Thursday, September 4, 2008

गुलाम मानसिकता

कहने को इस देश को आजाद हुए ६१ साल हो गए, लेकिन मानसिक रूप से क्या सचमुच हम आजाद हुए ? तथाकथित आज़ादी से पहले भारत में दो वर्ग होते थे , एक शासक और दूसरा गुलाम ! और आज क्या है? आज भी तो वही है ! आज़ादी के बाद हमने अपना संविधान बनाया लेकिन भारतीय राजनीति का आधार क्या हो, इस पर चिंतन करना भूल गए ! यही वजह है कि स्वतंत्रता के बाद से जब भी आम चुनाव हुए भारतीय जनता की मानसिकता राजा और प्रजा के भाव में ही सिमित रही !
आज सोचता हु कि आज़ादी के बाद भी हम भारतीय गुलामो ने पिछले ६० सालो में सिवाए राजावो की जय-जयकार और चाटुकारिता के सिवाए किया क्या ? ६० और ७० के दशक में हमने राजकुमारी इंदिरा की जय-जयकार की ! ७० से ८० के दशक में हमने राजकुमार संजय की जय-जयकार की , ८० से ९० के दशक में हमने राजकुमार राजीव की जय-जयकार की, ९० से २००० के दशक में हमने राजबहू सोनिया की जय-जयकार की, आज भी कर रहे है मगर आज के दशक में एक राजकुमार राहुल भी आ गए है और आजकल हम, हमारा मीडिया , हमारे प्रचार मध्यम सिर्फ़ उन्ही की जय-जयकार में लगे है , वह कहा गए, रस्ते में उन्होंने किस दलित के बच्चे को गोदी में उठाया, किस अल्पसंख्यक महिला से गले मिले, रात को किस दलित के घर में सोये, उनका अपने शादी के बारे में क्या ख़याल है उनको कैसे लड़की की तलाश है........... उफ़ ! मुझे लग रहा है की इन गुलामो को राजवंश की चिंता सताने लगी है की कही अगर युवराज ताउम्र कुवारे रहे तो आगे चलकर ये किसकी जय-जयकार करेंगे ?

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