे मालूम नहीं था कि चुल्लू क्या होता है अत: मैं उस लडकी के चेहरे पर देखने लगा। फिर एक खिलखिलाहट मेरे कानो से गुजरी और उस लडकी ने अपनी दोनों हथेलियाँ आपस में जोड़कर अपने मुहँ पर लगाईं और बोली, अरे बुददू ऐसा करो और बस हम उसी वक्त दिल दे बैठे।
उनकी बात सुन हम तीनो की नजरें मिसेज राणा पर ही टिकी थी और हमें महसूस हो रहा था कि वे कुछ-कुछ लजाते हुए मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी। उन लोगो से इतनी सी मुलाक़ात में हमें कहीं ऐसा नहीं महसूस हो रहा था कि ये लोग कोई अजनबी है। और फिर मेरी पत्नी ने मानो उस वृद्ध जोड़े की दुखती रग छेड़ दी थी। उसने पूछा, आंटी, आपके बच्चे…….! मैंने नोट किया कि ब्रिगेडियर साहब बात घुमाना चाहते थे किन्तु मेरी बीबी कहाँ मानने वाले थी। उसने अब अपने सवाल का गोला ब्रिगेडियर साहब पर ही दागा, अंकल, आपके बच्चे…….!
मैं नोट कर रहा था कि आंटी ( मिसेज राणा ) की सुर्ख आँखे नम होती जा रही थी। इससे पहले कि ब्रिगेडियर साहब कुछ कहते, भारी आवाज में आंटी ने कहना शुरू किया " एक ही बेटा था, करीब चौदह साल का हो गया था, ऊपर वाला हमसे छीनकर …….! यह सुनकर हम दोनों पति-पत्नी के मुहं से एक साथ निकला "ओह, आई अम सॉरी…….!" जहां एक और मन ही मन मैं अपनी धर्म-पत्नी को बेवजह उनके जख्म कुरेंदने के लिए कोस रहा था, वहीं मैंने महसूस किया कि वह आंटी अपने मन के जख्मों को बाहर निकालने के लिए भी व्याकुल थी, इसलिए उसके बाद मैंने खुद को कोई प्रतिक्रिया देने से रोक लिया था।
उस ठन्डे प्रदेश में गुनगुनी धुप खिली हुई थी, ब्रिगेडियर साहब भी नजरें झुकाए खामोश बैठे थे। आंटी ने दर्द भरी आवाज में आगे बोलना शुरू किया " इनकी पोस्टिंग उसवक्त गुरुदासपुर के तिब्डी कैंट में थी। कुछ दिनों से अक्सर सुबह उठकर ये मुझसे कहा करते थे कि आजकल मुझे रात को बुरे-बुरे सपने आ रहे है। फिर एक दिन इन्होने कहा कि इस आने वाले वीकेंड पर ऑफिसर्स और जेसिओज की फेमलियाँ पाकिस्तान बोर्डर पर घूमने जा रही है, अत: तुम भी तैयार रहना। यहाँ से ख़ास दूर नहीं है, तुम्हे वह स्थान भी दिखाऊंगा जहाँ १९ ६५ की लड़ाई में मैं घायल हुआ था। और फिर शनिवार के दिन हम और बाकी फ़ौजी लोग सिविल ड्रेस में पाकिस्तान बोर्डर की तरफ घूमने निकल पड़े। हमारा बेटा यह सोचकर उत्तेजित था कि आज वह पाकिस्तान बोर्डर को करीब से देखेगा।
वहाँ पहुंचकर इन लोगो ने हमें दूरबीन की मदद से पाकिस्तानी पोस्टों और उनके सुरक्षाकर्मियों को हमें दिखाया। हमने वे स्थान भी देखे जहां पैंसठ और इकत्तर की लड़ाई में गिरे बमों से जमीन पर बड़े-बड़े गड्ढे अभी भी मौजूद थे। काफी देर घूमने के बाद हम लोग वहाँ मौजूद एक पेड़ की छाँव में सुस्ताने बैठ गए। ये दोनों-बाप-बेटे आपस में मजाक करते हुए पाकिस्तानी फौजियों पर जोक्स सुना रहे थे। हमारा बेटा पेड़ के तने पर पाकिस्तान के बोर्डर की तरफ मुह करके बैठा था, और हम दोनों उसकी तरफ मुह किये बैठे थे। अपने साथ ले जाये हुए बिस्किट और कुरकुरे खाते हुए कुछ देर हम मौज-मस्ती करते रहे। दोनों बाप-बेटों के बीच चुटकले सुनाने का दौर जारी था, और हमारे बेटे के एक जोक्स सुनाया तो इनकी आदत थी कि जब इन्हें कोई बात बहुत बढ़िया लगती तो ये हँसते हुए इनके समीप बैठी मेरे पीठ अथवा जाँघ पर अपने हाथ से थाप मारते थे। उस वक्त भी बेटे का सुनाया चुटकिला सुनकर जब हम दोनों हँसे तो ये मेरी पीठ पर थाप मारने को मेरी तरफ झुके और जैसे ही इनका झुकना हुआ पाकिस्तान की तरफ से एक गोली आयी जो अगर ये मेरी तरफ उस वक्त मेरी पीठ पर थाप मारने न झुकते तो इनकी पीठ पर लगती किन्तु, चूँकि ये बाई तरफ झुक गए थे, अत: वह गोली सीधे हमारे बेटे के सीने को चीरते हुए निकल गई …।
राणा आंटी की बूढ़ी आँखे बुरी तरह डब-डबा आई थी। घुटी सी आवाज में फिर उन्होंने कहा, मेरा नसीब देखिये एक ही गोली के निशाने पर एक तरफ अपना पति था और दूसरी तरफ अपना बेटा !
उनकी बात सुन हम तीनो की नजरें मिसेज राणा पर ही टिकी थी और हमें महसूस हो रहा था कि वे कुछ-कुछ लजाते हुए मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी। उन लोगो से इतनी सी मुलाक़ात में हमें कहीं ऐसा नहीं महसूस हो रहा था कि ये लोग कोई अजनबी है। और फिर मेरी पत्नी ने मानो उस वृद्ध जोड़े की दुखती रग छेड़ दी थी। उसने पूछा, आंटी, आपके बच्चे…….! मैंने नोट किया कि ब्रिगेडियर साहब बात घुमाना चाहते थे किन्तु मेरी बीबी कहाँ मानने वाले थी। उसने अब अपने सवाल का गोला ब्रिगेडियर साहब पर ही दागा, अंकल, आपके बच्चे…….!
मैं नोट कर रहा था कि आंटी ( मिसेज राणा ) की सुर्ख आँखे नम होती जा रही थी। इससे पहले कि ब्रिगेडियर साहब कुछ कहते, भारी आवाज में आंटी ने कहना शुरू किया " एक ही बेटा था, करीब चौदह साल का हो गया था, ऊपर वाला हमसे छीनकर …….! यह सुनकर हम दोनों पति-पत्नी के मुहं से एक साथ निकला "ओह, आई अम सॉरी…….!" जहां एक और मन ही मन मैं अपनी धर्म-पत्नी को बेवजह उनके जख्म कुरेंदने के लिए कोस रहा था, वहीं मैंने महसूस किया कि वह आंटी अपने मन के जख्मों को बाहर निकालने के लिए भी व्याकुल थी, इसलिए उसके बाद मैंने खुद को कोई प्रतिक्रिया देने से रोक लिया था।
उस ठन्डे प्रदेश में गुनगुनी धुप खिली हुई थी, ब्रिगेडियर साहब भी नजरें झुकाए खामोश बैठे थे। आंटी ने दर्द भरी आवाज में आगे बोलना शुरू किया " इनकी पोस्टिंग उसवक्त गुरुदासपुर के तिब्डी कैंट में थी। कुछ दिनों से अक्सर सुबह उठकर ये मुझसे कहा करते थे कि आजकल मुझे रात को बुरे-बुरे सपने आ रहे है। फिर एक दिन इन्होने कहा कि इस आने वाले वीकेंड पर ऑफिसर्स और जेसिओज की फेमलियाँ पाकिस्तान बोर्डर पर घूमने जा रही है, अत: तुम भी तैयार रहना। यहाँ से ख़ास दूर नहीं है, तुम्हे वह स्थान भी दिखाऊंगा जहाँ १९ ६५ की लड़ाई में मैं घायल हुआ था। और फिर शनिवार के दिन हम और बाकी फ़ौजी लोग सिविल ड्रेस में पाकिस्तान बोर्डर की तरफ घूमने निकल पड़े। हमारा बेटा यह सोचकर उत्तेजित था कि आज वह पाकिस्तान बोर्डर को करीब से देखेगा।
वहाँ पहुंचकर इन लोगो ने हमें दूरबीन की मदद से पाकिस्तानी पोस्टों और उनके सुरक्षाकर्मियों को हमें दिखाया। हमने वे स्थान भी देखे जहां पैंसठ और इकत्तर की लड़ाई में गिरे बमों से जमीन पर बड़े-बड़े गड्ढे अभी भी मौजूद थे। काफी देर घूमने के बाद हम लोग वहाँ मौजूद एक पेड़ की छाँव में सुस्ताने बैठ गए। ये दोनों-बाप-बेटे आपस में मजाक करते हुए पाकिस्तानी फौजियों पर जोक्स सुना रहे थे। हमारा बेटा पेड़ के तने पर पाकिस्तान के बोर्डर की तरफ मुह करके बैठा था, और हम दोनों उसकी तरफ मुह किये बैठे थे। अपने साथ ले जाये हुए बिस्किट और कुरकुरे खाते हुए कुछ देर हम मौज-मस्ती करते रहे। दोनों बाप-बेटों के बीच चुटकले सुनाने का दौर जारी था, और हमारे बेटे के एक जोक्स सुनाया तो इनकी आदत थी कि जब इन्हें कोई बात बहुत बढ़िया लगती तो ये हँसते हुए इनके समीप बैठी मेरे पीठ अथवा जाँघ पर अपने हाथ से थाप मारते थे। उस वक्त भी बेटे का सुनाया चुटकिला सुनकर जब हम दोनों हँसे तो ये मेरी पीठ पर थाप मारने को मेरी तरफ झुके और जैसे ही इनका झुकना हुआ पाकिस्तान की तरफ से एक गोली आयी जो अगर ये मेरी तरफ उस वक्त मेरी पीठ पर थाप मारने न झुकते तो इनकी पीठ पर लगती किन्तु, चूँकि ये बाई तरफ झुक गए थे, अत: वह गोली सीधे हमारे बेटे के सीने को चीरते हुए निकल गई …।
राणा आंटी की बूढ़ी आँखे बुरी तरह डब-डबा आई थी। घुटी सी आवाज में फिर उन्होंने कहा, मेरा नसीब देखिये एक ही गोली के निशाने पर एक तरफ अपना पति था और दूसरी तरफ अपना बेटा !
Friday, March 15, 2013
लघु कथा- आदत हाथ फैलाने की !
दो-तीन दिन पहले मैंने यह कहानी अपने आचलिक भाषा के ब्लॉग पर गढ़वाली में लिखी थी, आज उसका हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ;
एक ब्राह्मण पुजारी के तौर पर अपना सांसारिक जीवन शुरू करने वाले उसके वृद्ध पिताजी इलाके भर में एक दिव्य-महात्मा के तौर पर प्रसिद्द हो गए थे। इलाके के लोग यहाँ तक मानते थे कि अगर वे किसी को कोई वरदान अथवा शाप दे दें तो वह शत-प्रतिशत सच निकलता था। मगर एक वो कहावत "चिराग तले अन्धेरा" भी उन पर बखूबी चरितार्थ होती थी, और उसकी वजह थी, पंडित जी का अपना इकलौता लड़का, निकम्मा, निठल्ला और आलसी। बचपन से ही पता नहीं यह कैसी आदत उसने पकड़ ली थी कि चाहे कोई दोस्त हो, मास्टर जी हों, अथवा कोई रिश्तेदार हों, जहां मौक़ा मिला, उनके आगे पैसों के लिए हाथ फैला देता था।
पंडित जी उसकी इस आदत से बड़े दुखी थे। किन्तु उसकी इस आदत के लिए कुछ हद तक वे खुद भी जिम्मेदार थे क्योंकि पंडित जी अपने आदर्शों के भी पक्के थे। सिद्धता का गुण खुद में विद्यमान होने के बावजूद भी वे सिर्फ मेहनत की ही कमाई में विश्वाश रखने वाले इंसान थे, और किसी भी फास्ट-मनी (तीव्र अर्जित धन) के सख्त खिलाफ थे। और इसलिए उनके घर की माली हालत खस्ता ही रहती थी।
बुढापे में पंडित जी को कई तरह की बीमारियों ने भी घेर लिया था, और फिर उनका स्वर्ग सिधारने का वक्त निकट आ गया। मौक़ा ताड़कर उनका निकम्मा बेटा पंडित जी के पैर पकड़कर उनसे विनती करने लगा कि आप मेरे पिता-श्री है, मैं आपका बेटा हूँ। आपको तो हमारे घर की माली हालत के बारे में पूरी जानकारी है। दुनियाभर में आपकी हाम है कि आप एक सिद्ध महात्मा हो, जिसको भी कोई वरदान दे देते हो, वह सच निकलता है। अत: मुझ पर भी कृपा करें और मुझे भी एक वरदान दें।
वृद्ध पंडित जी ने खिन्न मन और रुंधे हुए गले से कहा" वैसे तो मैं तुझे भी अवश्य वरदान देता पुत्र, किन्तु मैं तेरी इस मांगने की आदत से नाखुश हूँ। हाँ, अगर तू मुझे यह वचन दे कि आगे से किसी भी इंसान के आगे हाथ नहीं फैलाएगा तो मैं भी तुझे एक वरदान दूंगा, किन्तु साथ ही यह भी ध्यान रखना कि मैं धन-दौलत पाने से सम्बंधित वरदान किसी को भी नही देता।
अब वह सोच में पड गया कि बुड्ढ़े ने उसे ये कैसी दुविधा में डाल दिया ? मुझसे मेरी माँगने की आदत भी छुड़वाना चाहता है और धन-दौलत का वरदान भी नहीं देगा। वह कुछ देर गहरी सोच में पडा रहा, फिर अचानक एक जबरदस्त आइडिया उसके खुरापाती दिमाग में आया और वह उछल पडा। मृत्यु-शैय्या पर लेटे अपने बाप के पैरों को दबाते हुए उसने झट से कहा कि पिताजी, मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं आइन्दा किसी भी इंसान के आगे कुछ भी मांगने के लिए हाथ नहीं फैलाऊंगा, किन्तु आप भी मुझे यह वरदान दो की इंसानों के अलावा जिस किसी के भी आगे मैं हाथ फैलाऊँ, उसके पास जो भी हो वो वह मुझे दे दे।
अंतिम साँसे गिन रहे पंडित जी ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए सोचा कि इंसानों के अलावा भला यह और किससे क्या मांग सकता है ? पेड़ पौधों, पत्थरों से मांगेगा तो वो भला इसे क्या देंगे और अगर गाय-भैंसों के आगे हाथ फैलाएगा तो वो तो इसे गोबर ही दे सकते है। अत: बूढ़े पंडित जी ने अपना हाथ उठाकर कहा तथास्तु और तत्पश्चात स्वर्ग सिधार गए।
अब वरदान पाकर उनके उस निकम्मे बेटे ने झटपट अपने गाँव से शहर पलायन का निर्णय लिया और शहर आ गया। आदतन शहर आकर भी उसने काम तो कोई भी नहीं किया, किन्तु आजकल वह शहर के पौश इलाके में एक आलीशान बंगले में रहता है, घर के आगे दो-दो मर्सिडीज खडी रहती हैं। करता सिर्फ इतना सा है कि तमाम शहरों में बैंकों के एटीएम के पास जाकर उनके आगे हाथ फैला देता है, बस !
Tuesday, December 18, 2012
मूर्खता और लालच !
गत सप्ताह एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने हेतु उत्तराखंड की यात्रा पर था। वहाँ एक परिचित के मुख से सुनी एक पुरानी आंचलिक कहानी को यहाँ लिपिबद्ध कर रहा हूँ। संभव है कि कुछ लोग इस कहानी से पहले से वाकिफ हो फिर भी उम्मीद करता हूँ कि कुछ पाठकगण, खासकर बच्चों को पसंद आयेगी।
एक गाँव में एक निर्धन मगर बहुत ही चालाक किस्म का किसान रहता था। घर की परिस्थितियों के अनुरूप किसान की पत्नी खान-पान में भी मितव्ययता बरतने का भरसक प्रयास करती थी, लेकिन किसान को यह पसंद न था। फलस्वरूप उसने अपनी पत्नी से कहा कि आइन्दा वह जब भी भोजन पकाए तो दो आदमियों का खाना अतिरिक्त बनाया करे, भले ही उस अतिरिक्त भोजन को उन्हें दूसरे वक्त में ही क्यों न खाना पड़े।
एक दिन किसान लकड़ी लेने जंगल गया तो उसे वहाँ दो खरगोश के बच्चे मिल गए। वह उन्हें घर ले आया और उनका पालन-पोषण करने लगा। एक दिन वह अपने बैलों संग हल जोतने के लिए खेतों में गया था तो वह एक खरगोश भी साथ ले गया था। हल लगाते वक्त उसने उस खरगोश को हल के ठीक पीछे रस्सी से बांध दिया। बैल हल को खीचते तो आगे-आगे हल चलता और उसके ठीक पीछे-पीछे वह खरगोश चलता।
जब हल जोतने का यह क्रम चल ही रहा था, तभी कहीं से बैलों के दो व्यापारी वहाँ आ पहुंचे। उन्होंने किसान से पुछा कि क्या उसके बैल बिकाऊ हैं? किसान से सकारात्मक जबाब मिलने पर वे मोल-भाव करने लगे, तभी एक व्यापारी पूछ बैठा कि उसने उस खरगोश को हल से इस तरह क्यों बाँध रखा है? किसान स्वाभाव से ही बहुत चालक किस्म का था, उसने उस व्यापारी की उत्सुकता को भांप लिया और कहने लगा कि यह खरगोश तो उसकी जान है, बहुत ही आज्ञाकारी किस्म का है, वह इसको जो भी काम बताता है, वह उसे तत्परता से करता है, दूसरी तरफ वह उसके और उसकी बीवी के बीच संदेशवाहक का काम भी करता है।
किसान की बातें सुनकर दोनों व्यापारी काफी चकित हुए। बैलों के मोलभाव की बात आई तो किसान ने कहा कि इतनी जल्दी भी क्या है भाई! दोपहर के भोजन का समय हो रहा है, इसलिए घर चलकर भोजन कर, तदुपरांत आराम से बैठकर मोलभाव करते है। दोनों व्यापारी किसान की बात मान गए। किसान ने झट से उस खरगोश को हल पर बंधी रस्सी से खोला और उसे गोद में उठाकर उसके कानो में बोला; "जा मेरे लाडले, घर जा, मालकिन को बोलना कि दो मेहमानों के लिए भी भोजन पका के रखना, हम बस थोड़ी देर में पहुँच रहे है।" यह कहकर उसने खरगोश को छोड़ दिया। छूटते ही खरगोश सरपट भागकर झाड़ियों में कही विलुप्त हो गया। व्यापारी कौतुहल भरी निगाहों से यह सब देख रहे थे।
थोड़ी देर बाद वे लोग जब किसान के घर पहुंचे तो व्यापारी यह देखकर चकित रह गए कि खरगोश किसान के घर में खूंटे से बंधा था। किसान की पत्नी ने खाना भी दो आदमियों का अतिरिक्त पकाया हुआ था। व्यापारी यह सब देख यही समझ बैठे कि यह सब उस खरगोश की ही करामात है, जबकि हकीकत यह थी कि किसान की बीवी ने खाना तो किसान के निर्देशानुसार पहले से ही अतिरिक्त पका के रखा था और जिस खरगोश को किसान ने खेत से छोड़ा था वो तो कहीं जंगल में भाग गया था, घर में बंधा खरगोश दूसरा वाला था। दोनों ही व्यापारी उस खरगोश पर फ़िदा थे, अत: दोनों ने किसान से कहा कि इस बारी बैल रहने दे, और ये बता की खरगोश को कितने में बेचेगा। चालाक किसान तो इसी मौके की तलाश में था, अत: उसने झट से कहा कि वैसे तो मैं खरगोश को बेचना नहीं चाहता था किन्तु चूंकि आप मेरे मेहमान है अत: मैं आपकी बात को भी नहीं टाल सकता और वैसे कीमत तो इसकी 25000 रुपये है, किन्तु तुम 20000 रूपये ही देकर ले जा सकते हो।
व्यापारियों ने किसान को खुशी-खुशी 20000 रूपये चुकता किये और खरगोश लेकर चल पड़े। जब वे अपने गाँव के समीप पहुंचे तो उन्होंने भी उस खरगोश के कानो में कहा की जाओ मालकिन से कहना कि हम बस थोड़ी देर में पहुँच ही रहे है, वह दो आदमियों का खाना तैयार रखे। यह कहकर जैसे ही उन्होंने खरगोश को आजाद किया, खरगोश सरपट भागकर कही अदृश्य हो गया। वे दोनों व्यापारी जब घर पहुंचे तो देखा की न तो वहां कोई खरगोश था और न ही घर की मालकिन ने उनके लिए खाना तैयार करके रखा था। व्यापारी ने अपनी पत्नी से पूछा कि क्या वहां कोई खरगोश नहीं आया था ? उसकी पत्नी ने तुरंत प्रतिसवाल किया कि आप किस खरगोश की बात कर रहे है?
व्यापारियों को समझते देर न लगी कि उनके साथ धोखा हुआ है। वे उलटे पाँव किसान के गाँव पहुंचे और दोनों ही किसान पर बिगड़ने लगे कि उसने उनके साथ छल किया है। चालाक किसान ने उन्हें शांत कराया और पूछा कि खरगोश को आदेश देने से पहले क्या उन्होंने उसे अपना घर दिखाया था? दोनों व्यापारी सकपकाने लगे और एक स्वर में बोले कि उन्होंने खरगोश को अपना घर तो नहीं बताया था। अब बारी चालक किसान के बिगड़ने की थी, वह विलाप करने का नाटक करते हुए बोला अरे मूर्खों ! तुमने यह क्या कर दिया, मेरे लाडले खरगोश को बिना अपना घर दिखाए ही आदेश देकर छोड़ दिया, बेचारा पता नहीं उस अन जान जगह पर कहाँ जंगलों में इधर-उधर भटक रहा होगा। अरे, तुमने ये क्या कर दिया? दोनों ही व्यापारियों को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे किसी अपराधी की तरह ग्लानी सी महसूस करने लगे।
किसान उन्हें सांत्वना देते हुए अपने घर के अन्दर ले गया और चूंकि सर्दियों का मौसम था इसलिए उसने अपनी पत्नी को उनके लिए चाय बनाने को कहा। जिस कमरे में किसान ने उन्हें बिठाया था उसके दरवाजे और खिड़की के बीच में बाहर की तरफ से किसान ने एक बकरा भी बाँध रखा था। बकरा लेटा हुआ, अपने दोनों जबड़ो को हिलाता हुआ जुगाली कर रहा था। चाय पीते-पीते व्यापारियों ने एक साथ किसान से पूछा कि भई, तुम्हारा यह कमरा काफी गरम है, क्या बात है? किसान झट से बकरे की तरफ इशारा करते हुए बोला; सब अपने इस एयरकंडीशन की वजह से है। व्यापारियों ने आँखें फाड़ते हुए उसके तरफ देखकर प्रश्नवाचक स्वर में कहा, एयरकंडीशन ???? किसान बोला, हाँ भाई, सही सूना आपने! यही तो मेरा एयरकंडीशन है, बाहर से जितनी भी ठंडी हवा आती है उसे , यह खा जाता है, (जुगाली करते बकरे के मुह की तरफ उंगली से इशारा करते हुए ) देखो, अभी भी खा रहा है। जबकि उन व्यापारियों के गर्मी महसूस करने की वजह यह थी कि एक तो वे गरम-गरम चाय पी रहे थे और दूसरा, कमरे की जिस दीवार से सटकर वे बैठे थे, उसके ठीक पिछ्ले भाग में दीवार से सटा किसान की रसोई का चूल्हा था, जो उसवक्त जल रहा था, इसलिए कमरे में गर्मी थी।
किसान की बात सुनकर दोनों व्यापारी आपस में फुसफुसाने लगे कि हमारे गाँव में तो यहाँ से भी ज्यादा ठण्ड है, क्यों न इसे ही खरीद ले। उन्होंने किसान से बकरे का भाव पूछा तो किसान ने वही रटा-रटाया जबाब दिया,कि वैसे तो 25000/- रुपये है किन्तु तुम्हे मैं 20000 रूपये में दे दूंगा। अब दोनों व्यापारी उस बकरे को अपने गाँव ले आये और कमरे के बाहर बाँध दिया। रात को कड़ाके की सर्दी पडी और सुबह तक बकरा ठण्ड के मारे स्वर्ग सिधार चुका था। अगले दिन दोनों व्यापारी भागते-भागते किसान के गाँव पहुंचे तो किसान की पत्नी ने बताया कि वह तो जंगल गए है इस वक्त। दोनों ही व्यापारी वक्त जाया नही करना चाहते थे, अत: वे भी किसान को पकड़ने जंगल की और चल पड़े। इस बीच किसान जब अकेला जगल में जा रहा था तो उसके पीछे रास्ते में एक भालू पड गया। किसान उससे बचने के लिए एक पेड़ के पीछे छुपा तो भालू ने मय पेड़ उसे पकड़ने की कोशिश की। किसान न सिर्फ चालाक बल्कि बहादुर किस्म का भी था। उसने झट से भालू के दोनों हाथ पकड़ लिए और उसे वहीं रस्सी से लपेटकर पेड़ से बांध दिया। उसके बाद किसान ने भालू के पिछवाड़े पर एक जोर की लात मारी तो भालू ने मल त्याग दिया।
इस बीच किसान की नजर जंगल में उसी की तरफ आते दोनों व्यापारियों पर पडी तो उसे मामला भांपते देर न लगी। उसने फ़टाफ़ट अपनी जेब से कुछ रूपये निकाले और उन्हें भालू द्वारा विसर्जित मल में अच्छी तरह लोट-पोट कर दिया। ज्यों ही व्यापारी एकदम उसके नजदीक पहुंचे तो किसान एक-एक कर भालू के मल में लिपटे नोटों को निकाल-निकालकर साफ़ करने लगा और उन्हें सुखाने लगा। व्यापारियों ने उत्सुकताबश तुरंत पूछा कि किसान तुम ये क्या कर रहे हो? चालाक किसान बोला, मत पूछो भाई कि मैं क्या कर रहा हूँ। यही भालू तो मेरी रोजी का साधन है..............क्योंकि यह मल के साथ-साथ अपने पेट से नोट भी त्यागता है, जिन्हें साफ कर मैं अपनी रोजी-रोटी चलाता हूँ। दोनों ही व्यापारी एक साथ उछल पड़े, और बोले, अरे यह तो बड़ा ही अजूबा है, पहली बार ऐसा देखा और सूना है। वे किसान से बकरे के बदले दिए गए पैसे वापस मांगना भी भूल गए और बोले, तुम इस भालू को कितने में बेचोगे ?
किसान ने एक बार फिर वही रटा-रटाया जबाब दिया कि वैसे तो इसकी कीमत 25000 रूपये है किन्तु तुम्हारे लिए मात्र 20000/- रूपये। लेकिन इस बारी किसान ने एक शर्त यह रखी कि चुकी वह भालू उसको जी-जान से प्यार करता है और उससे अलग नहीं होगा, इसलिए वे लोग उस भालू को उसके वहां से चले जाने के दो घंटे बाद ही खोलें। लालची व्यापारी किसान की हर बात मानने को तैयार थे, अत: किसान को भालू की कीमत देकर उन्होंने विदा कर दिया और जब उसके कहे अनुसार दो घंटे बाद उन्होंने भालू को खोला तो क्रोधित भालू उनपर झपटा और पलभर में दोनों व्यापारियों को उसने मार डाला।
इतिश्री !
Friday, May 11, 2012
इस कार्टून में ऐसा गलत क्या था?
अंधेर नगरी चौपट राजा.... शायद यह कहावत एकदम सही चरितार्थ होती है हमारे राजनीतिज्ञों पर ! यूं तो हमारी एनसीईआरटी की किताबों में हमारे बच्चों को बहुत कुछ गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है, मसलन महमूद गजनवी ने मूर्तियों को तोड़ा और इससे वह धार्मिक नेता बन गया !(कक्षा 7-मध्यकालीन भारत, पृष्ठ 28) जिसकी तरफ हमारे इस सेक्युलर देश के ज्ञानी, विद्धवान राजनीतिज्ञों का कभी या तो ध्यान गया ही नहीं या फिर उनके लिए यह इतनी अहमियत ही नहीं रखता ! किन्तु प्रसिद्द कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाए गए इस कार्टून उन्ही किताबों में छपे संविधान निर्माता डा० भीमराव आंबेडकर का यह कार्टून उनका अथवा हमारे समाज के दलित वर्ग का क्या अपमान कर रहा है, यह मेरी समझ में नहीं आया !
एनसीईआरटी की किताब में इस कार्टून में संविधान नामक घोंघे पर आंबेडकर बैठे दिखाए गए हैं और नेहरू पीछे से घोंघे को सोंटा लगा रहे हैं! दक्षिण के एक सांसद द्वारा उठाये गए इस मुद्दे को क्या कौंग्रेस, क्या बीजेपी और क्या अन्य जिनमे लगभग सभी दलों के नेता, मायावती, पासवान इत्यादि सम्मिलित है, ने यह कहकर हंगामा खडा कर दिया कि इसमें आंबेडकर और दलितों का अपमान किया गया है !कार्टून देखने के बाद मेरे को तो जो तुरंत समझ में आया था वह यह था कि कार्टूनिस्ट ने यह दिखाने की कोशिश की है कि नेहरु उस घेंघे रूपी संविधान को अपने हिसाब से हांकना चाहते थे किन्तु आंबेडकर ने घेंघे ( संविधान ) पर अपनी लगाम कसे रखी ! इसमें तो उलटे उनका मान बढाया गया है !
मगर तरस आता है इन जेनयू जनित दलित बहुसंख्यक कामरेडों की बुद्धि पर, जोकि हुसैन के एक नंगी औरत के उपर सीता लिखने को कला की स्वतंत्रता का नाम देते नहीं थक रहे थे, वो ही अंबेडकर का एक नार्मल कार्टून नहीं पचा पा रहे हैं! इन दोगले लोगो ने अभी प० बंगाल की मुख्मंत्री ममता बनर्जी के कार्टून पर भी बहुत कुछ कहा और यहाँ पलटी मार ली ! अगर कार्टून में मज़ाक ही न हो तो वो कार्टून ही क्या , मगर अफ़सोस कि "दलित" मसला भी इस देश में कुछ कुछ इस्लाम जैसा बन गया है जहाँ वर्णमाला की छोटी बड़ी मात्रा पर भी ख़तरे का अलार्म बज उठता है! जहां तक मैं समझता हूँ , देश काल के हिसाब से यह कार्टून कुछ भी ग़लत नही है, लेकिन आज जब बात दलित, अल्प-संख्यक, मुस्लिम, ईसाई, आदि की हो रही हो तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे कोई विषय ही नहीं रह जाता है हमारे लोकतंत्र में, हाँ, हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए ये भले ही बीफ फैस्टीबल का आयोजन विद्या मंदिरों में ही भले क्यों न करें !
Thursday, May 10, 2012
विभिन्न भाषाओं में माता-पिता के लिए हमारे संबोधन How to say "Mother and "Father" in Different languages:
अपने देश में : (In India): माता/मात (Mother) पिता/तात (Father)
संस्कृत (Sanskrit) मातृ(Matr)/जननी(Janani) पितृ,जनक,((Pitr)/Janak/tatah)
क्षेत्र /प्रदेश अनुसार ( Area/ Region wise) :
१.लद्दाख (Laddakh) अनो,अमो,जीजी, अता,बाबा,अबा
(लद्दाखी, बल्टी और भोटी) अमा, एमा, माँ:ली माँ:लो
(Ladakhi, Balti, Bhoti) (Ano.Amo,ZiZi,Ama, (Ata, Aba, Baba
Ema, Ma:Li) Ma:Lo)
2.कश्मीरी (Kashmiri) मम्ज, मोज (maej,moj) मोल, बाब (mol, bab)
३.डोगरी (Dogri) माँ, म्ये (ma,m;e) प्यो,बैब Pjo, B:eb)
४ कांगरी/शेरपा मुम,मम,अमा आव,अवा (Awa)
(Kangri/Sherpa) (Mum, Ama)
५.पंजाबी (Punjabi) माँ, बेबे,बीबी,चईजी बापू ,बाबा,पापाजी, पाजी
(Maa,Bebe,Bibi,Chaiji) (Bapu,Baba, Papaji, Paaji)
७. कुमाउनी/गढ़वाली इजू, माँ, ब्वे, मैडी, मांजी बाब,पि~तजी,बुबाजी, बाबू
(Kumaoni/Garhwali) (iju.maa,bwe,maidi,maanji) (baab, pitaji,bubaaji.baabu)
और नेपाल से लगे क्षेत्र में आमा,मुमा (Aama,muma) बा, बुवा (Ba, buwa)
(And sorrunding Nepal border area)
8. भोजपुरी(Bhojpuri) माई, इया(Mai,iya,Ama) बाबूजी (Babuji,papa)
9. बिहार/झारखण्ड माँ (Maa) बाबूजी (Babuji)
(Bihar,Jharkhand)
10. बंगाली (Bengali) माँ,मागो (ma,maago) बाबा (baba)
11. असमी (assamese) माँ, आई (ma, Ai) देउता (deuta)
12. मणिपुरी (manipuri) मामा इमा (mama,ima) इपा,बाबा,पाबा,इपुंग Ipa,baba,paba,ipung)
13. मिजो (mizo ) नु (nu) पा (pa)
14. नागा (naga) पुई (pui) पु (pu)
15. अरुणाचली (तिब्बती) युम, माँ यब, पा
(arunanchali (mainly tibetian) (yum,ma) (yab,pa)
16. ओडिया (oriya) माँ, बाऊ (ma, bau) बापा (bappa)
17. तेलुगु (telugu) अम्मा (Amma) नाना,नयना,अप्पा,अय्या
(naana,nayna,appa,ayya)
18. तमिल (Tamil) अम्मा (Amma) अप्पा (Appa)
19. मलयालम अम्मा, अम्मे,उम्मा,अम्माची अच्चन,अच्चा,उप्पा,अप्पच्चां
(Malayalam) (amma,amme,Umma,ammachi) (acchan,Acchaa,Uppa,Appacchan)
20. कन्नड़ अम्मा,अव्वा,थाई अप्पा,अन्ना,तेंढ़े
(Kannada) (amma,avva,thai) (appa,anna, Tandhe )
21. कोंकणी (Konkani ) माई (Mai) अन्ना (Anna)
22. मराठी आई, आय,आये,बाये,नानी वाहू बाबा,दादा,नाना,अन्ना,भौ,अप्पा,बा
(Marathi ) (aai,Aay,Aaye,baye,nani,vahu) (baba,dada,nana,anna,Bhau,appa,ba)
23. गुजराती(Gujarati) बा (Baa) बापू,बापूजी (Bapu,Bapuji)
24.सिन्धी(Sindhi) अम्मी,अम्मा,भाभी (ammi,Amma,Bhabhi) अब्बा,बाबा (Abba,baba)
कुछ विदेशी भाषाओं में ( In some foreign languages ):
MOTHER FATHER
English: Mom, Mummy, Mother Father,Dad, Daddy,Pop, Poppa/Papa
German: Mutter Banketi or Papi
Urdu: Ammee, Ammijaan Abbu, Abbujaan
French: Mere, maman Papa
Italian: Madre Babbo
Portuguese: Mãe Pai
Albanian: Mëmë; Nënë; Burim; baba ; atë
African moeder ; ma vader
Aragones: Mai Pai
Asturian: ma pá
Aymara: taica auqui
Basque/Bhutani Ai, ama apa,aita
Bergamasco mater pater
Bolognese mater pater
Bosnian majka otac
Brazilian / Portuguese Mãe pai
Bresciano Mamma, mader buba
Breton mamm tad
Belarusian: Matka Тата
Cebuano: Inahan; Nanay amahan; tatay
Serbian: Majka Ta-ta
Czech: Abatyse; Matka otec ; tada
Chinese: Ma-ma,mǔqīn ba-ba,fùqīn
Dutch: Moeder; Moer vader ; papa ; pappie
Estonian: Ema isa
Frisian: Emo, Emä, Kantaäiti, Äiti heit
Greek: Màna pat??a?
Korean: eom-ma a-bba
Japanese okaasama,okaasan.kaasan,okaachan, otousama,otousan,tousan,otouchan
kaachan,mama,ofukuro,okan touchan,papa,oyaji,oton
Russian мама papa
Swedish: morsa, mom farsa
Spanish: Madre Padre
नोट Note: भूल,चूक लेनी, देनी ! आपके सुझावों का स्वागत ( E &OE , your suggestions in this regard are always welcome )
अपने देश में : (In India): माता/मात (Mother) पिता/तात (Father)
संस्कृत (Sanskrit) मातृ(Matr)/जननी(Janani) पितृ,जनक,((Pitr)/Janak/tatah)
क्षेत्र /प्रदेश अनुसार ( Area/ Region wise) :
चलिए कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र से शुरू करते है:- (Let's start from Laddakh region of Kashmir):
१.लद्दाख (Laddakh) अनो,अमो,जीजी, अता,बाबा,अबा
(लद्दाखी, बल्टी और भोटी) अमा, एमा, माँ:ली माँ:लो
(Ladakhi, Balti, Bhoti) (Ano.Amo,ZiZi,Ama, (Ata, Aba, Baba
Ema, Ma:Li) Ma:Lo)
2.कश्मीरी (Kashmiri) मम्ज, मोज (maej,moj) मोल, बाब (mol, bab)
३.डोगरी (Dogri) माँ, म्ये (ma,m;e) प्यो,बैब Pjo, B:eb)
४ कांगरी/शेरपा मुम,मम,अमा आव,अवा (Awa)
(Kangri/Sherpa) (Mum, Ama)
५.पंजाबी (Punjabi) माँ, बेबे,बीबी,चईजी बापू ,बाबा,पापाजी, पाजी
(Maa,Bebe,Bibi,Chaiji) (Bapu,Baba, Papaji, Paaji)
६. हरियाणवी/ प०उ०प्र0 /राजस्थानी माँ,मम्मी,अम्मा,बीबी बाबूजी,बाब्बू ,बाबा
(Haryanavi/West. UP/Rajasthani) (Maa,Mammi,Amma,bibi) (Babuji,babbu,baba) ७. कुमाउनी/गढ़वाली इजू, माँ, ब्वे, मैडी, मांजी बाब,पि~तजी,बुबाजी, बाबू
(Kumaoni/Garhwali) (iju.maa,bwe,maidi,maanji) (baab, pitaji,bubaaji.baabu)
और नेपाल से लगे क्षेत्र में आमा,मुमा (Aama,muma) बा, बुवा (Ba, buwa)
(And sorrunding Nepal border area)
8. भोजपुरी(Bhojpuri) माई, इया(Mai,iya,Ama) बाबूजी (Babuji,papa)
9. बिहार/झारखण्ड माँ (Maa) बाबूजी (Babuji)
(Bihar,Jharkhand)
नोट (Note): बिहार,झारखंड, छत्तीसगढ़, ओधिसा और इससे लगे महाराष्ट्र तथा आंध्रा के आदिवासी क्षेत्रों में सादरी, खोरठा, कुरमाली, मगधी, पंच्पर्गानिया और द्रविड़ इत्यादि भाषाए बोली जाती है, जिनमे माता-पिता के लिए उनके अनेकों भिन्न-भिन्न संबोधन है, किन्तु मुख्य रूप से वहा के निवासी भी बिहार, बंगाल ,ओधिसा और आंध्रा के संबोधनों को ही प्रयोग में लाते है ! (The tribal (adivasi) people of Bihar, Jharkhand, Chattishgarh, odhidsa and andhra areas speak their different-different local languages like Sadri, Khortha, Kurmali and Panchpargania; and the Dravidian languages but they mainly use to address their parents in the same rough dialectal variant of Bihari, Bengali, Odhisi,Marathi and Telgu)
10. बंगाली (Bengali) माँ,मागो (ma,maago) बाबा (baba)
11. असमी (assamese) माँ, आई (ma, Ai) देउता (deuta)
12. मणिपुरी (manipuri) मामा इमा (mama,ima) इपा,बाबा,पाबा,इपुंग Ipa,baba,paba,ipung)
13. मिजो (mizo ) नु (nu) पा (pa)
14. नागा (naga) पुई (pui) पु (pu)
15. अरुणाचली (तिब्बती) युम, माँ यब, पा
(arunanchali (mainly tibetian) (yum,ma) (yab,pa)
16. ओडिया (oriya) माँ, बाऊ (ma, bau) बापा (bappa)
17. तेलुगु (telugu) अम्मा (Amma) नाना,नयना,अप्पा,अय्या
(naana,nayna,appa,ayya)
18. तमिल (Tamil) अम्मा (Amma) अप्पा (Appa)
19. मलयालम अम्मा, अम्मे,उम्मा,अम्माची अच्चन,अच्चा,उप्पा,अप्पच्चां
(Malayalam) (amma,amme,Umma,ammachi) (acchan,Acchaa,Uppa,Appacchan)
20. कन्नड़ अम्मा,अव्वा,थाई अप्पा,अन्ना,तेंढ़े
(Kannada) (amma,avva,thai) (appa,anna, Tandhe )
21. कोंकणी (Konkani ) माई (Mai) अन्ना (Anna)
22. मराठी आई, आय,आये,बाये,नानी वाहू बाबा,दादा,नाना,अन्ना,भौ,अप्पा,बा
(Marathi ) (aai,Aay,Aaye,baye,nani,vahu) (baba,dada,nana,anna,Bhau,appa,ba)
23. गुजराती(Gujarati) बा (Baa) बापू,बापूजी (Bapu,Bapuji)
24.सिन्धी(Sindhi) अम्मी,अम्मा,भाभी (ammi,Amma,Bhabhi) अब्बा,बाबा (Abba,baba)
कुछ विदेशी भाषाओं में ( In some foreign languages ):
MOTHER FATHER
English: Mom, Mummy, Mother Father,Dad, Daddy,Pop, Poppa/Papa
German: Mutter Banketi or Papi
Urdu: Ammee, Ammijaan Abbu, Abbujaan
French: Mere, maman Papa
Italian: Madre Babbo
Portuguese: Mãe Pai
Albanian: Mëmë; Nënë; Burim; baba ; atë
African moeder ; ma vader
Aragones: Mai Pai
Asturian: ma pá
Aymara: taica auqui
Basque/Bhutani Ai, ama apa,aita
Bergamasco mater pater
Bolognese mater pater
Bosnian majka otac
Brazilian / Portuguese Mãe pai
Bresciano Mamma, mader buba
Breton mamm tad
Belarusian: Matka Тата
Cebuano: Inahan; Nanay amahan; tatay
Serbian: Majka Ta-ta
Czech: Abatyse; Matka otec ; tada
Chinese: Ma-ma,mǔqīn ba-ba,fùqīn
Dutch: Moeder; Moer vader ; papa ; pappie
Estonian: Ema isa
Frisian: Emo, Emä, Kantaäiti, Äiti heit
Greek: Màna pat??a?
Korean: eom-ma a-bba
Japanese okaasama,okaasan.kaasan,okaachan, otousama,otousan,tousan,otouchan
kaachan,mama,ofukuro,okan touchan,papa,oyaji,oton
Russian мама papa
Swedish: morsa, mom farsa
Spanish: Madre Padre
नोट Note: भूल,चूक लेनी, देनी ! आपके सुझावों का स्वागत ( E &OE , your suggestions in this regard are always welcome )
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