Saturday, January 30, 2010

इक्कीसवीं सदी का हमारा शहरी युवा वर्ग !

आज हमारे देश के शहरी इलाके ज्यों-ज्यों तथाकथित प्रगति की ओर अग्रसर है, त्यों-त्यों इन शहरी इलाकों के वाशिन्दे नित शाररिक तौर पर क्षीणता की गर्त मे डूबे जा रहे है। इसके लिये जिम्मेदार बहुत सारे प्रत्यक्ष और परोक्ष कारण विध्यमान है, जिनमे से कुछ प्रमुख है, भोग और विलासिता की वस्तुए, मनोंरजन के साधन, शहर, कस्बे और मुहल्ले मे खेलने-कूदने के लिये उचित और प्रयाप्त जगहों का न होना, बच्चे का अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक न होना, माता-पिता की लापरवाही और सरकारों की इस ओर उदासीनता ।

और कम से कम मोदी नगर के एक स्कूल मे कल की यह घटना तो यही सिद्ध करती है कि हमारी युवा पीढी शारिरिक तौर पर कितनी कमजोर है। कल मोदी नगर के टी आर एम पब्लिक स्कूल के १८ वर्षीय बारह्वीं कक्षा के एक छात्र पवनेश पंवार की शारिरिक व्यायाम की परिक्षा के दौरान चक्कर आने से दुखद मृत्यु हो गई। घटना के बाद विधार्थी का परिवार, प्रशासन और खबरिया माध्यम जितना मर्जी हो-हल्ला मचायें, स्कूल प्रशासन को जिम्मेदार ठहरायें, लेकिन हकीकत यही है कि बाहर से लम्बे-चौडे, हष्ठ-पुष्ठ दिखने वाले ये आज के मदर डेयरी और चौकलेट पोषित युवा अन्दर से कितने खोखले हैं।

मेरा यह मानना है कि कलयुग ज्यों-ज्यों अपने चरम की ओर बढ रहा है, त्यों-त्यों इस धरा पर सारी की सारी क्रियायें-प्रक्रियायें उलट-पुलट हुए जा रही है, और जिसके लिये इन्सान सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। खान-पान मे तो हमने खुद ही अपने हाथों पौष्टिकता का गला घोंट दिया है, मगर साथ ही भोग-विलासिता और मनोरंजन के साधनो ने आग मे घी का काम कर दिया है। आज भी अगर हम सडक पर किसी प्रौढ अथवा बूढे व्यक्ति को फुर्तीले अन्दाज मे चलते हुए देखते है, तो हमारे मुख से पह्ला शब्द यही निकलता है कि भाई अगले ने पुराने जमाने का माल खा रखा है। कभी हमने शायद ही इस बात पर गौर किया हो कि उस पुराने जमाने के माल मे ऐसी कौन सी चीज थी, जिसे खाकर वह इन्सान आज भी स्वस्थ है ? जबाब साधारण सा है कि उस समय मे भोजन मे पौष्टिकता होती थी।

दूसरी बात, आज का युवा अपने आन्तरिक शारिरिक विकास और मजबूती के लिये जरा भी प्रतिबद्ध नही दीखता। पहले जमाने मे घर के बडे- बुजुर्गो के मुख पर विधार्थी के लिये बस यही दो मूल मन्त्र होते थे, एक था; काक चेष्ठा, बको ध्यानम, स्वान निन्द्रा तथेवच, अल्प हारे, गृह त्यागे, विधार्थीवे पंच लक्षण, अर्थात एक सफ़ल विधार्थी वह है जिसके हाव-भाव कौवे जैसे, तीक्ष्ण ध्यान बकरी जैसा, नींद कुत्ते जैसी, खान-पान थोडा और पौष्टिक तथा अध्ययन के लिये घरेलु उपभोग और मनोरंजन की चीजों का परित्याग किये हो। और दूसरा मन्त्र होता था कि विधार्थी को रात को जल्दी सोना चाहिये और सुबह जल्दी उठ्ना चाहिये। मगर आज की हकीकत इन बातों से कोसों दूर है। मां-बाप की मेहनत तथा नम्बर दो की कमाई मे से बेटा हर घन्टे कुछ न कुछ खाये ही जा रहा है, रात को ग्यारह-बारह बजे तक टीवी पर चिपका रहता है, उसके बाद दो बजे तक वह तथाकथित पढाई करता है, और फिर सुबह अगर स्कूल जल्दी जाने की मजबूरी न हो तो दस बजे बाद मा-बाप के बार-बार उठाने पर जनाव जागते है। दो कदम अगर जाना हो, तो कार अथवा बाइक लेकर जाते है। और फिर नतीजा हमारे सामने है कि स्कूल मे व्यायाम भी नही झेल पाते, और फिर दोष स्कूल प्रशासन के सिर मढ देते है। मै यहां अपना भी एक उदाहरण देना चाहुंगा, भूतकाल मे मेरे साथ दो इतने खतरनाक ऐक्सीडेंट हुए कि मै मानता हूं कि भग्वान के आशिर्वाद के साथ-साथ मेरी शारिरिक क्षमतायें ही थी जो मैं बच गया (चुंकि मैने भी अपना बचपन का एक बडा हिस्सा गांव मे बिताया और खूब शारिरिक व्यायाम भी किये), अन्यथा मै दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरी जगह अगर कोई आज का शहरी नौजवान होता तो शायद वह उसी वक्त अल्लाह को प्यारा हो चुका होता ।

कहने का निचोड यह है कि आज हमे अगर अपनी वर्तमान युवा पीढी को भविष्य के लिये सक्षम बनाना है तो हमे इन बातों पर गौर करना ही होगा,औरसरकार तथा संचार माध्यमों को भी इसमे सकारात्मक भूमिका निभानी होगी, सिर्फ़ बच्चे पर पढाई का दबाब और स्कूल प्रशासन की खामियों का रोना रोकर हम अपने युवा वर्ग को अत्यधिक विलासी बनाकर अपने देश के लिये भविष्य मे वही मुसीबत खडी करने जा रहे है, जिससे आज अमेरिका और कुछ युरोपीय देश जूझ रहे है। आज जरुरत है, अनिवार्य रूप से इनके शारिरिक ढांचे को सक्षम बनाने के लिये हर सम्भव प्रयास करना, क्योंकि स्वस्थ शरीर मे ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है ।

4 comments:

vikas mehta said...

sahi kah rahe hai aap jaise hi shahr badh rahe hai jimo ki jansnkhya to badh rahi hai lekin hasht pusht dikhne wale shrir khokhle ho rahe hai kyo ki vah dai takt ya pauder se bnta hai ya fir choklet , chole bhture , is trah ki cheezo se jo ki dikhne dikhne ka hi hota hai n hi vah khel rahe hai ab kushti kbbdi lambi kud khokho ab to khel bhi tv par hi ho jate hai

संगीता पुरी said...

शारिरीक मजबूती किसी भी व्‍यक्ति के लिए पहली शर्त होनी चाहिए .. आज के अभिभावक अपनी महत्‍वाकांक्षा के तले बच्‍चें के स्‍वास्‍थ्‍य को ही कुचल रहे हें .. बढती प्रतिस्‍पर्धा के इस यग ने बच्‍चें के शरीर को सचमुच अंदर से खोखला कर दिया है .. आनेवाली आबादी के शारीरिक तौर पर बहुत कमजोर रहने के बावजूद हम उनके विकसित बने होने का दंभ पाल रहे हैं .. यह हमारी बेवकूफी है !!

डॉ टी एस दराल said...

इसका मुख्य कारण यह लगता है आजकल स्कूली शिक्षा ही रह गई है। घर से , मां -बाप से , दादा दादी से मिलने वाली शिक्षाएं ख़त्म हो गई हैं। बस एक रिमोट कंट्रोल्ड लाइफ रह गई है।

zerindquann said...

Jammy Fortune - Casino | Jackson County, OK 76230 - JSH
and the casino is located 논산 출장안마 in 양주 출장샵 the 양산 출장안마 Cherokee Indian Country and is open daily 경산 출장안마 24 hours. Hours are limited to 8 am-4 pm daily. Rating: 토토 사이트 4 · ‎15 reviews